मिटता जा रहा ऐतिहासिक रानी की बावली का अस्तित्व
संवाद सहयोगी, ऊधमपुर : पावन देविका को उसका पुराना स्वरूप दिलाने के लिए बेशक कवायद शुरू ह
संवाद सहयोगी, ऊधमपुर : पावन देविका को उसका पुराना स्वरूप दिलाने के लिए बेशक कवायद शुरू हो गई है। मगर वहीं दूसरी तरफ देविका तट पर स्थित सैकड़ों साल पुरानी रानी की बावली के नाम से प्रसिद्ध एक बावली अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है। इतना ही नहीं बावली के सरकारी स्कूल परिसर में है और स्कूल के दो शौचालय इसके बेहद करीब हैं।
ऊधमपुर बावलियों के शहर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मगर प्रकृति से तोहफे के तौर पर मिले इन कुदरती जल स्त्रोतों के संरक्षण के प्रति कोई भी कभी गंभीर नहीं रहा। उपेक्षा के साथ शहरों की बढ़ती आबादी धरोहरों के लिए काल साबित हो रही है। ऊधमपुर डेवलेपमेंट काउंसिल के अध्यक्ष अनिल पाबा के मुताबिक यह बावली प्राचीन धरोहर है। इसका निर्माण तकरीबन ढाई सौ साल पहले उस राजा ऊधम ¨सह ने कराया था। जिनके नाम ऊधमपुर का नाम पड़ा है। जहां राजा का महल था वहां अब लड़कों का सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल है।
महल से देविका किनारे स्थित इस बावली तक एक रास्ता आता था। जो उस समय महल का हिस्सा होता था। रास्ते के दोनों तरफ तकरीबन 12 से 13 फीट उंची दीवार थी। जिसके इस मार्ग पर कहीं से कोई नजर नहीं पड़ती थी। बावली के चारों तरफ भी उंची दीवारें बनाई गई थी। उनके मुताबिक रानी इस बावली में स्नान करने आती थी। जिसके चलते यह बावली रानी की बावली के नाम से विख्यात है। मगर रखरखाव के अभाव तथा उपेक्षा के चलते बावली जीर्णशीर्ण हालत में है। बावली की चारदीवारी और उसके पास थोड़ी दूर तक प्राचीन रीवार तो है। मगर जर्जर हालत में। इस बावली में काफी पानी था। मगर सफाई न होने तथा कचरा डालने के कारण बावली बंद हो गई है।
उपर से बावली से पांच से दस फीट की दूरी पर दो शौचालय बनाए गए हैं। बावली के पास शौचालय बनाना उचित नहीं है। इससे बावलियां प्रदूषित होती हैं। उन्होंने जिला प्रशासन के साथ पुरातत्व विभाग से इस ऐतिहासिक रानी की बावली का संरक्षण करने को कहा है। उन्होंने कहा कहा जिस तरह राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम के तहत देविका संरक्षण के लिए काम किया जा रहा है। वैसे ही धरोहरों और विशेष रूप से बावलियों के संरक्षण के लिए भी काम होना चाहिए।