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कुष्ठ रोगियों में इजाफा, संख्या पहुंची 191 पहुंची

चेहरे के रंग में बदलाव होने लगता है। कुछ मरीजों का चेहरा सुनहरा हो जाता है तो कुछ का रंग काला पड़ जाता है। उसके बाद चमड़े में सुनापन आने लगता है। हाथ-पैरों में सूजन आ जाती है। पैरों में झनझनी होने लगती है। धीरे-धीरे प्रभावित अंगों में दर्द होने लगता है। अगर इस पर मरीज

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 08:42 PM (IST)Updated: Mon, 30 Dec 2019 06:14 AM (IST)
कुष्ठ रोगियों में इजाफा, संख्या पहुंची 191 पहुंची
कुष्ठ रोगियों में इजाफा, संख्या पहुंची 191 पहुंची

संवाद सहयोगी, चतरा : जिले में कुष्ठ रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बढ़ती संख्या चिता का विषय है। संक्रामक एवं गंभीर रोगों के उन्मूलन को लेकर सरकार लाखों-करोड़ो रुपए खर्च कर रही है। बावजूद इसकी संख्या घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। रोगियों में बच्चे व वयस्क की संख्या सबसे अधिक है। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2019 से लेकर दिसंबर तक कुष्ठ रोगियों की संख्या 191 पहुंच गई है। इनमें 141 अति जीवाणु गंभीर मरीज (एमबी) है। जबकि 50 मरीज अल्प जीवाणु जनित सामान्य कुष्ठ (पीबी) है। वर्ष 2018 में कुष्ठ रोगियों की संख्या 185 थी। एमबी मरीजों का इलाज 12 महीने तक चलता है। जबकि पीबी मरीजों को इलाज छह माह तक चलता है। अगर कोई मरीज छूट जाते है, तो संबंधित प्रखंडों के सहिया को संपर्क कर मरीज का हाल चाल व दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही है। उसके लिए सहिया को प्रोत्साहन राशि भी दिया जाता है। बावजूद इसकी संख्या में घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य अधिकारी बताते हैं कि साल में तीन से चार बार अभियान चलाकर डोर-टू-डोर कुष्ठ मरीजों को खोजा जा रहा है। मरीजों को चिहित कर सदर अस्पताल में इलाज के लिए भेजा जा रहा है। मरीजो के उपचार के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। जिले के सभी छह सीएचसी व पीएचसी पर कुष्ठ की दवाएं उपलब्ध हैं। कुष्ठ की पहचान के बाद संक्रामक रोगी को एक वर्ष व असंक्रामक रोगी को छह माह दवा खिलाई जा रही है। इतना ही नही कुष्ठ उन्मूलन की दिशा में लगातार बेहतर कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रत्येक सप्ताह डिस्ट्रिक्ट न्यूक्लियस टीम कुष्ठ मरीजों से मिलकर उनका स्वास्थ्य जांच कर रहे है। मरीजों के बीच एमसीआर चप्पल का वितरण भी किया जा रहा है।

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कुष्ठ रोगियों के पहचानने का तरीका कुष्ठ बीमारी के शुरुआती दौर में चेहरे के रंग में बदलाव होने लगता है। कुछ मरीजों का चेहरा सुनहरा हो जाता है तो कुछ का रंग काला पड़ जाता है। उसके बाद चमड़े में सुनापन आने लगता है। हाथ-पैरों में सूजन आ जाती है। पैरों में झनझनी होने लगती है। धीरे-धीरे प्रभावित अंगों में दर्द होने लगता है। अगर इस पर मरीज ने ध्यान नहीं दिया तो बीमारी बढ़ने लगती है और विकलांगता की स्थिति बनने लगती है।

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अधिकारी वर्जन

सभी सीएचसी व पीएचसी में प्रचुर मात्रा में दवाइयां उपलब्ध है। कुष्ठ उन्मूलन की दिशा में लगातार बेहतर कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है।

डॉ. श्यामनंदन सिंह, जिला कुष्ठ निवारण पदाधिकारी, चतरा।


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