Move to Jagran APP

इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानीभवन

मनोज सिंह/ करौं (देवघर) प्रखंड मुख्यालय स्थित 1929 में बना रानी भवन इतिहास के पन्नों में सिमटक

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 09:00 AM (IST)
इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानीभवन
इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानीभवन

मनोज सिंह/ करौं (देवघर): प्रखंड मुख्यालय स्थित 1929 में बना रानी भवन इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया है। वर्तमान में यह धरोहर है। एक समय करौं में बघेल राजवंश की चलती थी, लेकिन 1956 में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद सबकुछ खत्म हो गया। सारी शानो शौकत सिर्फ कहानी बनकर रह गई।

loksabha election banner

इस परिवार के सदस्य आज भी रानी भवन में निवास कर रहे हैं, लेकिन अब पहलेवाली बात नहीं रही। हालांकि करौं वासी आज भी राजपरिवार के सदस्यों को राजासाहब कहके ही बुलाते हैं। यहां के अंतिम राजा स्व. काली प्रसाद सिंह रहे हैं।

राजा दुर्गा प्रसाद सिंह झरिया से आकर 1903 में नीलामी के तहत करौं के 34 को खरीदा था। उनकी तीन रानियां रानी प्रयाग कुमारी देवी, रानी सुभद्रा कुमारी व रानी हेम कुमार थी। इनकी मृत्यु के बाद रानी प्रयाग कुमारी देवी को करौं, रानी सुभद्रा कुमारी को धनबाद स्थित धैया व रानी हेम कुमारी को परधा स्टेट का खरपोसदार के तौर पर मिला। इसके तहत संपत्ति का उपभोग तो कर सकती थी मगर इसे किसी भी परिस्थिति में बेच नहीं सकती। कोई संतान नहीं रहने के कारण चचेरे भाई शिव प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र काली प्रसाद सिंह का 1946 में राज्याभिषेक किया गया। इनके दो भाई उमा प्रसाद सिंह व रमा प्रसाद सिंह को 1949 में करौं स्टेट मिला। वर्तमान में उमा प्रसाद के दो पुत्र प्रसन्नजीत व शुभजीत सिंह एवं रमा प्रसाद सिंह के दो पुत्र राजेश प्रसाद सिंह सपरिवार करौं में निवास कर रहे हैं।

सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान

यहां के राजा ने अपने प्रजा के हित में कई कार्य किए। रानी मंदाकिनी के नाम से उच्च विद्यालय की स्थापना के लिए जमीन दान दी। इसके अलावा इनके जमीन पर करौं में प्रत्येक बुधवार को हाट लगता है। राजा तालाब का सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। राकेश प्रसाद सिंह का कहना है कि वर्तमान में उनकी जमीन पर भू माफियाओं की नजर है। उन्होंने बताया कि 1956 में जमींदारी प्रथा खत्म हो गयी। परंतु सरकार ने आजतक मुआवजा नहीं दिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.