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JAMMU KASHMIR: बेखौफ हो कश्मीरियों ने पहली बार पूर्ण मिलन की आजादी का जश्न मनाया

आज पूरे देश में स्वतंत्रता की 73वीं वर्ष गांठ मनायी गई। कश्मीर में भी स्वतंत्रता समारोह हुआ। हालांकि सुरक्षा प्रबंध बीते सालाें की तरह चाक चौबंद थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 15 Aug 2019 06:15 PM (IST)Updated: Thu, 15 Aug 2019 06:15 PM (IST)
JAMMU KASHMIR: बेखौफ हो कश्मीरियों ने पहली बार पूर्ण मिलन की आजादी का जश्न मनाया
JAMMU KASHMIR: बेखौफ हो कश्मीरियों ने पहली बार पूर्ण मिलन की आजादी का जश्न मनाया

श्रीनगर, नवीन नवाज। डल झील किनारे स्थित गोपाद्री पर्वत पर जहां आदि शंकराचार्य ने शंख बजाकर शैववाद काे पुर्नस्थापित किया था, आज उसी गोपाद्री पर्वत की तलहटी में स्थित शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में एक नया इतिहास बना। अनुच्छेद 370 से आजादी के बाद पहली बार कश्मीरियों ने बेखौफ हो भारत के साथ पूर्ण मिलन की आजादी का जश्न मनाया। भीड़ बेशक कम थी, लेकिन दर्शक दीर्घा में तिरंगा लहराती और वंदे मातरम का नारा लगाती युवाओं की भीड़ बता रही थी कि एकीकृत जम्मू कश्मीर में अंतिम स्वतंत्रता दिवस समारोह नहीं बल्कि बदलाव और राष्ट्रीय मुख्यधारा का हिस्सा बनने का जश्न मना रहे हैं।

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आज पूरे देश में स्वतंत्रता की 73वीं वर्ष गांठ मनायी गई। कश्मीर में भी स्वतंत्रता समारोह हुआ। हालांकि सुरक्षा प्रबंध बीते सालाें की तरह चाक चौबंद थे। कई जगह रास्तों को एहतियातन बंद रखा गया था। गलियां-बाजार सूने थे। लेकिन जो तनाव 15 अगस्त या 26 जनवरी को कश्मीर में रहता आया है,वह कहीं भी नहीं था। पांच अगस्त के बाद से कश्मीर में जो माहौल बना था,वह भी आज कहीं नहीं था। कोई बंद का एलान नहीं था और न किसी ने स्वतंत्रता दिवस समारोह का बहिष्कार का फरमान सुनाते हुए कहा कि जो जाएगा, भुगतेगा। इसलिए लोग धीरे धीरे आजादी का जश्न मनाने शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में जमा होने लगे। किसी ने किसी को नहीं पूछा कि वह क्यों जा रहा है और स्टेडियम में पहुंचे लोगों ने भी यह नहीं पूछा कि जो नहीं आए,वह क्यों नहीं आए। बस जो आया,उसने कहा कि यह तवारीखी दिन है,यह नए दौर का आगाज है, आजादी की 73वीं सालगिरह बेशक हो, लेकिन हमारे लिए पहली है,क्योंकि आजादी के बाद जिस सियासत ने हमे गुलाम बना रखा था, उसकी रवानगी का एलान हो चुका है, उसका बोरिया बिस्तर बंध चुका है।

किसी ने नहीं मनाया यौम-ए-स्याह

स्टेडियम में अपनी पांच साल की बेटी संग आए मुश्ताक अहमद ने कहा कि आज का दिन तो तवारिखी है। यह हमारे लिए एक नए दौर की शुुरुआत जैसा है। मैं 45 साल का हूं। बीते 30 सालों में मैने पहली बार यहां किसी को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आम कश्मीरियों को यौम-ए-स्याह बनाने का हुक्म नहीं सुनाया है। किसी ने काले झंडे लहराने को नहीं कहा है। मेरी बेटी ने आज पहली बार स्वतंत्रता दिवस समारोह की परेड देखी है। आज पहली बार किसी ने मुझसे सवाल नहीं किया। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं।

आटोनामी, आजादी, सेल्फ रुल से आजादी का दिन है

लालचौक के साथ सटे कोकरबाजार से आए हाजी अब्दुल रशीद ने कहा कि मैने कश्मीर का हर दौर देखा है। मेरी उम्र 85 साल है। जम्हूरियत और बराबरी के हक के नाम पर हमने हिंदोस्तान के साथ नाता जोड़ा था। लेेकिन बाद में यहां आटोनामी, फिर आजादी और सेल्फ रुल की सियासत शुरु हो गई। कोई पाकिस्तानी रुमाल दिखाता तो कोई रावलपिंडी की गाड़ी के लिए आवाज लगाता। हमारी जिंदगी इनकी गुलाम बनकर रह गई थी।लेकिन अब यह नारे देने वालों की दुकान बंद हो रही है। इनकी गुलामी से आजादी का रास्ता साफ हो गया है। सच पूछो तो मैं इसी आजादी का जश्न मनाने यहां आया हूं। मुझे यकीन है कि जिस जम्हूरियत के लिए हमारा हिंदोस्तान से इलहाक हुआ था, वह अब हमें मिलेगी। आप यूं कह सकते हैं कि आज हमारे लिए पहला यौम-ए-आजादी है।

