पौष कीइस सर्द रात की सुबह दूर
पूस की रात ठंड में हवाएं बर्छियों की तरह शरीर को चीर रही हैं। बावजूद पेट की आग इससे हर मुकाम पर जंग लड़ रही है। बाबा नगरी में रविवार की आधी रात का समय है। सर्द हवाएं पारे को दस डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे लुढ़का चुकी हैं।
देवघर : पूस की रात, ठंड में हवाएं बर्छियों की तरह शरीर को चीर रही हैं। बावजूद पेट की आग इससे हर मुकाम पर जंग लड़ रही है। बाबा नगरी में रविवार की आधी रात का समय है। सर्द हवाएं पारे को दस डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे लुढ़का चुकी हैं। सोमवार को सूबे में नई सरकार के आगमन की आहट पौ फटने के साथ ही तय हो जाएगी। गुरबत के साए में जी रहे ऐसे लोगों के दर्द पर मरहम लगाने की चुनौती भी नई सरकार के समक्ष होगी। रात को शहर के कई परिदृश्य मानवीय संवेदनाओं को झकझोर गए। सर्द रात में खुले आसमान के नीचे पड़े इंसानी जिस्म ठिठुर रहे थे, बावजूद इस रात की सुबह दूर थी।
रात के नजारों ने व्यवस्था के साथ समाज पर भी सवाल उठाए। खाली सड़कों पर इक्का दुक्का गाड़ियां गुजर रहीं थीं। करनीबाग के देवान बाबा गली के बाहर सड़क किनारे एक टीन के शेड के नीचे छ: मजदूर सोते मिले। बिछावन की जगह प्लास्टिक के बोरे का टुकड़ा, ओढ़ने के लिए पतली चादर। कड़ाके की यह ठंड उनकी नींद तोड़ रही थी। बार-बार चादर को शरीर पर लपेटने की कवायद, बावजूद सिहरन से छुटकारा नहीं। आगे प्राइवेट बस स्टैंड चौक के पास एक शेड के नीचे फर्श पर कुछ लोग लेटे मिले। सड़क के किनारे तीन युवक अलाव ताप रहे थे। भागलपुर के सदाशिव व बांका सुईया के अरुण यादव ने बताया कि बस के इंतजार में हैं। राजेश कुमार ने बताया कि वह जमुई के सिकंदरा थाना क्षेत्र का रहने वाला है। वह और उसका भाई यहां ठेले पर नाश्ता बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। हम गरीबों की किस्मत में अच्छा घर कहां, बस अलाव ही सहारा है।
गांव में नहीं मिला काम तो आया शहर : नगर भवन के बाहर सड़क किनारे एक व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सड़क के किनारे लेटा हुआ था। ठंड से बचने के लिए कूट व कागज जलाए थे। जो बुझ चुके थे, बस कुछ चिंगारियां गर्माहट का अहसास कर रही थीं। पास में एक रिक्शा खड़ा था। रिक्शा में गमछा लपेटे बैठे दुमका जिले के सरैयाहाट थाना क्षेत्र के ककनी गांव निवासी हीरालाल ने बताया कि वह दिन में रिक्शा चलाता है, रात को उसमें सो जाता है। उसका गमछा दिन में शरीर पोंछने और रात को शरीर ढकने के काम आता है। घर में पत्नी व दो बच्चे हैं। गांव में काम नहीं मिला तो कमाने शहर आ गया।
दो जवान बेटियों की शादी की चिता :
बैजनाथधाम रेलवे स्टेशन का प्रतीक्षालय। कई लोग यहां भी सोए हैं। आरक्षण काउंटर के पास एक बुजुर्ग दिखे। कुमारडुबी धनबाद के 55 वर्षीय कन्हैया मोदी बोले साहब घर में पत्नी के अलावा तीन बेटियां और दो बेटे हैं। एक बेटी की शादी की है, दो की करनी है। उनके जीवनयापन के लिए ही सारी जद्दोजहद है। रोजगार नहीं मिला तो फेरी लगाकर सामान बेचते हैं। हर दिन 200-250 कमा लेते हैं। ये पैसा बेटियों की शादी के लिए काफी नहीं है। कैसे शादी होगी यही चिंता सताती है। दिनभर काम कर रात को यहां कोने में सो जाते हैं। यहां पर ही बिहार के बेतिया सवयां चरनाहा निवासी 65 वर्षीय बद्री शर्मा लेटे हैं। बताया कि बढ़ई हैं। हर दिन करीब 300 कमा लेते हैं। उम्र बढ़ गई है तो ठंड भी ज्यादा लगती है, मजबूरी है क्या करें।