बोरिग कर भूले अधिकारी, चुआ के भरोसे जिदगी
विकास गोस्वामी बहादुरपुर कसमार प्रखंड के गर्री पंचायत स्थित आदिवासी बाहुल गांव तिलैयागजा में लोग चुआं का पानी पीने को मजबूर हैं।
विकास गोस्वामी, बहादुरपुर :
कसमार प्रखंड के गर्री पंचायत स्थित आदिवासी बाहुल गांव तिलैयागजार में आज भी लोग चुआ का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। गांव में लगे एक सोलर जलमीनार कई वर्षों से खराब है। यहां 100 आदिवासी परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी निवास करते आ रहे हैं, जो गांव के खेतों के बीच स्थित प्राकृतिक जलस्त्रोत का पानी पीकर जीवन गुजार रहे हैं। गांव के इस प्राकृतिक जलस्त्रोत में बूंद-बूंद पानी रिसता रहता है। बीते तीन दशक से आदिवासियों की प्यास बुझा रहे इस जलस्त्रोत को ग्रामीणों ने सहेज कर रखा है। मवेशियों या फिर अनजान लोगों द्वारा किसी तरह नुकसान न पहुंचे इसके लिए लिए स्त्रोत के आसपास की जगह को ईंट की दीवार से सुरक्षित रखा है। यहीं से निकलने वाले पानी का उपयोग दैनिक कामकाज के साथ पीने दोनों के लिए कर रहे हैं। आदिवासियों की यह तीसरी पीढ़ी है जो इसी जलस्त्रोत के भरोसे अपना जीवन काट रही है। कसमार प्रखंड मुख्यालय से यह गांव महज दो किमी की दूरी पर स्थित है। इसके बाद भी स्थानीय प्रशासन ने पानी की समस्या का निराकरण नहीं किया गया है। बारिश के दिनों में तालाब व नालों में पानी भरा रहता है। इसका उपयोग आदिवासी नहाने व मवेशियों को नहलाने व पानी पिलाने के रूप में करते हैं। गांव के लोगों के लिए एकमात्र सहारा यही चुआ है। सोमवार को चुआ से पानी निकाल रही युवती नीलम कुमारी व सरिता कुमारी ने बताया कि हमारे पुरखों से इस चुंए के पानी का उपयोग किया जा रहा है। गांव में एक हैंडपंप व सोलर पंप है वह भी खराब पड़ा हुआ है।
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-----क्या कहते है लोग :
गांव में स्थित चुआ के पानी का उपयोग विगत कई वर्षों से हम लोग कर रहे हैं। गांव में जो चापानल है वह खराब पडा हुआ है। किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान नहीं है। योजना केवल ठेकेदारी के लिए होती है।
महावीर हेंब्रम , ग्रामीण
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गांव में प्राकृतिक जल स्त्रोत से ही हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी की प्यास बुझ रही है। अगर चुआ में पानी नहीं भरता है, तो काफी समस्या होती है। पर किसी का ध्यान नहीं है।
रमेश कुमार, ग्रामीण
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गर्मी के दस्तक देते ही पानी के लिए जूझना पड़ता है। गांव में कुछ दिन पहले सरकार ने बोरिग कराई थी, जिस पर अभी तक हैंड पंप नहीं लगा है। मजबूरी में चुआं ही एक मात्र सहारा है।
-संजय हेंब्रम, ग्रामीण