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अतीत के वैभव की ओर अग्रसर इटखोरी का ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर, मास्टर प्लान के धरातल पर उतरने का इंतजार

इटखोरी का ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मां भद्रकाली मंदिर परिसर अतीत का वैभव प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। पर्यटन विभाग के द्वारा 500 करोड़ रूपए की लागत से बनाया गया मास्टर प्लान इस धर्म संगम की समृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

By Julqar NayanEdited By: Mohit TripathiPublished: Mon, 20 Feb 2023 12:28 AM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2023 12:28 AM (IST)
अतीत के वैभव की ओर अग्रसर इटखोरी का ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर, मास्टर प्लान के धरातल पर उतरने का इंतजार
मां भद्रकाली मंदिर परिसर के विकास के लिए 500 करोड़ रुपए की बनी हुई है योजना।

जय शर्मा, चतरा: इटखोरी का ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मां भद्रकाली मंदिर परिसर अतीत का वैभव प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। पर्यटन विभाग के द्वारा 500 करोड़ रूपए की लागत से बनाया गया मास्टर प्लान इस धर्म संगम की समृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

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सरकारी फाइलों की धूल फांक रही फाइलें

जरूरत है मास्टर प्लान की योजनाओं को धरातल पर उतारने की लेकिन तीन साल से मास्टर प्लान की योजना की फाइल सरकारी उदासीनता की वजह से धूल फांक रही है।

यह सर्व विदित है कि 9वीं 10वीं शताब्दी कालखंड में मां भद्रकाली मंदिर परिसर एक समृद्ध धार्मिक स्थल था। यहां के मठ मंदिर विकसित शिल्प कला से बने थे। इसका प्रमाण मंदिर के म्यूजियम में आज भी मौजूद हैं।

त्रिरथ पद्धति से नागर शैली में बनाए गए थे मंदिर

रेड सेंडस्टोन को तराश कर बनाई गई कलाकृतियों से सुसज्जित पत्थरों से यहां उस कालखंड में मंदिरों का निर्माण हुआ था। यहां के मठ और मंदिर त्रिरथ पद्धति से नागर शैली में बनाए गए थे। इस बात की पुष्टि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के द्वारा भी की जा चुकी है।

12 वीं 13 वीं शताब्दी तक जीवित थी विरासत

पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 9वीं-10वीं शताब्दी कालखंड से लेकर 12 वीं 13 वीं शताब्दी तक यह पवित्र स्थल काफी विकसित था। एक विध्वंस के बाद यह धार्मिक नगरी पूरी तरह ध्वस्त होकर दुनिया की नजरों से ओझल हो गई।

18वीं शताब्दी में चरवाहे ने खोजी विध्वंस धार्मिक नगरी

18 वीं शताब्दी कालखंड में जंगल में पशु चराने वाले चरवाहों ने विध्वंस में तबाह हुई इस धार्मिक नगरी की खोज की। इसके बाद शुरू हुआ इस स्थल को पुनस्थापित करने का अनवरत सिलसिला जो आज तक जारी है। मां भद्रकाली मंदिर परिसर के विकास में 1968,1983, 2007 तथा 2015 काफी महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।

1968 के बाद धीरे-धीरे मंदिर परिषर का हुआ विकास

1968 में चोरी होने के बाद मां भद्रकाली की प्रतिमा की वापसी से क्षेत्र के लोगों में माता के प्रति काफी आस्था बढ़ गई। इसके बाद लोगों ने धीरे-धीरे मंदिर परिसर का विकास करना शुरू किया।

1983 में ऐतिहासिक सहस्त्र चंडी महायज्ञ के आयोजन से इस स्थल को अपनी एक पहचान मिली। पहले मां भद्रकाली विकास समिति तथा इसके बाद मां भद्रकाली मंदिर प्रबंधन समिति के सौजन्य से विध्वंस में ध्वस्त हुए मंदिरों को पुनस्थापित किया गया।

2007 में वन विभाग ने कराए कई विकास कार्य

2007 में पर्यटन विभाग के द्वारा निर्गत एक करोड़ साठ लाख रुपए की राशि से वन विभाग ने मंदिर परिसर में विकास के कई काम किए। वहीं 2015 में शुरू हुए इटखोरी महोत्सव के माध्यम से मंदिर परिसर में अनवरत विकास का एक महा अनुष्ठान ही शुरू कर दिया गया।

महोत्सव का आयोजन शुरू होने के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म की इस संगम स्थली को विकसित करने का बीड़ा उठाया। इसके तहत मंदिर परिसर में तीन करोड़ रुपये की लागत से डाक बंगला, ढाई करोड़ रुपए की लागत से विद्युत की व्यवस्था की गई।

साढ़े चार करोड़ की लागत से अत्याधुनिक म्यूजियम का निर्माण

साथ ही साढ़े चार करोड़ रुपए की लागत से अत्याधुनिक म्यूजियम का भी निर्माण शुरू किया गया। लेकिन राज्य में सरकार बदलने के बाद मां भद्रकाली मंदिर परिसर में पर्यटन विकास के लिए बनाए गए मास्टर प्लान योजना की फाइल संदूक में बंद हो गई।

जबकि मास्टर प्लान के तहत मंदिर परिसर में 200 करोड़ रुपए की लागत से दुनिया का सबसे ऊंचा प्रेयर व्हील, मेगा प्लाजा गेट, आडिटोरियम, रिवर फ्रंट आदि का निर्माण किया जाना है।


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