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विडंबना देखिए कि महबूबा मुफ्ती रहती हिंदुस्तान में हैं, मगर तिरंगा नहीं फहराएंगी

महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया कि वह और कोई झंडा नहीं फहराएंगी जब तक कि अनुच्छेद 370 को पहले की भांति लागू नहीं किया जाता। महबूबा रहती हिंदुस्तान में हैं नमक हिंदुस्तान का खाती हैं मगर हिंदुस्तान का झंडा नहीं फहराएंगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 12:08 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 12:08 PM (IST)
विडंबना देखिए कि महबूबा मुफ्ती रहती हिंदुस्तान में हैं, मगर तिरंगा नहीं फहराएंगी
महबूबा रहती हिंदुस्तान में हैं, नमक हिंदुस्तान का खाती हैं, मगर हिंदुस्तान का झंडा नहीं फहराएंगी।

उपेंद्र सूद। हमें चीन का साथ चाहिए। चीन को चाहिए कि वह जम्मू-कश्मीर को अपने साथ मिला ले।’ यह कहने वाले फारूक अब्दुल्ला अब राष्ट्रीयता का जामा ओढ़ रहे हैं और यह कह रहे हैं कि वे और उनके साथ आए हर राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हैं, न कि देश के। कल तक कश्मीर के जो राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते थे, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते थे जैसे कि नेशनल कांफ्रेंस या पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी आज वही दल एकजुट हो रहे हैं, क्योंकि उनके राजनीतिक वजूद को केंद्र सरकार ने एक झटके में ही समाप्त कर दिया है।

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महबूबा रहती हिंदुस्तान में हैं, नमक हिंदुस्तान का खाती हैं : अभी हाल में श्रीनगर के बेहद पॉश इलाके में जम्मू-कश्मीर के छह सियासी दलों की बैठक हुई और वहां पर उन सबने मिलकर एक घोषणा पत्र बनाया, जिसका नाम रखा पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन। हालांकि इस मीटिंग में लगभग दस लोगों ने भाग लिया, लेकिन फिर भी नाम रखा गया पीपुल्स अलायंस। गुपकार इसलिए, क्योंकि जहां पर इन अमीरों के बंगले हैं उस रोड का नाम गुपकार है। जहां पर आम आदमी की पहुंच ही नहीं। ऐसे में कहा जा सकता है कि यह मीटिंग तो इन दलों के नेताओं ने अपना वजूद बचाने के लिए की है। महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया कि वह और कोई झंडा नहीं फहराएंगी जब तक कि अनुच्छेद 370 को पहले की भांति लागू नहीं किया जाता। महबूबा रहती हिंदुस्तान में हैं, नमक हिंदुस्तान का खाती हैं, मगर हिंदुस्तान का झंडा नहीं फहराएंगी।

जम्मू-कश्मीर के लोगों ने आम चुनाव में बढ़ चढ़ कर भाग लिया : उमर अब्दुल्ला भी यह भूल जाते हैं कि 70 वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता यह कहकर दी गई थी कि वहां के रहने वाले नागरिक यह तय करेंगे कि वे भारत के साथ रहेंगे या नहीं। हालांकि यह और बात है कि वहां कई बार आम चुनाव हो चुके हैं और जम्मू-कश्मीर के लोगों ने उसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया है, जो कि उनकी इच्छा को बार-बार भारत के साथ जाने की ओर इशारा करता है। हाल में लेह-लद्दाख में काउंसिल के हुए चुनाव इस बात की तरफ साफ इशारा करते हैं कि वहां के लोग भी भारत के साथ ही रहना पसंद करते हैं।

केंद्र सरकार ने भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून : अब जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के करीब एक साल बाद केंद्र सरकार ने भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानूनों में संशोधन करते हुए जमीन के मालिकाना हक से संबंधित 10 प्रावधानों को निरस्त कर दिया है। अब देश के किसी भी कोने में रहने वाला नागरिक जम्मू-कश्मीर में अपना घर बना सकता है। वह घर ही नहीं, जमीन खरीदकर वहां पर कारोबार भी कर सकता है। यह कानून जम्मू-कश्मीर के आर्थिक विकास के लिए एक अहम भूमिका निभा सकता है। अब जम्मू-कश्मीर के लोगों को सोचना होगा कि वे किस रास्ते पर चलें। क्योंकि राजनीतिक दलों के नेता तो आते हैं और अपनी बात कह कर चले जाते हैं। इसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है। - अडनी


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