डीसी ने करमाली माइंस पर सरकार से मांगा मार्ग दर्शन
उपायुक्त जितेंद्र कुमार ¨सह ने करमाली माइंस का स्थायी हल के लिए मामले को राज्य सरकार के समक्ष हस्तानांतरित कर दिया है। डीसी ने पूरे मामले की वस्तू स्थिति को स्पष्ट करते हुए सरकार को रिपोर्ट की है और खनन सचिव से मार्ग दर्शन मांगा है। जब तक सरकार का मार्ग दर्शन प्राप्त नहीं होता है, तब तक पत्थर का खनन कार्य ठप रहेगा। वशिष्ठ नगर थाना क्षेत्र के करमाली गांव में माइंस को लेकर पिछले कुछ
चतरा : करमाली माइंस का स्थायी हल के लिए उपायुक्त जितेंद्र कुमार ¨सह ने मामले को राज्य सरकार के समक्ष हस्तानांतरित कर दिया है। डीसी ने पूरे मामले की वस्तू स्थिति को स्पष्ट करते हुए सरकार को रिपोर्ट की है और खनन सचिव से मार्ग दर्शन मांगा है। जब तक सरकार का मार्ग दर्शन प्राप्त नहीं होता है, तब तक पत्थर का खनन कार्य ठप रहेगा। वशिष्ठ नगर थाना क्षेत्र के करमाली गांव में माइंस को लेकर पिछले कुछ समय से काफी विवाद हो रहा है। ग्रामीण और लीजधारकों के बीच उत्पन्न विवाद के कारण विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो गई थी। सोमवार को डीसी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि करमाली माइंस को लेकर पिछले कुछ समय से अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर कई प्रकार की खबरें प्रकाशित और प्रचारित हो रही है। लेकिन इसमें सत्यता कम और भ्रामकता अधिक है। उन्होंने कहा कि किसी ने भी उनसे इस पर तथ्य जानने का प्रयास नहीं किया। डीसी ने कहा कि करमाली गांव में कुल पांच माइंसों को लीज दिया गया है। जिसमें तीन का लीज वर्ष 2016 में और दो का वर्ष 2017 में स्वीकृत हुआ है। वर्ष 2016 में स्वीकृत हुए लीजों से उत्खनन का कार्य चल रहा था। लेकिन इसी बीच जब 2017 के लीजधारक खनन का कार्य शुरू किया, तो कुछ ने आपत्ति दर्ज की। खाता नंबर 1 प्लॉट नंबर 2 पर पांचों कंपनियों को पत्थर खनन का लीज दिया गया है। इस पर ग्रामीणों ने पुरजोर विरोध किया। जनाआक्रोश के मद्देनजर उपायुक्त ने माइंस वैधता की जांच के लिए अपर समाहर्ता के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय टीम गठित की। जांच टीम ने भूमि वैद्धता, पर्यावरणीय शर्तो और भूजल स्तर के पैमाने पर रिपोर्ट दी। जांच रिपोर्ट के मुताबिक जिस जमीन पर लीज दिए गए वह सर्वे खतियान में गैरमजरूआ खास जंगल झाड़ी दर्ज है। जबकि रजिस्टर टू में गैर मजरूआ है। रजिस्टर टू में 1862-63 एंव 1970 से संबंधित उक्त सारी जमीन अंकित है। डीसी ने इसके बाद संबंधित लीज धारकों से पक्ष रखने के लिए नोटिस किया। लीजधारकों ने अपने अधिकवक्ता के माध्यम से पक्ष रखा। उसके बाद दोनों रिपोर्ट को कंपाइल करते हुए महाधिवक्ता से राय मांगी। महाधिवक्ता ने 25 अक्टूबर 1980 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी रू¨लग का हवाला देते हुए खनन कार्य शुरू करने का सलाह दिया था। जिसके बाद खनन का आदेश दिया गया। लेकिन इसी बीच 24 अक्टूबर को खनन कार्य शुरू कराने के क्रम में पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प हो गई। जिसमें नौ लोग जख्मी हो गए। डीसी ने कहा कि विधि-व्यवस्था की समस्या को देखते हुए खनन कार्य को अगले आदेश तक रोक लगाने का निर्देश दिया गया और उसके बाद पूरे मामले की रिपोर्ट खनन सचिव को भेज दिया गया। इधर खनन कार्य का विरोध करने वालों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1980 एवं 1995 के उस आदेश को विलोपित करते हुए 1996 में एक रू¨लग जारी किया है कि गैरमजरूआ खास जंगल झाड़ी की जमीन पर लीज नहीं दिया जा सकता है। यह अधिकार किसी को नहीं है। लेकिन उसके बाद भी करमाली में लीज दिया गया है। इधर दूसरी ओर पांचो लीजधारक हाई कोर्ट गए हैं। उपायुक्त का कहना है कि सरकार का जो निर्णय होगा, उसके अनुसार कार्य किया जाएगा।