प्रदूषण अभियान ::::: नदी-नालों का अस्तित्व खतरे में, प्रदूषित हो गया जल
जागरण संवाददाता चतरा एनटीपीसी और सीसीएल को आने से टंडवा को औद्योगिक पहचान मिली है।
जागरण संवाददाता, चतरा : एनटीपीसी और सीसीएल को आने से टंडवा को औद्योगिक पहचान मिली है। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि वहां की इंसानी जिदगियां संकट में है। प्रदूषण बड़े पैमाने पर बढ़ा है। इतना ही नहीं यहां की दो नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
सीसीएल की आम्रपाली और मगध परियोजना से हो रहे कोयले के उत्खनन को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए सीसीएल अधिकारियों ने बड़की नदी और गरही नदी को संकीर्ण बना दिया है। नदियों के किनारा को भर कर कोयला परिवहन कार्य के लिए सड़क बना दिया। इतना ही नहीं बड़की नदी का सहायक बिगलात नाला का अस्तित्व तो मिट ही गया है। बिगलात नाला में आम्रपाली को कोल माइंस है। कोयला के उत्खनन से नाला का नामो-निशान मिट गया। इतना ही नहीं, जिस दिन आम्रपाली और मगध कोल परियोजना का विस्तार होगा, उस दिन दामोदर की सहायक नदियां असना तरी, सदावह, लारंगा पहाड़ी नदी आदि सात आठ नदियों का अस्तित्व मिट जाएगा। इन दोनों परियोजनाओं को आने वाले वर्षों में विस्तार होना तय माना जा रहा है। बड़की नदी टंडवा का लाइफ लाइन है। प्रखंड मुख्यालय एवं निकटवर्ती गांव बड़की नदी के पानी पर ही आश्रित हैं। नदी के बोर वेल से प्रखंड मुख्यालय में जलापूर्ति होता है। कोयले के निर्बाध गति से हो रहे उत्खनन और परिवहन से बड़की नदी और गहरी नदी प्रदूषित हो गई है। लोग प्रदूषित पानी पीने को विवश हैं। यहां पर उल्लेखनीय है कि कोयला के धूल-कण से परियोजना क्षेत्र में निवास करने वाले लोग आंख और कान की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। तीन वर्ष पूर्व सिमरिया के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी मुमताज अली अहमद द्वारा सीसीएल अधिकारियों को दिए गए नोटिस से इसकी पुष्टि होती है।