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तौलिए का कफन, भाई की बांहें बनीं अर्थी; निकली शवयात्रा

कफन के नाम पर एक तौलिया चेहरे को ढंके था और भाई-भाभी की बांहें अर्थी बनी हुई थी।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 10 Jul 2017 09:39 AM (IST)Updated: Mon, 10 Jul 2017 12:18 PM (IST)
तौलिए का कफन, भाई की बांहें बनीं अर्थी; निकली शवयात्रा
तौलिए का कफन, भाई की बांहें बनीं अर्थी; निकली शवयात्रा

अलख/अमन, चतरा। गरीबों को मुफ्त इलाज व बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे के बीच झारखंड में व्यवस्था बदहाल है। कुछ अधिकारी और कर्मचारी तो बदलने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में तमाशा पूरी व्यवस्था का बनता है और ऐसा ही हुआ है चतरा सदर अस्पताल में। यहां एक गरीब आदिवासी युवक की लाश को ले जाने के लिए घंटों केवल इस कारण से एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हो पाई, क्योंकि उसके परिजनों के पास किराया चुकाने के लिए चार हजार रुपये नहीं थे।

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चार घंटे तक हाथ-पैर जोड़ने व गरीबी का रोना रोने पर भी अस्पताल के अधिकारी नहीं पसीजे तो युवक के भाई और भाभी पैदल ही लाश उठाकर चलने लगे। कफन के नाम पर एक तौलिया चेहरे को ढंके था और भाई-भाभी की बांहें अर्थी बनी हुई थी। काफी दूर, लगभग 200 मीटर इसी प्रकार से अंतिम यात्रा चली तो लोगों ने सुध ली। हंगामा मचा और मीडिया के हस्तक्षेप के बाद एसडीओ की पहल पर एंबुलेंस की सेवा उपलब्ध कराई गई। 

चतरा में मरीज़ का सही तरीके से इलाज नहीं करने और मरने के बाद तुरंत एंबुलेंस मुहैया नहीं कराने को सीएम रघुवर दास ने गंभीरता से लिया है। पूरे मामले में 2 डॉक्टर को तत्काल निलंबित करने का आदेश दिया है। पूरे मामले में सीएम ने जांच के आदेश दिए हैं। 24 घंटे में ये भी जांच करने को कहा गया है कि अस्पताल में दवा क्यों नहीं थी। सीएम ने अस्पताल प्रबंधक डॉ निशांत कुमार और अस्पताल उपाधीक्षक डॉ कृष्ण कुमार को तत्काल निलंबित करने का आदेश स्वास्थ्य विभाग को दिया है।

जानकारी के अनुसार, टंडवा प्रखंड के शिदपा गांव निवासी आदिवासी युवक राजेंद्र उरांव को शनिवार रात संभवत: विषैले सांप ने काट लिया था। किसी ने देखा नहीं। इसके बाद राजेंद्र के परिजन उसे सुबह आठ बजे ऑटो से लेकर सदर अस्पताल पहुंचे। राजेंद्र की पत्नी सुनीता देवी और उसका दुधमुंहा बच्चा भी था। ड्यूटी पर तैनात प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. श्यामनंदन ¨सह ने उसका उपचार किया।

उपचार के क्रम में करीब साढे़ आठ बजे उसकी मौत हो गई। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने सदर थाना पुलिस को इसकी जानकारी दी और पोस्टमार्टम के बाद दोपहर करीब 12 बजे शव परिजनों को सौंप दिया। लेकिन, शव घर तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की गई। शव ले जाने के लिए परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन से एंबुलेंस की मांग की तो कथित रूप से परिजनों से चार हजार रुपये की मांग की गई। जिसने भी नजारा देखा, वह दहल गया लाश को उठाकर ले जाते परिजनों को रास्ते में जिसने भी देखा वह द्रवित हुए बिना नहीं रह सका।

शव लेकर राजेंद्र के बड़े भाई लक्ष्मण उरांव और भाभी सीता देवी पैदल चल रहे थे। पीछे-पीछे रोती-बिलखती राजेंद्र की पत्नी भी चल रही थी। सीता देवी दोनों हाथों से शव के दोनों पैर उठाकर चल रही थी, जबकि उसकी पीठ पर दुधमुहां बच्चा गमछी से बंधा था। करीब 200 मीटर दूरी तय करने के बाद परिजनों ने शव को मुख्य डाकघर के पास रख दिया।

सूचना पाकर पहुंची दैनिक जागरण की टीम ने इसकी सूचना सदर अनुमंडल पदाधिकारी नंदकिशोर लाल को दी। इसके बाद एसडीओ ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बीडीओ को एंबुलेंस उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। एसडीओ का निर्देश मिलते ही अस्पताल प्रबंधन भी मौके पर पहुंच गया और आनन-फानन में किराए के एंबुलेंस से शव को उसके पैतृक गांव भेजा गया।

हाईकोर्ट का है निर्देश सभी अस्पताल में गरीबों को निश्शुल्क शव वाहन उपलब्ध कराएं

पिछले दिनों गढ़वा सदर अस्पताल में एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं देने के मामले पर हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और इस जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था, राज्य के सभी अस्पतालों में गरीबों के निश्शुल्क शव वाहन उपलब्ध कराएं। उसके बाद भी प्रदेश में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

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मेरे संज्ञान में वाहन नहीं होने का मामला नहीं आया था। यदि ऐसा था, तो परिजनों को खबर करनी चाहिए थी। बाद में एंबुलेंस उपलब्ध करा दिया गया।
-डॉ. श्यामनंदन ¨सह, प्रभारी सिविल सर्जन, चतरा।

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मामला गंभीर है। सिविल सर्जन को पूरे मामले की जांच करने का आदेश दिया गया है। राजेंद्र के परिजन आपत्ति जताते हैं तो इसकी भी जांच होगी उन्हें किस प्रकार की दवाएं दी गई थीं।

-संदीप सिंह, उपायुक्त, चतरा।

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