Jammu And Kashmir: कश्मीर में आतंकी कर रहे सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल, सरहद पार आकाओं से कर रहे संपर्क
कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं पर रोक से हताश आतंकी अब सरहद पार बैठे आकाओं से संपर्क बनाने को सैटेलाइट फोन व उच्च क्षमता वाले रेडियो सेट इस्तेमाल करने लगे हैं।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं पर रोक से हताश आतंकी अब सरहद पार बैठे आकाओं से संपर्क बनाने के लिए फिर सैटेलाइट फोन और उच्च क्षमता वाले रेडियो सेट इस्तेमाल करने लगे हैं। इस समय कश्मीर में चार सैटेलाइट फोन हैं। इनमें श्रीनगर के आंचर सौरा इलाके में एक और दो अन्य दक्षिण कश्मीर में और एक उत्तरी कश्मीर में है।
हालांकि, राज्य पुलिस ने सीआरपीएफ और सेना के साथ संभावित इलाकों में घर घर तलाशी भी ली है, लेकिन सफलता नहीं मिली है।
दो फोन हो चुके बरामद :
इस साल कश्मीर में सुरक्षाबल दो सैटेलाइट फोन बरामद कर चुके हैं। पहला सैटेलाइट फोन 13 जनवरी को बांडीपोर में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी सरफराज से पकड़ा गया था। दूसरा पखवाड़ा पहले सोपोर में मारे गए आतंकियों के पास से मिला है। दोनों सैटेलाइट फोन थुरैया कंपनी के हैं। सरफराज से मिला सैटेलाइट फोन इसी माह बरामद हुए फोन से आत्याधुनिक था। वह स्मार्ट फोन जैसी सुविधाओं से लैस था।
आंचर सौरा में हुई थी सबसे अधिक हिंसा :
श्रीनगर के उत्तरी जोन के एसपी सज्जाद शाह ने कहा कि आंचर सौरा इलाके में कुछ दिनों के दौरान एक-दो बार सैटेलाइट फोन होने का पता चला है। सही पोजिशन पता नहीं चल पाई। हमने एक इलाके को चिन्हित करते हुए घेराबंदी कर घर-घर तलाशी भी ली, कुछ नहीं मिला। एक संदिग्ध युवक को जरूर पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। यह वही इलाका है जहां अगस्त में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद सबसे ज्यादा हिंसक और राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन हुए थे।
1998 से शुरू हुआ था इस्तेमाल :
कश्मीर में आतंकियों और उनके ओवरग्राउंड नेटवर्क द्वारा सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल कोई नया नहीं है। एसएसपी सिक्योरिटी इम्तियाज हुसैन मीर ने कहा कि कश्मीर में आतंकियों ने सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल कर 1998 के दौरान शुरू किया था। वर्ष 2003 तक खूब इस्तेमाल होता था। मोबाइल फोन सेवा के शुरू होने के बाद आतंकियों की इस पर निर्भरता कम हो गई। जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकी अपने ओवरग्राउंड नेटवर्क से लेकर पाकिस्तान, खाड़ी व यूरोपीय मुल्कों में बैठे हैंडलरों के साथ मोबाइल फोन व इंटरनेट नेटवर्क के जरिए संपर्क रख रहे थे।
किसी की पकड़ में नहीं आते :
यह एक सस्ता और सुरक्षित विकल्प है। इंटरनेट पर वॉयस ऑन इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआइपी) पर बातचीत कर वह किसी की पकड़ में नहीं आते और न उनकी बातचीत को आसानी से सुना जा सकता है। कश्मीर में पांच अगस्त से इंटरनेट और प्रीपेड मोबाइल फोन बंद हैं। ऐसे में सैटेलाइट फोन और रेडियो सेट ही उनके लिए आपस में सपर्क बनाए रखने का जरिया है। वह इस समय ह्यूमन इंटेलीजेंस नेटवर्क भी मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं।
प्रत्येक आतंकी के पास नहीं होता सेटलाइट फोन :
सैटेलाइट फोन का विकल्प आतंकी संगठनों के लिए भी ज्यादा मुफीद नहीं है। सैटेलाइट फोन महंगे होते हैं और इन पर बातचीत करना भी महंगा होता है। किसी कमरे के भीतर बैठकर या किसी भूमिगत ठिकाने से इन पर बातचीत करने में दिक्कत रहती है। आतंकी संगठनों द्वारा कुछ खास परिस्थितियों में ही इनका इस्तेमाल किया जाता है और किसी इलाके विशेष में सक्रिय आतंकी कमांडर को ही यह प्रदान किए जाते हैं। कई बार इनका इस्तेमाल विभिन्न आतंकी संगठनों के लिए साझा कम्यूनिकेशन तंत्र संभालने वाले आतंकी कमांडर को ही सौंपा जाता है।
श्रीनगर में उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास कर रहे आतंकी
हताश आतंकी संगठनों ने ग्रीष्मकालीन राजधानी में भी उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास किया है। आतंकियों ने श्रीनगर के हरि सिंह हाईस्ट्रीट में दो बार ग्रेनेड हमले करने के अलावा कर्णनगर इलाके में सीआरपीएफ के जवानों पर गत माह हमला किया था। श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र इलाके में उनकी गतिविधियां भी महसूस की गई हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, श्रीनगर में चार से पांच आतंकी सक्रिय हैं।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, बीते तीन माह के दौरान कई बार आतंकी श्रीनगर में दाखिल होने में कामयाब रहे हैं। वह यहां टिक नहीं पाए, क्योंकि सुरक्षाबलों को जल्द उनकी उपस्थिति का पता चल गया और तलाशी अभियान चलाए गए।