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विकास के शोर में दब गई रामबन के कमजोर पहाड़ों की सिसकियां

अमित माही ऊधमपुर जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर स्थित रामबन जिले के प्राकृतिक रूप से कमजोर पहाड़

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 08:36 AM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 08:36 AM (IST)
विकास के शोर में दब गई रामबन के कमजोर पहाड़ों की सिसकियां
विकास के शोर में दब गई रामबन के कमजोर पहाड़ों की सिसकियां

अमित माही, ऊधमपुर

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जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर स्थित रामबन जिले के प्राकृतिक रूप से कमजोर पहाड़ फोरलेन निर्माण के लिए अंधाधुंध कटाई से और जर्जर होते गए हैं। निर्माण कार्य के दौरान किए जाने वाले विस्फोट से पहाड़ की पकड़ और कमजोर हो गई है, ऐसे में बारिश और बर्फबारी के समय ये पहाड़ बेहद खतरनाक हो जाते हैं। हालत यह है कि साफ मौसम में भी यहां के पहाड़ों से मलबा गिरने लगता है, जिससे हाईवे पर यातायात बंद हो जाता है। अब तक यहां हुए हादसों में कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

करीब 295 किलोमीटर लंबा जम्मू श्रीनगर नेशनल हाईवे सात जिलों जम्मू, ऊधमपुर, रामबन, कुलगाम, अनंतनाग, पुलवामा और श्रीनगर से होकर गुजरता है। घाटी तक का सफर रामबन जिले में बेहद रमणीय नजारों से भरा है। एक तरफ ऊंचे पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ गहरे नदी-नाले और खूबसूरत घाटी। यह आंखों को जन्नत की राह का सुखद आभास कराते हुए सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। रामबन से बनिहाल तक का इलाका जितना खूबसूरत है, उतना ही खतरनाक भी है। पूरे रास्ते में कई स्थानों पर 100 मीटर से एक किलोमीटर या इससे भी ज्यादा गहरी खाई हैं। ऐसे में यहां होने वाले हादसों में बचना बड़ा मुश्किल होता है। इस समय रामबन जिले में हाईवे पर 14 से ज्यादा ऐसे भूस्खलन संभावित स्थान बन गए हैं, जहां कब ऊंचे पहाड़ से मलबा गिरना शुरू हो जाएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता है। पिछले कुछ दिनों में बैट्री चश्मा, अनोखी फॉल और डिगडोल क्षेत्र में लगातार पहाड़ से मलबा गिरा, जिससे यातायात प्रभावित रहा।

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पेड़ लगाने लायक भी नहीं रहे पहाड़

जम्मू यूनिवर्सिटी के जियोलॉजी के प्रोफेसर जीएम भट्ट के मुताबिक रामबन जिले के पहाड़ मरीस श्रेणी के हैं। ये ऐसे पहाड़ होते हैं जो प्राकृतिक रूप से बेहद कमजोर होते हैं। रेलवे द्वारा अपने रेल लाइन सर्वे में इस रूट अलाइनमेंट को छोड़ कर गूल की तरफ से लंबे रूट को अपनाने के पीछे भी यही मुख्य वजह थी। फोरलेन के लिए इन कमजोर पहाड़ों पर व्यापक पैमाने पर पहाड़ों की कटाई में एंगल ऑफ इन्क्लीमेशन या एंगल ऑफ रिपोस का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। एंगल ऑफ रिपोस 30 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इससे ज्यादा होने पर भूस्खलन होना तय होता है। हालत यह हो गई है कि पहले से कमजोर पहाड़ अब पेड़ लगाने लायक भी नहीं रहे हैं।

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