कोरांबे गांव में शुभ कार्य के पहले होती है वृक्षों की पूजा
पत्थलगडा (चतरा) : पत्थलगड़ा के कोरांबे के लोगों का प्रकृति प्रेम, वृक्षों से लगाव कुछ अजीब स
पत्थलगडा (चतरा) : पत्थलगड़ा के कोरांबे के लोगों का प्रकृति प्रेम, वृक्षों से लगाव कुछ अजीब सा है। जंगल-पहाड़ों से घिरे प्रकृति की गोद में बसे इस गांव में लोग किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य के पूर्व कुलदेवी, देवी-देवताओं की पूजा के पहले वृक्षों की पूजा करते हैं। पर्यावरण संरक्षण का मंगल संकल्प लेते हैं। यहां तक कि रक्षा बंधन के मौके पर बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधने के पहले वृक्षों को राखी बांधती हैं। जंगल और पहाड़ों से घिरे कोरांबे के लोगों में पर्यावरण सुरक्षा का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। यही वजह है कि वे देवताओं से पहले पेड़ों की पूजा करते हैं। रक्षाबंधन, नागपंचमी, दशहरा, दीपाली, छठ, होली जैसे त्योहार हों या शादी विवाह को लेकर पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान या फिर धान रोपनी हर शुभ कार्य से पहले वनदेवी की पूजा की जाती है। गांव के लोग पेड़ पौधों को ही देवता मानते हैं। गांव के लोग ढोल बाजे के साथ जंगल में पहुंचते हैं और उत्सवी माहौल में विधिवत जंगल में वृक्षों की पूजा करते हैं। पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेते हैं। इसी का नतीजा है कि यहां जंगल पनप रहे हैं। वनों की हरियाली देखते बनती है।
क्या कहते हैं ग्रामीण
गांव के जानकी ठाकुर और विजय गंझू बताते हैं कि गांव के लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति खासे जागरूक हैं। यहां के बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक का पेड़ पौधों से गहरा लगाव है। चारों ओर जंगलों और पहाड़ों से घिरे इस गांव के लोग हर प्रकार के शुभ कार्य की शुरुआत वृक्षों की पूजा से करते हैं। गांव में रोजाना संध्या में चौपाल का आयोजन होता है। चौपाल मे लोग वाद्य यंत्रों के साथ पहुंचते हैं और विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक गीतों के माध्यम से जंगल की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के गीत गाते हैं। गीत के माध्यम से लोगों को पर्यावरण की महत्ता बताई जाती है। भाई की कलाई के पहले वृक्षों को राखी
यहां रक्षा बंधन का त्योहार भी अलग तरीके से मनाया जाता है। गांव की बहन, बेटियां भाई की कलाई से पहले वृक्षों को राखी बांधती हैं। पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेती है। इसके बाद भाईं की कलाई पर राखी बांधकर त्यौहार मनाती है। यहां साल में एक बार वन महोत्सव का आयोजन होता है। गांव के महिला, पुरुष, बुजुर्ग और बच्चे बाजे-गाजे के साथ जंगल में पहुंचते हैं और हरे भरे पेड़ों पर राखी बांधते हैं व जंगल बचाने का संकल्प लेते हैं। उसके बाद वन भोज का आयोजन होता है। यहां इस आयोजन में दिनभर लोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का आनंद लेते हैं। मौके पर विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होता है। इस दिन पूरे गांव में बड़े त्योहार सा उत्साह और जश्न का माहौल होता है।