कभी यहां नहाने आती थीं रानी, अब सुध लेने तक नहीं आता कोई
संवाद सहयोगी ऊधमपुर पावन देविका को उसका पुराना स्वरूप दिलाने के लिए बेशक काम शुरू ह
संवाद सहयोगी, ऊधमपुर : पावन देविका को उसका पुराना स्वरूप दिलाने के लिए बेशक काम शुरू हो गया है, मगर देविका तट पर स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक सैकड़ों साल पुरानी रानी की बावली अपना अस्तित्व खो रही है।
ऊधमपुर को बावलियों का शहर भी कहा जाता है, मगर कुदरत से मिले प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण के प्रति कोई भी कभी गंभीर नहीं है। लगातार उपेक्षा और बढ़ती आबादी न केवल प्राचीन धरोहरों को लीलती जा रही है, बल्कि प्राकृतिक जल स्त्रोतों के अस्तित्व को भी खत्म कर रही है। देविका नदी किनारे देविका परिसर के पास तकरीबन ढाई सौ साल पहले उस समय के राजा ऊधम सिंह ने एक बावली का निर्माण कराया। यह बावली राजा के महल (अब सरकारी ब्वॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल) से करीब 150 मीटर दूर नीचे बनी है। महल से देविका किनारे स्थित इस बावली तक एक रास्ता भी था। इस रास्ते के दोनों तरफ तकरीबन 12 से 13 फीट ऊंची दीवारें थीं। जिसके चलते इस मार्ग पर कहीं से किसी की कोई नजर नहीं पड़ती थी और यह रास्ता उस समय महल का हिस्सा था। बावली के चारों तरफ भी ऊंची दीवारें बनाई गई थीं। बताया जाता है कि रानी इस बावली में नित्य स्नान करने आती थीं। जिसके चलते इस बावली को रानी बावली के नाम से जाना जाने लगा।
स्वर्णिम युग की गवाह यह रानी की बावली लगातार उपेक्षा का शिकार होने की वजह से न केवल बदहाल हो गई, बल्कि इसकी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। कुछ दशक पहले तक इस बावली में काफी पानी होता था, मगर रखरखाव, सफाई के अभाव में लोगों ने इसमें कचरा फेंकना शुरू कर दिया। कचरे से भर जाने के कारण बावली बंद हो गई है। ऊपर से बावली के पास ही सरकारी स्कूल भी है। जिसके शौचालय भी बावली से थोड़ी दूरी पर बने हैं। यह भी बावली के प्रदूषण की एक वजह बन रही है। मगर न तो जिला प्रशासन को, न ही प्रदूषण विभाग और न ही पुरातत्व विभाग को इस ऐतिहासिक रानी बावली की बदहाली से कोई सरोकार है। स्थानीय लोगों ने कहा कि देविका के संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, मगर देविका परिसर में स्थित रानी की बावली के संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। लोगों ने रानी की ऐतिहासिक बावली का संरक्षण कर इसका जीर्णोद्धार करने की मांग की है।