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झारखंड की शादियों में होने वाली इस खास रस्म के बारे में कितना जानते हैं आप, सदियों से चली आ रही परंपरा

हिंदू धर्मावलंबियों की शादी विवाह में मटकोर रस्म का एक अलग ही महत्व है। वर हो या वधु की विवाह यह रस्म अवश्य पूरा किया जाता है। मटकोर और हल्दी रस्म पूरे विधि विधान के साथ-साथ उल्लास के साथ संपन्न किया जाता है।

By Julqar NayanEdited By: Mohit TripathiPublished: Sun, 07 May 2023 06:43 PM (IST)Updated: Sun, 07 May 2023 06:43 PM (IST)
झारखंड की शादियों में होने वाली इस खास रस्म के बारे में कितना जानते हैं आप, सदियों से चली आ रही परंपरा
पूर्वजों द्वारा बना नियम आज भी है कायम, एकता का दे रहा संदेश

लक्ष्मण दांगी, गिद्धौर(चतरा): हिंदू धर्मावलंबियों की शादी विवाह में मटकोर रस्म का एक अलग ही महत्व है। वर हो या वधु की विवाह यह रस्म अवश्य पूरा किया जाता है। मटकोर और हल्दी रस्म पूरे विधि विधान के साथ-साथ उल्लास के साथ संपन्न किया जाता है।

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जीवन में परंपराओं का अपना एक अलग महत्व है, जो विश्वास और श्रद्धा के आधार पर आज भी जीवित हैं। मटकोर का रस्म गिद्धौर में 500 साल पहले से होती आ रही है। आश्चर्य की बात है की यह रस्म गिद्धौर में मात्र एक ही जगह होती आ रही है। घनी आबादी होने के बावजूद भी एक ही जगह मटकोर होना आपसी भाईचारा के साथ-साथ एकता का संदेश दे रहा है।

वयोवृद्ध देवकी महतो बताते हैं कि पूर्वजों द्वारा बनाया गया नियम आज भी लागू है। नियम को तोड़ने और बदलने की साहस किसी में नहीं है। गिद्धौर में मटकोर ऊपर मोहल्ला के पैनिया नामक स्थान पर ही होता आ रहा है। इस जगह पर हिंदू समुदाय के सभी जाति के लोग विवाह शादी में मटकोर का रस्म निभाते आ रहे हैं।

मटकोड़ शादी के पहले रस्म शगुन उठान के बाद ही होता है। मटकोरा शब्द अपने मूल रूप में क्या था इस का आज कोई उत्तर उपलब्ध नहीं है। मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है, तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं।

महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है।

इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाया जाता है।


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