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खुली खदान, तो संकट में पड़ गई जान

जुलकर नैन, चतरा : कुछ वर्ष पहले तक अच्छी आबोहवा और शांत जीवन टंडवा की पहचान थी। वि

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 05:45 PM (IST)Updated: Wed, 19 Dec 2018 05:45 PM (IST)
खुली खदान, तो संकट में पड़ गई जान
खुली खदान, तो संकट में पड़ गई जान

जुलकर नैन, चतरा : कुछ वर्ष पहले तक अच्छी आबोहवा और शांत जीवन टंडवा की पहचान थी। विकास की रफ्तार ने शांति लील ली तो एक लाख की आबादी वाले प्रखंड में तीन हजार लोग टीबी, दमा, एलर्जी जैसी बीमारी के शिकार हो गए। सिविल सर्जन कहते हैं कि आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह होगी। हाल के वर्षो में हजारों, हजार पेड़ कोल और बिजली प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ गए। बड़की नदी का पानी गर्मी के दिनों में जिसे पीने के काम लाया जाता था काला हो गया है। जब से यहां पर एनटीपीसी की उत्तरी कर्णपुरा मेगा विद्युत ताप परियोजना और सेंट्रल कोल फील्ड्स लिमिटेड की आम्रपाली व मगध परियोजना खुली है, लोगों का जीना मुहाल हो गया है। वायुमंडल में धूलकण और कार्बन की मात्रा बढ़ गई है। जिससे सांस की बीमारी दमा, टीबी, आंखों में लालीपन, बहरापन, एजर्ली आदि का प्रकोप बढ़ गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रखंड की कुल आबादी का तीन फीसद यानी तीन हजार से ज्यादा लोग ग्रसित हैं। इन परियोजनाओं की स्थापना के महज चार वर्ष हुए हैं। लिहाजा यह आंकड़ा दिल दहला देने वाला है। टंडवा पिपरवार से लेकर मिश्रौल तक औद्योगिक हब के रूप में विकसित हो रहा है। पिपरवार में सीसीएल की पिपरवार और अशोका कोल परियोजना है, तो टंडवा में आम्रपाली एवं मगध के साथ-साथ एनटीपीसी की उत्तरी कर्णपुरा मेगा विद्युत ताप परियोजना की स्थापना हो रही है। उत्तरी कर्णपुरा मेगा ताप परियोजना से बिजली का उत्पादन अगले वर्ष शुरू हो जाने की संभावना है। ताप परियोजना का निर्माण कार्य तेजी से हो रहा है। निर्माण कार्य को लेकर सैकड़ों गाड़ियां रोज दौड़ती हैं। कोल खदानों के खुलने के बाद प्रदूषण और कार्बन में इजाफा हो गया। कोयले का खनन और उसका परिवहन से पूरा वातावरण प्रभावित है। सड़क के किनारे बसे लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। रसोई घर तक कार्बन मिश्रित धूलकण की परत जमी रहती है। यहां की सदाबह और बड़की नदी का पानी काला हो गया है।

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परियोजनाओं के लिए काटे गए हजारों पेड़

एनटीपीसी , आम्रपाली एवं मगध कोल परियोजनाओं के लिए हजारों हजार पेड़ों को काट दिया गया। मगध के लिए 25 एकड़ से अधिक वन भूमि तो आम्रपाली के लिए 57 एकड़ वन भूमि पर कटाई हुई। एनटीपीसी तो करीब दो हजार एकड़ रैयती भूमि पर काम कर रहा है। कोल परियोजना से अरबों की आमदनी हो रही है मगर पानी का छिड़काव तक मुकम्मल तरीके से नहीं होता।

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दोगुना प्रदूषण

मोटे तौर पर एक सौ माइक्रोग्राम पर दस क्यूबीक मीटर प्रदूषण का स्टैंडर्ड मानक है। लेकिन टंडवा का प्रदूषण इससे दोगुना के करीब है। कोलियरी और औद्योगिक इकाइयों के स्थापित होने के साथ यहां प्रदूषण का स्तर बढ़ता गया है।

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एनटीपीसी में तीन स्थानों पर मापक यंत्र

आम्रपाली और मगध कोलरी में कहीं भी प्रदूषण मापक यंत्र नहीं है। एनटीपीसी ने परियोजना क्षेत्र में तीन स्थानों डेढ़- दो माह पहले इन यंत्रों को लगाया गया है। एनटीपीसी के सहायक प्रबंधक सह जनसंपर्क पदाधिकारी गुलशन टोप्पो का मानना है कि बिजली उत्पन्न शुरू होते ही प्रदूषण की समस्या खत्म हो जाएगी।

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भयावह हो सकती है स्थिति, ग्रामीण पहने मास्क

प्रदूषण और कार्बन की मात्रा में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। इसके दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं। सौ में तीन से चार लोग हंफनी, खासी, आंखों में लालीपन, बहरापन आदि रोगों से ग्रसित पाए जा रहे हैं। बचाव के लिए ग्रामीण मास्क का प्रयोग करें। धूल-कणों का असर धीरे-धीरे दिखता है। परियोजनाओं को स्थापित हुए अभी तो चार- साढ़े चार वर्ष ही हुए हैं। दो तीन वर्षों के बाद स्थिति और भयावह हो सकती है।

डॉ. एसपी ¨सह, सिविल सर्जन, चतरा।

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स्वाभाविक है प्रदूषण

टंडवा क्षेत्र में प्रदूषण और कार्बन की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है। सामान्य से दोगुना प्रदूषण है। स्वभाविक तौर पर , जहां पर कोयले का खनन, परिवहन होगा, कल कारखाने होंगे, वहां का वातावरण प्रदूषित हो ही जाता है।

अशोक कुमार यादव, क्षेत्रीय पदाधिकारी, झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, क्षेत्रीय कार्यालय, हजारीबाग।


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