हुई सख्ती, तो कश्मीर में गायब हुए पत्थरबाज
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की 2690 घटनाएं हुई थीं, लेकिन अनधिकृत सूत्रों की मानें तो यह संख्या 5000 से ज्यादा थी।
श्रीनगर, [नवीन नवाज]। सेना, पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के बेहतर तालमेल ने कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकवाद की कमर तोड़कर रख दी है। इसका सबसे बड़ा फायदा कश्मीर में शांति बहाली में रोड़ा बन चुकी पत्थरबाजी पर लगाम लगाने में हुआ है।
बड़े अलगाववादियों पर शिंकजे के साथ पत्थरबाजों की धरपकड़ और उनका वित्तीय नेटवर्क तबाह होने से अब कश्मीर में पत्थरबाजी मंद पड़ चुकी है। मस्जिदों से गूंजने वाले जिहादी तराने और भड़काऊ भाषण भी पत्थरबाजी की धार तेज करने में समर्थ नजर नहीं आ रहे हैं। घाटी में अब कहीं भी पत्थरबाज खुलेआम घूमते और जनजीवन को प्रभावित करते नहीं दिखते, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से बचते फिर रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की 2690 घटनाएं हुई थीं, लेकिन अनधिकृत सूत्रों की मानें तो यह संख्या 5000 से ज्यादा थी। वहीं मौजूदा वर्ष में सितंबर के अंत तक पत्थरबाजी की 1009 घटनाएं हुई हैं।
राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, 2017 की शुरुआत में पथराव की घटनाओं में कमी आ चुकी थी, लेकिन हालात देखकर सुरक्षा एजेंसियों को जून से अक्टूबर तक इन घटनाओं में तीव्र बढ़ोतरी की आशंका थी। यह कुछ हद तक सही भी साबित हुई, लेकिन लेकिन जुलाई के बाद इनमें कमी आई है। जुलाई तक पथराव की घटनाएं मुख्यत: दक्षिण कश्मीर में हुई। ये घटनाएं आतंकियों के सुरक्षाबलों की घेराबंदी में फंसने पर मस्जिदों से जिहादी तरानों व पथराव के एलान पर हुईं।
पुलिस के अनुसार, अप्रैल में कश्मीर में संसदीय चुनाव थे और उसके बाद अगले तीन माह तक अलगाववादी भी सक्रिय रहे, लेकिन उसके बाद सेना का मिशन आलआउट और एनआइए की छापेमारी से हालात बदले।
अधिकतर शातिर पत्थरबाज जेल में :
कश्मीर में शातिर पत्थरबाजों में अब अधिकांश जेल में हैं। जो बचे हैं, वे भूमिगत हैं। इन पत्थरबाजों को पकड़ने के लिए पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के साथ स्थानीय लोगों की मदद भी ली। श्रीनगर के डाउन-टाउन में पत्थरबाजों का मुख्य सरगना सज्जाद गिलकारी मुठभेड़ में मारा गया, जबकि उसके छह अन्य साथी जेल में हैं।
हवाला कारोबारियों पर कार्रवाई का असर :
एनआइए की हवाला कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई से अलगाववादियों का वित्तीय नेटवर्क तबाह होने से पत्थरबाजी में कमी आई है। अलगाववादी खेमा जो पहले हर छोटी बात पर बंद का एलान करता था, अब इससे बच रहा है और लोगों से शांतिपूर्ण तरीके से सिर्फ सांकेतिक प्रदर्शनों का आह्वान कर रहा है।
खेल भी बना कारगर :
पत्थरबाजी के गढ़ रह चुके कस्बों सोपोर, मागाम, शोपियां, त्रल, कुलगाम, हंदवाड़ा आदि में सुरक्षाबल युवाओं को खेल की तरफ प्रोत्साहित कर रहे हैं। साथ ही कश्मीर में सबसे लोकप्रिय खेल फुटबाल का आयोजन रात्रि में कर हालात को बेहतर बना रहे हैं।
पत्थरबाजों की धरपकड़ के अलावा उनकी काउंसलिंग और उनके अभिभावकों से संवाद कारगर साबित हो रहा है। कई पत्थरबाज हिंसा से दूर हुए हैं।
-डॉ. एसपी वैद, राज्य पुलिस महानिदेशक