सिद्धपीठों पर बजने लगा शक्ति की भक्ति का डंका
संवाद सहयोगी इटखोरी (चतरा) वासंतिक नवरात्र का कलश स्थापित होते ही चतरा जिला के प्रसिद्ध सि
संवाद सहयोगी, इटखोरी (चतरा): वासंतिक नवरात्र का कलश स्थापित होते ही चतरा जिला के प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां भद्रकाली, मां कौलेश्वरी तथा मां लेम्बोइया मंदिर परिसर में शक्ति की भक्ति का डंका बजने लगा है। जिले के इन तीनों सिद्धपीठों में मंगलवार को पूरे विधि विधान के साथ वासंतिक नवरात्र के कलश की स्थापना की गई। इस दौरान भगवती का दरबार माता के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। श्रद्धालु भक्तों ने पूरे जगत को कोरोना से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना माता रानी से की। कलश स्थापना से पूर्व मां भद्रकाली, मां कौलेश्वरी तथा मां लेम्बोइया की प्रतिमा का शैलपुत्री के रूप में श्रृंगार किया गया। घी व कपूर से माता की आरती उतारी गई। इसके बाद तीनों सिद्धपीठों पर शुभ मुहूर्त में नवरात्र के कलश की पूरे विधि विधान के साथ स्थापना हुई। ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर परिसर में प्रभारी अंचल अधिकारी सह मंदिर प्रबंधन समिति के पदेन सचिव विजय कुमार ने मंदिर के गर्भ गृह में नवरात्र के कलश की स्थापना की। तत्पश्चात श्रद्धालु भक्तों ने मंदिर के प्रथम कक्ष तथा परिक्रमा बरामदे में नवरात्र के कलश को स्थापित किया। नवरात्र का कलश स्थापित होने के पश्चात दुर्गा सप्तशती का प्रथम पाठ भी हुआ। वासंतिक नवरात्र के प्रथम दिन की महत्ता को देखते हुए मंदिर परिसर में स्थानीय भक्तों के अलावा दूरदराज के श्रद्धालु भी पूजा अर्चना के लिए पहुंचे हुए थे। सभी श्रद्धालु भक्तों को कोरोना की गाइडलाइन के साथ पूजा अर्चना में शामिल होना पड़ा। मंदिर के पुजारी नागेश्वर तिवारी ने बताया कि इस वर्ष वासंतिक नवरात्र पूरे नौ दिनों का है। नवरात्र में हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूप की पूजा होगी। 20 अप्रैल को संध्या सात बज कर सात मिनट के बाद नवरात्र की संधि बलि दी जाएगी। संधि बलि से पहले मां भद्रकाली की पूजा होगी। तत्पश्चात मंदिर के सामने साधना चबूतरा पर नवरात्र की संधि बलि का अनुष्ठान शुरू किया जाएगा। अष्टमी के दिन उपवास रहने के कारण उस दिन मंदिर में संधि बलि से पहले प्रसाद का चढ़ावा नहीं होगा। प्रसाद का चढ़ावा संधि बलि के पश्चात होगा। 21 अप्रैल को दुर्गा सप्तशती का अंतिम पाठ करने के पश्चात पूरे विधि विधान के साथ नवरात्र में स्थापित कलश को पवित्र महाने नदी में विसर्जित किया जाएगा। इसके बाद मंदिर परिसर में अवस्थित यज्ञशाला में हवन का आयोजन होगा। हवन के पश्चात मंदिर में नवरात्र के अनुष्ठान का विसर्जन भी कर दिया जाएगा।