लॉकडाउन ने जीना सिखाया, मजदूरी गंवाई तो खेती से नौ लाख कमाया
बोकारो बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड का टाडबालीडीह गाव। इस गाव में रहते हैं आदिवासी किसान श्
बोकारो : बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड का टाडबालीडीह गाव। इस गाव में रहते हैं आदिवासी किसान शकर सोरेन। पाच एकड़ जमीन के मालिक। एक समय था जब वे खेती करते पर मनमाने अंदाज में। जब जी चाहा खेत में काम किया। नतीजा आय कम होती तो मजदूरी कर लेते। पिछले साल लॉकडाउन लगा। मजदूरी का काम भी नहीं मिला तो आखें खुलीं। मन में विचार किया और सब्जी की जैविक खेती करने लगे। लगन और बुद्धि के सटीक प्रयोग से एक वर्ष में ही करीब नौ लाख कमा चुके हैं। गाव के 10 लोगों को खेती में काम भी दिया है। उनको हर माह चार से पाच हजार रुपये देते हैं। इस आदिवासी किसान शकर को राज्य सरकार ने राची में मार्च में सम्मानित भी किया है। बुद्धिमता भरे निर्णय और तकनीक ने दिलाई सफलता
शकर बताते हैं कि सब्जी की खेती में बाजार समझना जरूरी है। कई सब्जिया जब बाजार में आनी बंद हो जाती हैं तो उनकी कीमत बढ़ती है। हमने ऐसी व्यवस्था बनाकर फसलें तैयार की कि बाजार में उन सब्जियों की आवक बंद होने के बाद भी हम आपूíत कर सकें। लौकी, गोभी, टमाटर, हरी सब्जिया, भिंडी, करेला आदि उगाते हैं। अब आलम ये कि हमारे खेत में उगी सब्जिया बाजार में पहले पहुंचती हैं। आवक बंद होने के बाद भी हम आपूíत करते हैं। इससे अच्छी आय होती है। जैविक सब्जी के कारण अच्छे दाम मिल जाते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र पेटरवार के विज्ञानियों की सलाह से तकनीक का खेती में समावेश करते हैं। कुएं के पानी से सिंचाई करते हैं। इसके लिए टपक सिंचाई तकनीक अपनाते हैं। हमारी सब्जिया शॉपिंग मॉल में भी जाती हैं। हमारी पत्नी पानमती भी खेती में सहयोग देती है। शंकर के खेत में काम करने वाले राजेश माझी व डिसमिल ने बताया कि हमें ढाई सौ रुपये रोज मेहनताना मिलता है। हमारे परिवार की अच्छी गुजर बसर होती है। खेतों में नहीं करते रासायनिक खाद का प्रयोग : बकौल शकर तीन वर्षो तक जब कोई किसान जैविक खेती करता है तो उसे इसका प्रमाण पत्र मिलता है। ऑगेनिक फाìमग अथॉरिटी ऑफ झारखंड तीन वर्षो तक उनके खेतों की मिट्टी की जाच करेगा। किसी रासायनिक खाद का उपयोग तो नहीं किया। तीन वर्ष तक ऐसी खाद का इस्तेमाल न करने पर हमें जैविक उत्पाद का टैग लगाकर बेचने का अधिकार मिलेगा।ऐसी सब्जी का बाजार भाव भी अधिक मिलेगा। दूसरे के यहा काम करने से अच्छा है कि अपना काम करें। सरकारी नौकरी है नहीं, कोरोना के कारण काम भी नहीं मिल रहा था। तब समझ में आया कि हमारे पास तो जमीन है, बस लग गए खेती में। कोट : झारखंड में सब्जी की खेती के लिए उत्तम मिट्टी है। मल्चिंग व ड्रिप इरीगेशन का प्रयोग कर शकर बढि़या खेती कर रहे। उन्हें मार्गदर्शन के साथ बीज एवं अन्य सुविधाएं देते हैं। शकर को देख अन्य किसान भी प्रोत्साहित होंगे।
डॉ. अनिल कुमार सिंह , कृषि विज्ञानी, कृषि विज्ञान केंद्र, पेटरवार