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कम लागत में अधिक उत्पादन पर दिया गया बल

स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र में शुक्रवार को अनुसूचित जाति उपयोजना अन्तर्गत कृषि परिचर्चा एवं जागरूकता कार्यक्रम पर एक दिवसयी प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। यह आयोजन भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान नामकुभ रांची के तत्वधान में किया गया। प्रशिक्षण में डा. निर्मल कुमारप्रधान वैज्ञानिक सह प्रोद्योगिकी हस्तांरण विभाग के अध्यक्ष डा. ज्योतिर्मलय घोष प्रधान वैज्ञानिक डा. वैभव डी लोहोदवरिष्ठ वैज्ञानिक भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान नामकुभरांची उपस्थित थे। प्रशिक्षण में सदर प्रखंड के जांगी गांव के

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 07:50 PM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 06:22 AM (IST)
कम लागत में अधिक उत्पादन पर दिया गया बल
कम लागत में अधिक उत्पादन पर दिया गया बल

संवाद सहयोगी, चतरा : स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र में शुक्रवार को अनुसूचित जाति उपयोजना अंतर्गत कृषि परिचर्चा एवं जागरूकता कार्यक्रम पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण में डॉ. निर्मल कुमार, प्रधान वैज्ञानिक सह प्रोद्योगिकी हस्तांरण विभाग के अध्यक्ष डा. ज्योतिर्मलय घोष, प्रधान वैज्ञानिक डा. वैभव, डी लोहोद, वरिष्ठ वैज्ञानिक भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, नामकुम, रांची उपस्थित थे। प्रशिक्षण में सदर प्रखंड के जांगी गांव के 80 अनुसूचित जाति के प्रशिक्षणार्थी ने भाग लिया। प्रशिक्षण की शुरुआत करते हुए वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डा. रंजय कुमार सिंह ने बताया कि उक्त कार्यक्रम अनुसूचित जाति के विकास के लिए लॉह अनुसंधान केंद्र नामकुम के सहयोग से जांगी गांव में कराया जा रहा है। प्रशिक्षण के दौरान प्रधान वैज्ञानिक डॉ निर्मल कुमार सिंह ने किसानों को योजना से संबंधित विस्तृत जानकारी दी। कृषि उत्पादन को बढ़ाते हुए लागत खर्च को कम करने का विस्तृत जानकारी दिया। प्रशिक्षण में डा. ज्योतिर्मलय घोष, प्रधान वैज्ञानिक ने किसानों को बताया कि तालाब में मछली पालन के साथ बतख पालन का समन्वित खेती लाभप्रद व्यवसाय है। मछली सह बतख पालन से प्रोटीन उत्पादन के साथ बतखों के मलमूत्र का उचित उपयोग होता है। मछली सह बतख पालन से प्रति हेक्टयर प्रतिवर्ष 2500 से 3000 किलोग्राम, मछली 15000-18000 अंडे व 500-600 किलोग्राम बतख के मांस का उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रकार के मछली पालन में न तो जलक्षेत्र में कोई खाद उर्वरक डालने की आवश्यकता है। और न ही मछलियों को पूरक आहार देने की आवश्यकता है। मछली पालन पर लगने वाली लागत 40 से 60 प्रतिशत कम हो जाती है। पाली जाने वाली मछलियां और बतखें एक दूसरे की अनुपूरक होती हैं। प्रशिक्षण में डा. वैभव, डॉ. लोहोद, वैज्ञानिक धर्मा उरांव ने भी किसानों को संबोधित किया। प्रशिक्षण में कृषि विज्ञान केन्द्र उपेन्द्र कुमार सिंह, जुनैद आलम, रूपलाल कुमार भोक्ता, किशोरी कान्त मिश्र, अभिजित घोष, नवल किशोर, बसंत ठाकुर, नेपाल ठाकुर, लालमनी ठाकुर सहित अन्य उपस्थित थे।

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