राम मंदिर पर अविलंब फैसला दे सर्वोच्च न्यायालय : नरेंद्रानंद
सुमेरू पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि न्यायपालिका की समीक्षा होनी चाहिए।
संवाद सहयोगी चितरा: सुमेरू पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि न्यायपालिका की समीक्षा होनी चाहिए। दुष्कर्मियों को तय सीमा के भीतर चौक-चौराहे पर फांसी दी जाए। राम मंदिर मसले में सर्वोच्च न्यायालय अविलंब निर्णय दे। अल्पसंख्यकों को परिभाषित किया जाना चाहिए। नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बने। वे शुक्रवार को चितरा में आयोजित महायज्ञ में प्रवचन करने की पूर्व पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। कहा कि यज्ञ से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बल मिलती है।
कहा कि न्यायपालिका की लेटलतीफी के कारण 10 करोड़ लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा। राम मंदिर मामले का निष्पादन छह महीना के भीतर कर दिया जाना चाहिए था। न्यायालय का काम होता है न्याय देना ना कि पंचायती करना। इसलिए इसकी समीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि दुष्कर्मियों के लिए एक सीमा तय होनी चाहिए। उसके बाद उसे चौक-चौराहे पर फांसी दे दी जाए अथवा सरेआम कत्ल कर दिया जाना चाहिए। कहा कि बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक का दर्जा देना तुष्टीकरण नीति के समान है। तुष्टीकरण नीति से राष्ट्र विरोधियों को बल मिलता है। सरकार यह तय करे कि अल्पसंख्यक हैं कौन? कहा कि जब मदरसे के आधुनिकीकरण की बात सरकार कर रही है उसी स्थिति में गुरुकुलों के आधुनिकीकरण की बात सरकार क्यों नहीं कर रही है। एक देश और समान नागरिक कानून यहां बनना चाहिए। उन्होंने कई राज्यों की चर्चा करते हुए कहा कि हिदू जैन यहूदी फारसी आदि लोगों की संख्या बहुत कम है। इस स्थिति में सरकार उसे अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों नहीं दे रही?