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धागों से रफू कर दी गरीबी, महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी फातिमा

Sewing business. कभी इस गांव में गरीबी होती थी, अब समृद्धि का वास है। यहां गर्म कपड़े, स्वेटर, महिलाओं के परिधान, बैग की सिलाई होती है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 02:47 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 02:49 PM (IST)
धागों से रफू कर दी गरीबी, महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी फातिमा
धागों से रफू कर दी गरीबी, महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी फातिमा

देवघर, कंचन सौरभ मिश्रा। देवघर के मधुपुर प्रखंड का एक गांव है गोंदलीटांड़। अल्पसंख्यक बहुल इस गांव के हर घर में सिलाई मशीन की आवाज सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है। 160 घर वाले इस गांव में हर घर पक्का है। यहां के करीब 500 लोग वर्षों से सिलाई का कारोबार कर रहे हैं। यहां महिला व पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। बिना किसी सरकारी सहारे के यहां के बाशिंदों ने सुई व धागे से अपने जीवन को संवार लिया है। कभी इस गांव में गरीबी होती थी, अब समृद्धि का वास है। यहां गर्म कपड़े, स्वेटर, महिलाओं के परिधान, बैग की सिलाई होती है। यहां बनी सामग्री बिहार, झारखंड, ओडिशा व बंगाल तक जाती है।

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पहले काम की तलाश में दिल्ली, मुंबई व कोलकाता जाने वाले भी अब गांव लौट आए हैं। गांव के मो. इरशाद ने बताया कि घर पर 12 सिलाई मशीनें लगाई हैं। जो कई युवाओं को रोजगार दे रही हैं। वहीं, शफीक अंसारी कहते हैं कि परिवार वालों के साथ मिलकर तीन माह में करीब चार लाख की लागत का गर्म कपड़ा तैयार कर दिया है। हम मेहनतकश हैं इसी कारण अधिकतर घरों का नक्शा बदल चुका है। आम गांव में जहां फूस की झोपड़ी और खपरैल के घर दिखते हैं पर इस गांव की शान यहां के पक्के मकान हैं। क्योंकि इस काम से इतनी आय हो जाती है कि घर का अर्थतंत्र सुदृढ़ हो रहा है।

आधुनिक परिधान बनाने की कला सीखने की तैयारी

गांव के लोग कहते हैं कि सरकार मदद कर उन्हें सस्ते दर पर पूंजी उपलब्ध करवाकर बाजार दिलवाए तो हमारी आमदनी बढ़ जाएगी। आधुनिक परिधान बनाने की कला भी यहां के लोग सीखना चाहते हैं। इसके लिए स्वयंसेवी संस्था फुलीन महिला चेतना विकास केंद्र ने सहयोग की हामी भरी है।

महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत फातिमा

इस गांव की हर महिला स्वावलंबी बन गई है। नजीर के तौर पर फातिमा खातून को लें। उसने अपनी मेहनत और खुद की कमाई से नया घर बनाया है। फातिमा ने बताया कि जीवन में काफी संघर्ष किया। पहले वह मनरेगा मजदूर थी। अपनी मेहनत उस काम में भी अव्वल रही। इस कारण 2010 में दिल्ली के विज्ञान भवन में उसे महात्मा गांधी नरेगा मजदूर सम्मेलन में कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी ने सम्मानित किया। 60 हजार नकद, प्रमाण पत्र व मंच पर बोलने का मौका मिला था। उसे सरकार ने श्रीलंका में आयोजित मजदूर सम्मेलन में भाग लेने भेजा था। अब इस काम में लगी है तो पूरी शिद्दत से जुटी है। उसने यहां की 28 महिलाओं ने मिलकर शिल्पी स्वयं सहायता समूह बनाया।

राज्यपाल ने की सराहना

गांव में वर्ष 2016 में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी आईं थीं। उन्होंने इस गांव की काफी सराहना की थी। यह भी कहा था कि यहां उन्हें आने में देर हो गई, उन्हें तो पहले आना चाहिए थे। गांव को आगे बढ़ाने के लिए जो भी मदद जरूरी होगी मिलेगी। अधिकारियों को बजट तैयार करने का निर्देश भी दिया था। अफसोस कि उनके जाने के बाद इस गांव का हाल जानने कोई भी अधिकारी नहीं आया।


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