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Lok Sabha Polls 2019: तब चतरा में नहीं, गया में होता था नामांकन

Lok Sabha Polls 2019. चतरा संसदीय क्षेत्र सन् 1957 में अस्तित्व में आया। लेकिन नामांकन की प्रक्रिया और वोटों की गिनती यहां 2004 से शुरू हुई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 04:47 PM (IST)Updated: Sun, 07 Apr 2019 04:47 PM (IST)
Lok Sabha Polls 2019: तब चतरा में नहीं, गया में होता था नामांकन
Lok Sabha Polls 2019: तब चतरा में नहीं, गया में होता था नामांकन

चतरा, [जुलकर नैन]। चतरा संसदीय क्षेत्र सन् 1957 में अस्तित्व में आया। लेकिन नामांकन की प्रक्रिया और वोटों की गिनती यहां 2004 से शुरू हुई। इससे पूर्व चतरा संसदीय क्षेत्र के लिए प्रत्याशियों का नामांकन, वोटों की गिनती एवं निर्वाचित उम्मीदवार की घोषणा हजारीबाग एवं गया से होती थी। उस वक्त की भौगोलिक परिस्थिति भी वैसी थी।

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चतरा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत चतरा, सिमरिया, बरही, कोडरमा, रजौली एवं नवादा विधानसभा आते थे। उस वक्त चतरा जिला नहीं बना था। हजारीबाग जिले का एक अनुमंडल था। उस दृष्टिकोण से हजारीबाग जिले का चार विधानसभा क्षेत्र चतरा संसदीय क्षेत्र में था। चूंकि कोडरमा भी उस वक्त जिला नहीं था। चतरा संसदीय क्षेत्र का नामांकन हजारीबाग में होता था और मतों की गिनती विधानसभा स्तर पर होती थी।

बैलेट पेपर की गिनती के बाद उसकी रिपोर्टिंग होती थी। उसके बाद निर्वाचन पदाधिकारी विजेता उम्मीदवार के नाम की घोषणा करते थे। यह सिलसिला 1971 के चुनाव तक चला। उसके बाद चतरा संसदीय क्षेत्र का परिसीमन हुआ। इसमें सिमरिया, बरही, कोडरमा, रजौली एवं नवादा को इससे अलग कर दिया गया। उनके स्थान पर लातेहार, पांकी और गया के इमामगंज, फतेहपुर व बाराचट्टी को शामिल किया गया।

इसके बाद 1977 से लेकर 1999 तक नामांकन प्रक्रिया और मतों की गिनती गया में हुई। चूंकि गया जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल थे। इसी बीच 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ। राज्य गठन के साथ ही चतरा संसदीय क्षेत्र का परिसीमन हुआ और बिहार के गया जिले के बाराचट्टी, इमामगंज और फतेहपुर विधानसभा की जगह चतरा के सिमरिया एवं लातेहार के मनिका विधानसभा को इसमें शामिल किया गया।

राज्य गठन के बाद पहली बार लोकसभा का चुनाव 2004 में हुआ। चुनाव की सारी प्रक्रिया यहीं संपन्न की गई। उसके बाद से यह क्रम आज तक जारी है। बैलेट पेपर की गिनती में तीन से चार दिन का समय लग जाता था। उम्मीदवारों के समर्थक और मतगणना अभिकर्ता चार दिनों तक वहां जमे रहते थे। समय बदला। अब ईवीएम से मतदान होने लगा। इसके बाद मतों की गिनती में अब पांच से छह घंटा ही लगता है। इस प्रकार समय के साथ-साथ परेशानियों से भी कार्यकर्ताओं को निजात मिल गई।


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