उड़ी रहने वाले ग्रामीणों में डर का साया, बोले- 'ऑपरेशन सिंदूर के छह महीने बाद भी बंकरों की मांग अधूरी'
उड़ी सेक्टर के सीमावर्ती गांवों के निवासी अभी भी डर में जी रहे हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' के छह महीने बाद भी बंकरों की मांग अधूरी है, जिससे उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई है। नियंत्रण रेखा के पास होने के कारण, वे अक्सर गोलीबारी का सामना करते हैं।

सरकार ने बंकर बनाने का वादा किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जिससे ग्रामीणों में डर का माहौल है।
जागरण संवाददाता, श्रीनगर। ऑपरेशन सिंदूर के छह महीने बाद भी उत्तरी कश्मीर के बारामूला ज़िले के उड़ी इलाके में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास रहने वाले निवासी आज भी डर के साय में जी रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी ज़िंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है क्योंकि बंकरों की लंबे समय से चली आ रही मांग आज तक सुनी नहीं जा रही है।
ऑपरेशन से पहले, ग्रामीणों ने सीमा पार से गोलाबारी के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए बंकरों के निर्माण की बार-बार अपील की थी। आधे साल बाद भी, मांग जस की तस है। एलओसी से सटे चरुंडा गांव के पूर्व सरपंच लाल दीन खटाना ने बताया कि आपरेशन सिंदूर के बाद से एक भी बंकर नहीं बनाया गया है।
चार साल पहले बनाए गए थे बंकर
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में सरकार ने कोई नया बंकर नहीं बनाया है। हमारे यहां जो भी बंकर हैं, वे लगभग चार साल पहले बनाए गए थे। एक अन्य स्थानीय निवासी लाल हुसैन खान ने कहा कि यह इलाका सीमा पार से होने वाली गोलीबारी के लिए बेहद संवेदनशील है और यहां तत्काल कार्यात्मक बंकरों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, यहां लगभग आठ सामुदायिक बंकर हैं, लेकिन वे सभी जर्जर और अनुपयोगी हैं।
बंकर निर्माण के लिए कोई सहायता नहीं मिली
गरकोट गांव के बशीर अहमद भट ने भी इसी तरह की चिंताएं व्यक्त कीं। उन्होंने पूछा, आपरेशन सिंदूर के बाद बंकर निर्माण के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है। अगर सीमा पार से फिर से गोलाबारी हुई, तो हम कहां जाएंगे?
भट ने कहा कि सरकारी मदद के अभाव में, कई ग्रामीणों ने अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करके खुद ही अस्थायी बंकर बनाने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने कहा, हम गरीब लोग हैं लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हमें अपने परिवारों की रक्षा करनी है।उड़ी के मोथल गांव के निवासी अलताफ अहमद ने बताया कि उनके गांव में भी एक भी बंकर नहीं बनाया गया है।
हमारी जान को हमेशा खतरा रहता है
सीमांत सिलिकोटे गांव के अकील अहमद ने कहा, यहां कोई नया बंकर नहीं बना है। हमारी जान को खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि पुराने बंकर भी जर्जर हो गए हैं और गोलाबारी के दौरान निवासियों को सुरक्षित रूप से रहने की अनुमति नहीं देते।
आपको बता दें कि 2020 में, सरकार ने नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उड़ी में कई सामुदायिक बंकरों के निर्माण का प्रस्ताव रखा था। कुछ बंकर पूरे हो गए, लेकिन कई विभिन्न चुनौतियों के कारण अभी भी अधूरे हैं। पिछले महीने, जम्मू-कश्मीर सरकार ने विधानसभा को सूचित किया कि उड़ी के सीमावर्ती गांवों में स्वीकृत 202 व्यक्तिगत बंकरों और ऊपरी सुरक्षा खाइयों में से 40 का निर्माण पूरा हो चुका है जबकि शेष 162 का निर्माण अगले चार हफ़्तों में पूरा होने की उम्मीद है।
बंकर नहीं सुरक्षा खाइयों के निर्माण को मिली मंजूरी
यहां यह बताना ज़रूरी है कि इसी साल मई में, डीसी बारामूला ने भी उड़ी सेक्टर में 202 ऊपरी सुरक्षा खाइयों के निर्माण को मंज़ूरी दी थी। हालांकि, कई निवासियों ने इन खाइयों को 'पैसे की बर्बादी' बताया है। कमलकोट गांव के निवासी मोहम्मद कासिम ने कहा, वे उथली भूमिगत खाइयां खोद रहे हैं और उन्हें लकड़ी के तख्तों और मिट्टी से ढक रहे हैं।
गृह मंत्रालय के समक्ष उठाया गया है मामला
भारी गोलाबारी के दौरान ऐसी संरचनाएं असुरक्षित और बेकार होती हैं। हमें उचित कंक्रीट के बंकरों की ज़रूरत है। क्षेत्र के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) शुभंकर प्रत्यूष पाठक ने संपर्क करने पर बताया कि आपरेशन सिंदूर के बाद कोई नया बंकर नहीं बनाया गया है। 'हालांकि, विभिन्न इलाकों में ऊपरी सुरक्षा खाइयों का निर्माण कार्य जारी है।' पाठक ने बताया कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने बंकरों के उचित निर्माण का मुद्दा गृह मंत्रालय के समक्ष पहले ही उठाया है।

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