आतंक का गढ़ रहे सोपोर में रिकॉर्ड तोड़ मतदान, अफजल गुरु के भाई से लेकर 20 नेताओं का भविष्य EVM में कैद
Jammu Kashmir Electionsजम्मू-कश्मीर में आज तीसरे चरण का चुनाव भी संपन्न हो गया है। 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। तीसरे चरण में सोपोर में भी मतदाताओं में खासा उत्साह नजर आया। आज चुनाव के दौरान सोपोर पूरी तरह से लोकतंत्र के रंग में सरोबार नजर आया और बीते 35 वर्षों में अब तक हुए मतदान का रिकॉर्ड टूट गया।
नवीन नवाज, सोपोर। Jammu Kashmir Assembly Elections: सेब की टोकरी, कश्मीर का छोटा लंदन, सोपोर। नाम ही काफी है। उत्तरी कश्मीर में आतंकवाद, अलगावाद और चुनाव बहिष्कार की राजनीति का केंद्र सोपोर ही रहा है, जहां मतदान दिवस का मतलब पथराव, अश्रुगैस और सिविल कर्फ्यू था।
अधिकांश मतदान केंद्र सूने रहते थे, कुछ गिने चुने मतदान केंद्रों में ही सैकड़ों की संख्या में मतदान होता था। किंतु, मंगलवार को जब जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र के महोत्सव का अंतिम चरण था तो यही सोपोर पूरी तरह से लोकतंत्र के रंग में सरोबार नजर आया और बीते 35 वर्षों में अब तक हुए मतदान का रिकॉर्ड टूट गया।
अलगाववाद और चुनाव बहिष्कार के मिथक को तोड़ने आए युवा मतदाताओं में जहां रोजगार और विकास की चाह थी तो वहीं कई बुजुर्ग मतदाता बंदूक को हमेशा के लिए खामोश चाहते थे।
कुछ अपने आतंकी बेटों की वापसी की आस में वोट डाल रहे थे तो कुछ लोकतांत्रिक तरीके से पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति की बहाली की उम्मीद में मतदान केंद्र तक पहुंचे थे।
सोपोर में प्रतिबंधित जमाते-ए- इस्लामी समर्थित मंजूर अहमद और आतंकी अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु समेत 20 उम्मीदवार मैदान में हैं।
अफजल गुरु का संबंध सोपोर से रहा है
कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के इतिहास में सोपोर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देने वाले सैयद अली शाह गिलानी, संसद हमले में शामिल रहे आतंकी अफजल गुरु समेत कई नामी अलगाववादी और कुख्यात आतंकियों का संबंध सोपोर से ही रहा है। सोपोर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का गढ़ रहा है। यहां वोट डालने का मतलब कौम और इस्लाम से गद्दारी से माना जाता था।
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साल 2002 में हुआ था सिर्फ आठ फीसदी मतदान
खैर, आज सोपोर में 35 वर्ष के मतदान का आज रिकॉर्ड टूटा है। वर्ष 2002 में सोपोर में मात्र आठ प्रतिशत मतदान हुआ था। वर्ष 2014 में सोपोर में लगभग 30 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि आज आज 41.44 प्रतिशत के करीब मतदाताओं नेअपने मताधिकार का प्रयोग किया है।
उससे भी बड़ी बात यह कि पूरे विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में कहीं भी कोई हिंसक घटना नहीं हुई ,कहीं कानून व्यवस्था का संकट पैदा नहीं हुआ। कल तक जो चुनाव बहिष्कार का समर्थन करते थे,उनमें से भी कई आज मतदान केंद्र में अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए लाइन में खड़े नजर आए।
मताताओं ने बताया अपना अनुभव
बराथकलां में मतदा नकेंद्र में खड़े गुलाम हसन मीर ने कहा कि कि मेरा पुत्र उमर कुछ वर्ष पहले आतंकी बन गया था। वह पता नहीं किस आजादी की चाह में गया है।
काश, वह यहां होता तो समझ जाता कि बंदूक और ग्रेनेड से जो नहीं मिल सकता, वह सब यहां वोट से मिल सकता है। यहां बीते 30-35 साल से बंदूक है, लेकिन इससे क्या मिला, सिर्फ बर्बादी।