डोभाल भी थे समारोह में

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत कुमार डोभाल भी स्वतंत्रता समारोह में शामिल हुए। वह बीते 10 दिनों से कश्मीर में ही हैं। किसी राज्य में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के भाग लेने का यह पहला मौका है।उनके अलावा उनका दाहिना हाथ माने जाने वाले के विजयकुमार भी समारोह में नजर आए। के विजय कुमार राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार भी हैं।

अब्दुल्ला, उमर, महबूबा की अनुपस्थिति पर किसी ने नहीं पूछा सवाल

राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती स्वतंत्रता समारोह में शामिल नहीं हुए। यह तीनों वादी में ही हैं। फारुक अब्दुल्ला अपने घर में नजरबंद हैं जबकि उमर और महबूबा को पुलिस ने एहतियातन हिरासत में रखा हुआ है।इनके अलावा भी कश्मीर केंद्रित सियासत करने वाले मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का कोई नेता या कार्यकत्ता इस समारोह का हिस्सा नहीं बना। लेकिन स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने आए किसी ने भी उनकी अनुपस्थिति पर सवाल नहीं किया। समारोह समाप्त होने के बाद स्टेडियम से बाहर निकल रहे एक युवा ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त कहा कि आम कश्मीरियों को इनकी सियासत से आजादी मिली है। सभी इनसे आजादी चाहते हैं,इसलिए आज कोई इनका जिक्र करना तो दूर सोचना भी पसंद नहीं कर रहा है। यही बात आप हुर्रियत नेताओं की कह सकते हो।

एकीकृत जम्मू कश्मीर राज्य का अंतिम समारोह

आज पूरे देश में 73वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया गया है। लेकिन एकीकृत जम्मू कश्मीर में अंतिम बार स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया गया है। 31 अक्तूबर से जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित राज्यों जम्मू कश्मीर व लद्दाख में बदल जाएगा। इसके साथ ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक के लिए भी जम्मू कश्मीर में बतौर राज्यपाल यह अंतिम स्वतंत्रता दिवस समारोह था। आगे से जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री या उपराज्यपाल और लद्दाख में उपराज्यपाल ही राष्ट्रध्वज फहराएंगे।

कश्मीर नहीं आएगी अब लद्दाख की रिजर्व बटालियन

31 अक्तूबर के बाद स्वतंत्रता दिवस समारोह हो या गणतंत्र दिवस, कोई भी राष्ट्रीय पर्व होने पर लद्दाख की पुलिस और लद्दाख को आवंटित भारतीय रिजर्व पुलिस का दस्ता जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य में मार्च करता नजर नहीं आएगा। स्वतंत्रता दिवस के दौरान आतंकियों द्वारा किसी बड़े हमले की आशंका को देखते हुए श्रीनगर समेत पूरी वादी में सुरक्षा का कड़ा प्रबंध रहा। शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम के चारों तरफ सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त था। हेलीकाप्टर ही नहीं ड्रेान और यूएवी भी आसमान में लगातार चक्कर लगाते हुए नीचे जमीन पर जारी गतिविधियों पर निगरानी रखे हुए थे।

रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ, लेकिन स्कूली छात्रों के बिना

एकीकृत जम्मू कश्मीर में आज अंतिम स्वतंत्रता दिवस समारोह हुआ। लेकिन यहां श्रीनगर में आयोजित मुख्य समारोह में स्कूली छात्रों की भागेदारी नहीं थी। वादी में बीते दस दिनों से जारी कानून व्यवस्था की स्थिति की मददेनजर संबधित प्रशासन ने एहतियातन स्कूली छात्रों को समारोह में शामिल नहीं किया। अलबत्ता,सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम हुए,लेकिन यह राज्य पुलिस,सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों के अलावा राज्य भाषा एवं संस्कृतिक अकादमी के कलाकारों ने पेश किए।

यह इतिहास है, इसे याद रखो

परेड देखने आए नजीर अहमद नामक एक व्यक्ति ने कहा कि शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम कश्मीर में कई अहम घटनाओं का गवाह रहा है। उन्होंने कहा कि यह वही मैदान है जहां अक्तूबर 1983 में भारत-वेस्टइंडीज के बीच एक कि्रकेट मैच में बाधा डालने के लिए अलगाववादियों जिनमें शकील बख्शी और मुश्ताक उल इस्लाम शामिल थे, ने पिच को खोद डाला था। यह वही मैदान है जहां अप्रैल 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा था कि हम दोस्त बदल सकते हैं,पड़ौसी नहीं। कश्मीर का मसला कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत के दायरे में हल होगा। यह वही मैदान है जहां एकीकृत जम्मू कश्मीर का अंतिम स्वतंत्रता दिवस समारोह संपन्न हुआ है और आटोनामी, अलगाववाद, आजादी व सेल्फरुल की सियासत की दुकान पर तालाबंदी का एलान होने केबाद पहला यौम ए आजादी का जश्न मनाने की जगह यही


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