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ईश्वर को भूलने पर मिलती है असफलता

संवाद सहयोगी मधुपुर (देवघर) शहर के कुंडू बंगला मोहल्ला स्थित श्याम मंदिर में बुधवार को

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2020 07:53 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2020 07:53 PM (IST)
ईश्वर को भूलने पर मिलती है असफलता
ईश्वर को भूलने पर मिलती है असफलता

संवाद सहयोगी, मधुपुर (देवघर): शहर के कुंडू बंगला मोहल्ला स्थित श्याम मंदिर में बुधवार को सात दिवसीय मानस शिवकथा का समापन हो गया। कथावाचक उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने कहा कि शंकर भगवान हनुमान बनकर प्रगट हुए और प्रभु श्रीराम की सेवा की। कथा के विश्राम में आरती का आयोजन तथा प्रसाद का वितरण किया गया। सात दिनी कथा में नगर व अलग-अलग इलाकों से अनेक श्रद्धालु जुड़े और सत्संग का लाभ उठाया। अंतिम दिन कथावाचक ने कहा कि शंकर जी ने सोचा कि मुझसे रामजी कभी कोई काम नहीं लेते, क्योंकि मैं महादेव हूं, परन्तु यदि मैं वानर बन जाऊंगा तो पशु से काम लेने में प्रभु को संकोच नहीं होगा और मेरा जीवन भी धन्य हो जाएगा। यही कारण है कि शिव जी बानर बनकर प्रगट हुए। हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को निगल लिया था। सूर्य ज्ञान के प्रतीक हैं और हनुमान जी को ज्ञान की भूख थी। आज का बालक ज्ञानी कम बन रहा है, बल्कि रोजी-रोटी कमाने की मशीन अधिक बन रहा है। विश्व आज दो वक्त की रोटी ढंग से खाने को तरस रहा है, महंगाई इतनी कि लोग परेशान हैं। जब हम प्रकृति से दूर होते हैं, तब ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हमारे पूर्वज हमारे लिए खनिज पदार्थ, शुद्ध वायु, शुद्ध जल, मिट्टी छोड़कर गए। हम तो अपनी आनेवाली पीढि़यों के लिए कुछ भी अच्छा छोड़कर नहीं जा रहे। कोरोना जैसी बीमारी भी मनुष्यों ने बनाई, पर दोष भगवान को दे रहा है। हनुमान जी ने जीवन में कभी भगवान को दोष नहीं दिया। वे कहते कि जीवन में असफलताएं तभी मिलती हैं, जब व्यक्ति ईश्वर को भूल जाता है। ईश्वर को भूलना बहुत बड़ा अपराध है, जिससे बचना चाहिए। हनुमान जी अपनी ताकत को भूल गए पर भगवान राम के बल को नहीं भूले। हमलोग अपना बल याद रखते हैं और रामजी के बल को भूल जाते हैं। हनुमान जी निष्काम कर्मयोगी हैं, उन्होंने सुग्रीव को किष्किधा का राज्य दिलाया, विभीषण को लंका का राजा बनवाया और राम जी को अयोध्या लेकर आए पर स्वयं सेवक बनना ही स्वीकार किया। स्वयं राजा न बने। शंकर का यही दिव्य स्वरूप है कि वे रामसेवा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। रामराज्य के समय भी शंकर भगवान ने रामजी की स्तुति की।

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