पता नहीं हम जैसों के कितनों के घर बर्बाद हुए हैं। अपनी नम होती आंखों को पांछते हुए उसने कहा कि मैं जानता हूं कि यहां मुझे देखकर बहुत से लोग मुझसे बात करेंगे और जरूर मेरी यह बात मेरे बेटे तक पहुंचेगी।
मैं उससे यही अपील करता हूं कि वह जहां भी है,बंदूक छोड़ दे, वापस घर आ जाए। यही एक मायूस और मजबूर बाप की अपील है।
उसका दिल जरूर पिघलेगा,वह पत्थर दिल नहीं है। उसने कहा कि मैने यहां अमन और तरक्की के लिए वोट डाला है।अगर यहां तरक्क होगी,अमन होगा तो किसी का बेटा बंदूक नहीं उठाऐगा, उसके हाथों पर किसी इंसान का खून नहीं लगेगा।
मेरा बेटा भी आतंकी है: मोहम्मद हमजा
मीर के पास खड़े मोहम्मद हमजा ने कहा मेरा बेटा बिलाल भी उमर की तरह आतंकी है। अगर मेरा वोट मेरे बेटे को वापस लाता है, तो मैं इस अवसर को कभी नहीं छोड़ूंगा। मैं बार-बार वोट दूंगा। मैं अपने बेटे बिलाल से अपने घर लौटने का आग्रह करता हूं।
कोई उसे समझाए कि बुजुर्ग मां-बाप का कंधा जवान बेटों के जनाजे को नहीं उठा सकता। हम तो उसे दूल्हा बना देखना चाहते हैं,वह अपने खानदान को आगे बढ़ाए। इसलिए मैं चाहता हूं कि वह वापस आ जाए। काेई उसे समझाए कि यहां बंदूक से कुछ नहीं मिलेगा।
सोपोर के चिकीपोरा में मतदान केंद्र में खड़े इश्तियाक अहमद ने कहा कि मैं पहली बार वोट डालने आया हूं। मैंने पार्लियामेंट इलेक्शन में भी वोट नहीं डाला था।
मैं चाहता हूं कि कश्मीर में हमेशा के लिए अमन कायम रहे और उसके लिए जरूरी है कि हमें हमारे वह सभी हक लौटाए जाएं जो पांच अगस्त 2019 को लिए गए हैं।
'मैंने कभी नहीं देखा इतनी तादात में मतदान'
जीवन के साठ वसंत पार कर चुके गुलाम नबी ने कहा कि सच पूछाे तो मैने पहली बार यहां इतनी बड़ी तादाद में वोटिंग देखी है। शुक्र है, कि लोगों को वोट की कीमत समझ आ रही है। पहले यहां बायकॉट होता था और उसी कारण सोपोर के विकास पर काेई ध्यान नही देता था। अब यहां वोट पड़े हैं तो जो भी विधायक बनेगा, उसे समझ आ गया होगा कि अगर वह काम नहीं करेगा तो उसका पत्ता कटेगा।
पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं को अनुभव
सायमा फैयाज नामक एक छात्रा ने कहा कि मैं पहली बार वोट डालने आयी हूं ताकि हमारे जो अधिकार हैं,वह सुरक्षित रहें।
सोपोर में ही नहीं पूरे कश्मीर में बीते पांच साल से युवाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। यहां जब से 370 हटा है, कई तरह की दिक्कतें हो रही है। मुझे उम्मीद है कि मैंने जिसे वोट दिया है, वह जरूर हमारे हक के लिए लड़ेगा।
कश्मीर मामलों के जानकार फैयाज वानी ने कहा कि मैंने वर्ष 1996 से लेकर अब तक हर चुनाव को बड़ी करीब से देखा है। मैंने पहली बार यहां लाेगों में वोट की ताकत के अहसास को महसूस किया है।
यह जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को ,चुनावी राजनीति को एक नयी गति, एक नयी मजबूती देगा। जिस तरह से प्रतिबंधित जमाते इस्लामी ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
इंजीनियर रशीद ने जिस तरह से जेल का बदला वोट का नारा दिया है, कश्मीर मसले के समाधान के मुद्दे को उछाला है, उससे भी लोग मतदान के लिए प्रेरित हुए हैं।
लोगों में यह अहसास मजबूत हुआ है कि उनके सीा मसले वोट की सियासत से हल हो सकते हैं। सोपोर का यह मतदान कश्मीर में चुनाव बहिष्कार की राजनीति को हमेशा के लिए दफन करने में सहायक होगा।
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