नन्ही हिमाप्रिया ने बहादुरी और सूझबूझ से मां को बचाया था आतंकी से
अमित माही, ऊधमपुर : बहादुरी व अद्यम साहस के लिए इस साल भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर स
अमित माही, ऊधमपुर :
बहादुरी व अद्यम साहस के लिए इस साल भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के तहत भारत अवार्ड पाने वाले 21 बहादुर बच्चों में ऊधमपुर के केंद्रीय विद्यालय-दो में पढ़ने वाली चौथी कक्षा की गुरुगु हिमप्रिया का नाम भी शुमार है। महज साढ़े आठ साल की उम्र में नन्हीं बच्ची आतंकी से डरी नहीं और ग्रेनेड हमले में घायल होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। पहले आतंकी को बातों में उलझाए रखा और फिर मौका पाकर फौज से मदद मांगकर अपनी मां की जान भी बचाई। घटना करीब एक साल पहले 10 फरवरी 2018 की है, जब आतंकियों ने जम्मू के सुंजवां सैन्य मुख्यालय पर हमला किया था। इस हमले में पांच जवान शहीद व एक नागरिक की भी मौत हो गई थी। सेना ने हमलावर चारों आतंकियों का मार गिराया था।
25 जून 2009 को जन्मी गुरुगु हिमाप्रिया के पिता गुरुगु सत्यनारायण सेना की 611(1) एडी, बीडीआइ, एसआइडी कंपनी ऊधमपुर में तैनात हैं और मूल रूप से आंध्र प्रदेश के श्रीखाकोल्लम जनपद के पोनम गांव के रहने वाले हैं। शुरू में उनको फैमिली क्वार्टर न मिलने के कारण उन्होंने अपनी पत्नी गुरुगु पद्मावति और हिमाप्रिया को सुंजवां में फैमली क्वार्टर में रखा था। आतंकी ने बना लिया बंधक :
दस फरवरी को जब आतंकियों ने सुंजवां में हमला किया, उस सम हिमाप्रिया क्वार्टर में अपनी मां और दो छोटी बहनों के साथ मौजूद थी। आधुनिक हथियारों से लैस एक आतंकी लगातार उनका दरवाज तोड़ने का प्रयास कर रहा था। हिमाप्रिया और उनकी मां लगातार आतंकी को अंदर आने से रोकने का प्रयास कर रही थी। इसी बीच, ग्रेनेड फटा, जिससे हिमाप्रिया और उसकी मां बुरी तरह घायल हो गई। इस दौरान आतंकी अंदर आ घुसा और सारे परिवार को बंधक बना लिया। आतंकी हमले से जहां पूरे सुंजवां सैन्य क्षेत्र में दशहत और अफरातफरी का माहौल था। वहीं, घायल होने तथा आतंकी द्वारा बंधक बनाए जाने के बावजूद न तो हिमाप्रिया डरी और न ही उसने हिम्मत हारी। वह लगातार आतंकी से बात करती रही और उसे उलझाए रखा, जिसकी वजह से सेना ने घर में छिपे उस आतंकी को चारों तरफ से घेर लिया। खुद को घिरा देख आतंकी गोलीबारी करता हुआ जैसे ही दूसरी तरफ भागा, हिमाप्रिया मौका पाकर सेना के जवानों तक पहुंच गई और उनसे सहायता मांगी। इसके बाद सेना ने घायल पद्मावति को उपचार के लिए पहुंचाया। पद्मावति का अभी भी इलाज चल रहा है। हिमाप्रिया को आज भी वह घटना याद है और सकुशल होने के लिए वह ईश्वर का आभार व्यक्त करती है और मां के जल्द पूरी तरह स्वस्थ होने की कामना। हिमाप्रिया की बहादुरी पूरे देश के बच्चों के लिए प्रेरणादायक :
हिमाप्रिया को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर उसके स्कूल केंद्रीय विद्यालय नंबर दो के ¨प्रसिपल राकेश दूबे ने पूरे परिवार को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हिमाप्रिया जो बहादुरी दिखाई, वह पूरे देश के बच्चों के लिए प्रेरणादायक है। बेटों से कम नहीं होती बेटियां : पद्मवति
हिमाप्रिया की मां पद्मवति ने कहा कि हिमाप्रिया की सूझबूझ, बहादुरी तथा ईश्वर की कृपा से उनकी जान बची है। बेटियां बेटों से कम नहीं होती। इस लिए बेटियों और बेटों में अंतर नहीं करना चाहिए और उनकी परवरिश भी बेटों की तरह करनी चाहिए। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना पूरे परिवार के लिए गौरव की बात है। वह अपने इलाज के लिए परिवार के साथ दिल्ली में हैं। पुरस्कार प्राप्त करने के बाद वापस लौटेंगीं। उस दिन डर जाती तो सबका मरना तय था
: हिमाप्रिया ने बताया कि उस दिन वह करीब दो घंटे आतंकी से बात करती रही। उससे पूछा कि वह भारत से है या पाकिस्तान से? यह सब करके उसे क्या मिलता है? कुछ बातों का वह जबाव देता। लगातार सवालों से परेशान होकर वह कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ जाता। वह लगातार उसके पीछे रही। बीच-बीच में वह अपनी मां को अस्पताल पहुंचाने को कहती रही। इस दौरान आतंकी ने कई बार उसे बंदूक दिखाकर डराया। आतंकी ने उसके पिता के रैंक व अन्य जानकारियां भी मांगी। मगर उसने कुछ नहीं बताया। यदि वह उस दिन डर जाती तो सबका मरना तय था।