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छड़ी मुबारक की पूजा के साथ वार्षिक यात्रा का शुभारंभ

पवित्र छड़ी के भूमि पूजन होने के साथ ही भगवान अमरेश्वर की पवित्र गुफा की वार्षिक तीर्थयात्रा का शुभारंभ हुआ।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 06:51 PM (IST)
छड़ी मुबारक की पूजा के साथ वार्षिक यात्रा का शुभारंभ
छड़ी मुबारक की पूजा के साथ वार्षिक यात्रा का शुभारंभ

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। दक्षिण कश्मीर में पहलगाम (अनंतनाग) में लिद्दर दरिया किनारे गणेशबल में पवित्र छड़ी का भूमि पूजन, नवग्रह पूजन और ध्वजारोहण का अनुष्ठान संपन्न होने के साथ ही भगवान अमरेश्वर की पवित्र गुफा की वार्षिक तीर्थयात्रा का शुभारंभ हुआ। समुद्रतल से करीब 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव की पवित्र गुफा, जहां भगवान शंकर ने मां पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाई थी, की वार्षिक तीर्थयात्रा 28 जून 2018 को औपचारिक रूप से शुरू हुई थी। इसमें करीब अढ़ाई लाख श्रद्धालु भाग ले चुके हैं।

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धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, तीर्थयात्रा का विधान गुरु पूर्णिमा के दिन से ही है। आज सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच दशनामी अखाड़ा के महंत दीपेंद्र गिरि के नेतृत्व में बाबा अमरनाथ की पवित्र छड़ी मुबारक पहलगाम रवाना हुई। महंत दीपेंद्र ही छड़ी मुबारक के संरक्षक हैं। दशनामी अखाड़ा श्रीनगर में झेलम दरिया के किनारे मैसूमा में है। दशनामी अखाड़ा से रवाना होने के बाद छड़ी मुबारक सूर्ययार, पांपोर, बिजबिहाड़ा और मट्टन स्थित शिव व सूर्य मंदिर में पूजा-अर्चना करते पहलगाम पहुंची। पहलगाम में ध्वजारोहण का अनुष्ठान हुआ। दोपहर बाद छड़ी मुबारक वापस अपने विश्राम स्थल लौट आई।

महंत दीपेंद्र गिरि ने कहा कि गुरु पूर्णिमा के दिन से ही तीर्थयात्रा का विधान और पुण्य है। आज से यात्रा का शुभारंभ हुआ है। पहलगाम में पूजा के बाद छड़ी मुबारक अब दशनामी अखाड़ा में ही विश्राम करेगी और 15 अगस्त को पूजा-अर्चना के लिए गोपाद्री पर्वत पर जाएगी। 20 अगस्त को बाबा अमरनाथ की गुफा के लिए यहां से प्रस्थान करेगी।

पवित्र छड़ी मुबारक का इतिहास

कहा जाता है कि कश्मीर घाटी पहले बहुत बड़ी झील हुआ करती थी, जहां सर्पराज नागराज दर्शन दिया करते थे। अपने संरक्षक मुनि कश्यप के आदेश पर नागराज ने कुछ मनुष्यों को वहां रहने की अनुमति दे दी। मनुष्यों की देखा-देखी वहां राक्षस भी आ गए जो बाद में परेशानी का सबब बन गए। अंतत: नागराज ने कश्यप ऋषि से इस बारे में बात की। कश्यप ऋषि ने अपने अन्य संन्यासियों के साथ भगवान भोले शंकर से प्रार्थना की।

तब शिव शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें चांदी की छड़ी प्रदान की जो अधिकार एवं सुरक्षा का प्रतीक थी। भोलेनाथ ने आदेश दिया कि इस छड़ी को उनके निवास स्थान अमरनाथ ले जाया जाए, जहां वह प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देंगे। संभवत: इसी कारण आज भी चांदी की छड़ी अथवा शैव्य निर्मित दंड भगवान शिव के झंडे के साथ आगे चलता है। इसे छड़ी मुबारक कहते हैं।

दो प्रकार की होती है छड़ी

अकेली छड़ी नहीं होती बल्कि दो होती हैं जिन्हें शिव व शक्ति का प्रतीक माना जाता है। छड़ी का नेतृत्व दशनामी अखाड़ा श्रीनगर के महंत दीपेन्द्र गिरि कर रहे हैं। रक्षा बंधन वाले दिन पवित्र श्री अमरनाथ गुफा पहुंचने पर पवित्र हिमशिवलिंग के पास महंत दीपेन्द्र गिरि पारंपरिक विधि विधान और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ छड़ी मुबारक का पूजन करते हैं।


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