परदेस नहीं जाएंगे, गांव की माटी में ही कमा कर खाएंगे
लॉकडाउन में बाहर से आने लोग अब गांव में शुरू करेंगे अपना कामधंधा
अमित माही, ऊधमपुर
लॉकडाउन में दूसरे जिलों, राज्य से अपना कामधंधा, नौकरी छोड़ जिला में लौटे लोगों से गांवों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। बाहर रोजगार छिन जाने के बाद लोगों ने अपनी ही माटी में खेतीबाड़ी करना शुरू कर दिया है। इस बदलाव से कृषि विभाग को भी खरीफ फसलों की पैदावार में 30 से 35 फीसद का इजाफा होने की उम्मीद है।
राज्य की 70 फीसद आबादी कृषि से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी है। प्राचीन समय में ग्रामीण इलाकों में खेती ही मुख्य व्यवसाय था। समय बदलने साथ नई पीढ़ी खेती कार्य से परहेज करने लगी। जो खेती कर भी रहे थे, वे उसे दोयम दर्जे का व्यवसाय मानने लगे। उनका मुख्य काम नौकरी या कोई और धंधा ही होता था।
कोरोना संकट में काफी लोगों को घरों को लौटना पड़ा। इतना ही नहीं कोरोना से आए बदलाव से ग्रामीण इलाकों में खेती को लोगों ने प्रमुख व्यवसाय के तौर पर अपनाना शुरू कर दिया है। यह ऐसा सकारात्मक बदलाव है, जिससे न केवल विभिन्न राज्यों से घरों को लौटे लोगों को आजीविका की चिता समाप्त होगी, बल्कि जिला में कृषि उत्पादन में भी इजाफा होना तय है। दूसरों को रोजगार भी मिलेगा
चिनैनी के ब्लॉक चेयरमैन प्रकाश सिंह के मुताबिक उनके ब्लॉक की सभी पंचायतों से सैकड़ों लग विभिन्न जिलों और दूसरे राज्यों में काम करते थे। इसमें बड़ी संख्या में लोग लॉकडाउन होने के साथ ही घर लौट आए हैं। अभी भी काफी लोग घर वासी कर रहे हैं। ऊधमपुर ब्लॉक के ब्लॉक चेयरमैन बलवान के मुताबिक उनके ब्लॉक की 47 पंचायतों में भी दूसरे राज्यों और जिलों में काम करने वाले लोग कामधंधा न रहने की वजह से घरों को लौटे हैं। टिकरी ब्लॉक की चेयरमैन निशा शर्मा ने बताया कि उनके ब्लॉक की विभिन्न पंचायतों में भी काफी लोग लौटे हैं। लौटने का सिलसिला उनके ब्लॉक की पंचायतों में जारी है। चेयरमैन के मुताबिक किसी पंचायत में सौ तो किसी में 50 तक लोग लौट चुके हैं।
ब्लॉक चेयरमैनों के मुताबिक शुरू में हर कोई घर लौटना चाहता था, मगर घर वापसी के बाद आजीविका के साधन का अभाव सभी के लिए बड़ी परेशानी का कारण था। मगर इस बात की खुशी है कि लोगों ने इस समस्या में खुद ही ऐसा समाधान खोज निकाला जिससे न केवल वह आजीविका अर्जित कर सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने में सक्षम हो जाएंगे।
ब्लॉक चेयरमैन चिनैनी ने बताया कि पचौत पंचायत में पहले 60 फीसद के करीब क्षेत्र में खेती होती थी। मगर कोरोना महामारी के बाद लोगों के लौटने से अब तक यह बढ़ कर 90 फीसद से अधिक हो गई है। पंचायत में कोई भी खाली जगह ऐसी नहीं जहां पर किसी ने कुछ नहीं लगाया हो। अन्य ब्लॉकों के चेयरमैनों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण वैसे तो सबकी जीवन शैली में बदलाव आए हैं, मगर उनके ब्लॉक में बड़ा बदलाव लोगों का वापस कृषि को प्राथमिक व्यवसाय के तौर पर अपनाना रहा। ऐसा नहीं कि कृषि से लोग पहले नहीं जुड़े थे, मगर पहले 80 फीसद लोगों के लिए यह प्राथमिक के बजाय दोयम दर्जे पर ही थी। लोग अपनी जरूरत के लिए खेती करते थे। कुछ बचने वाली फसल को बेच कर कुछ पैसे कमाते थे। कृषि ही नहीं पशु पालन कर दूध उत्पादन को भी ज्यादा स्तर पर अपनाने लगे हैं। ब्लॉक में हर जगह कुछ न कुछ उगाया जा रहा है। शायद ही कोई खेत खाली होगा। जिन इलाकों किसान एक ही फसल उगाते थे, वहां पर भी और फसलें उगाने के लिए विभाग से सलाह ले रहे हैं। मजदूरों की समस्या भी हुई हल
ऊधमपुर के मुख्य कृषि अधिकारी एसके भगत कहते हैं कि कोरोना महामारी की वजह से जिला में कृषि की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। विशेष रूप से नौकरी और कामधंधे बंद होने की वजह से आजीविका गंवा कर लौटे लोग अपने गांव में आकर खेतीबाड़ी में जुट गए हैं। पहले स्थानीय वर्क फोर्स दूसरे जिलों में काम करती थी, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता था। किसानों को बाहरी मजदूरों से काम करवाने पर लाभ नहीं होता था। मगर कोरोना की वजह से लोगों के लौटने से परिवार में खेतीबाड़ी का काम करने वालों की संख्या बढ़ रही है। साथ ही सब जान चुके हैं कि कोरोना संकट जल्द टलने वाला नहीं है और स्थितियां ऐसी ही रहेंगी। इसलिए दूसरे राज्यों और जिलों से घर लौटने वाले खेतीबाड़ी में ही अपनी रोजी की उम्मीद देख रहे हैं। जिला की हर पंचायत और गांव में बड़े किसान भी हैं, जो दूसरों को रोजगार भी उपलब्ध कराएंगे। इस बदलाव का सकारात्मक प्रभाव जहां लोगों की आíथक और सामाजिक स्थिति पर पड़ेगा, वहीं जिला में पैदावार में भी इजाफा होना तय है। हालांकि रबी की फसल कोरोना महामारी शुरू होने से पहले लगी थी, इससे इसमें कोई खास बदलाव नहीं होगा, लेकिन खरीफ की फसल में पिछले साल की तुलना में 30 से 35 फीसद इजाफे की उम्मीद है।