ढोरी माता तीर्थालय में नौ दिवसीय वार्षिक पूजन आरंभ
कथारा (बेरमो) : जारंगडीह स्थित ढोरी माता तीर्थालय में नौ दिवसीय 62वां वार्षिक पूजन समारोह श
कथारा (बेरमो) : जारंगडीह स्थित ढोरी माता तीर्थालय में नौ दिवसीय 62वां वार्षिक पूजन समारोह शुक्रवार से शुरू हुआ। जारंगडीह के संत अंथोनी चर्च से सैकड़ों श्रद्धालु विनती करते हुए जुलूस की शक्ल में ढोरी माता तीर्थालय पहुंचे। तीर्थालय परिसर में पल्ली पुरोहित फादर माइकल लकड़ा ने ध्वजारोहण कर नोवेना प्रार्थना कराई। उनके साथ रांची के फादर प्रदीप टोप्पो व ललपनिया के फादर अनमोल एक्का भी थे। उन्होंने बताया नौ दिनों तक होने वाले इस कार्यक्रम के तहत प्रतिदिन संध्या 4 बजे नोविना प्रार्थना और उसके बाद मिस्सा पूजा होगी। इस दौरान श्रद्धालुओं के दर्शन को ढोरी माता की प्रतिमा खुली रखी जाएगी।
28 अक्टूबर को समारोही मिस्सा पूजा होगी। मुख्य याजक के रूप में रांची धर्म प्रांत के धर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो और सहयाजक सेवानिवृत्त विशप चार्ल्स सोरेंग एसजे एवं हजारीबाग के विशप आनंद जोजो डीडी समारोह को संबोधित करेंगे।
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ढोरी माताफोटो : 20 बीईआर 29 व 30 -
स्थापित प्रतिमा मसीही परिवार की आस्था का केंद्र जागरण संवाददाता,
बेरमो : ढोरी माता को कोयला खनिकों की संरक्षिका माना जाता है। उनकी प्रतिमा बेरमो कोयलांचल के जारंगडीह के ढोरी माता तीर्थालय में स्थापित है, जो मसीही धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है। यही कारण है कि ढोरी माता के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण प्रतिवर्ष अक्टूबर माह के अंतिम शनिवार एवं रविवार को होने वाले वार्षिकोत्सव में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने जुटते हैं। सीसीएल कामगारों के लिए भी ढोरी माता रक्षा कवच हैं। यहां इसाईयों के अलावा दूसरे संप्रदाय के लोग भी माथा टेकते हैं।
--ढोरी खदान से निकली थी प्रतिमा : विगत 12 जून 1956 को एक ¨हदू खनिक रूपा सतनामी को ढोरी खदान से कोयला काटने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी, जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई। वर्ष 1957 के अक्टूबर माह में फादर अलबर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई। फादर बेतरम हेबर्ट लॉट के नेतृत्व में उक्त मूर्ति को गिरजाघर से बाहर लाकर वर्ष 1964 में तीर्थालय में स्थापित किया गया। वर्ष 2006 में मनाई गई स्वर्ण जयंतीवर्ष 1981 में ढोरी माता की मूर्ति मिलने के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती मनायी गई थी। वहीं वर्ष 2006 में स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित किया गया। ढोरी माता की मूर्ति के बारे में पुरातत्वविदों का मत है कि उसकी बनावट भारतीय शैली की नहीं है और यह पुर्तगाली या फ्रांसीसी शैली से बनी है। वर्तमान में ढोरी माता का वार्षिकोत्सव भव्य रूप ले चुका है। बॉक्स
--ढोरी माता तीर्थालय का इतिहास
* वर्ष 1965 में रांची धर्मप्रांत के पीयूष केरकेट्टा ने पहली बार ढोरी माता के पास विनती की एवं नोवेना प्रार्थना की रचना की।* वर्ष 1969 के अप्रैल माह में प्रशांत महासागर के पश्चिमी सीमा स्थित द्वीप के अजिया शहर से एक धन्यवाद पत्र आया, जिसमें फादर ए फिलिप तारसियुल की ओर से ढोरी माता के बारे में जानकारी दी गई।* वर्ष 1971 में डालटेनगंज धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष जार्ज सोपेन ने अपना पहला धर्माध्यक्षीय पवित्र मिस्सा बलिदान ढोरी माता को अर्पित किया था।* वर्ष 1983 में ढोरी माता का भव्य एवं आकर्षक तीर्थालय भवन बनकर तैयार हुआ।* इस वर्ष ढोरी माता तीर्थालय को हाइटेक स्वरूप प्रदान करते हुए एक वेबसाइट लांच की की गई, जिसमें ढोरी माता के संबंध में तमाम ऐतिहासिक व अद्यतन जानकारी अपलोड की गई।