हुर्रियत में पीपुल्स कांफ्रेंस की मौजूदगी खत्म
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीर में बुधवार को हुए एक अहम सियासी घटनाक्रम के बीच पीपुल्स कांफ
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीर में बुधवार को हुए एक अहम सियासी घटनाक्रम के बीच पीपुल्स कांफ्रेंस का अलगाववादी स्वरूप व हुर्रियत में उसकी मौजूदगी पूरी तरह खत्म हो गई है। हुर्रियत में शामिल पीपुल्स कांफ्रेंस के बिलाल गुट का नाम बदल गया है। अब उसे जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट के नाम से जाना जाएगा। यह एलान वीरवार को हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने हुर्रियत मुख्यालय में किया। इस मौके पर बिलाल ने कहा कि हम हुर्रियत में ही बने रहेंगे। वहीं, उनके छोटे भाई सज्जाद गनी लोन 2008 के बाद मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गए थे।
दो गुटों में बंट गई थी पीपुल्स कांफ्रेंस :
वर्ष 2004 में पीपुल्स कांफ्रेंस दो गुटों में बंट गई थी। एक गुट जिसका नेतृत्व सज्जाद गनी लोन कर रहे थे, पीपुल्स कांफ्रेंस सज्जाद बन गई। दूसरा गुट जिसका नेतृत्व सज्जाद गनी लोन के बड़े भाई बिलाल गनी लोन कर रहे थे, वह बिलाल गुट कहलाई। हुर्रियत कांफ्रेंस के घटक दलों में पीपुल्स कांफ्रेंस एक अहम घटक है और बिलाल गनी लोन उसकी स्थायी कार्यकारी समिति के सदस्य हैं। सज्जाद गनी लोन ने हुर्रियत से करीब 14 साल पहले ही किनारा कर लिया था, लेकिन वह वर्ष 2008 तक अलगाववादी सियासत में सक्रिय रहे और उसके बाद मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गए थे। पीपुल्स कांफ्रेंस का बिलाल गुट हुर्रियत के साथ ही रहा और हमेशा कश्मीर में आजादी व जनमत संग्रह की वकालत करता आया है। सज्जाद ने मोदी को बताया था बड़ा भाई :
सज्जाद और बिलाल में पीपुल्स कांफ्रेंस पर अपना दावा जताने की जंग वर्ष 2014 में तेज हुई थी, जब सज्जाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने बड़े भाई जैसा बताते हुए संकेत दिया था कि वह भाजपा के साथ जाने वाले हैं। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने पीपुल्स कांफ्रेंस के बैनर तले ही हिस्सा लिया और वह दो सीटों पर जीते। गत मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग ने सज्जाद गनी लोन की पार्टी को सेब का चुनाव निशान भी दे दिया। बैठक में चर्चा के बाद बदला संगठन का नाम :
बिलाल ने बुधवार सुबह अपने विश्वस्तों की बैठक राजबाग स्थित हुर्रियत कांफ्रेंस मुख्यालय में बुलाई। इसमें उन्होंने संगठन का नाम बदलने पर चर्चा की। इसके बाद मीरवाइज मौलवी की अध्यक्षता में हुर्रियत के सभी प्रमुख नेताओं की एक बैठक हुई। इसमें बिलाल के नेतृत्व वाली पीपुल्स कांफ्रेंस को जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट बदलने का औपचारिक फैसला हो गया। कश्मीर के हितों के साथ समझौता नहीं करेंगे : बिलाल
बिलाल ने कहा कि पीपुल्स कांफ्रेंस को लेकर यहां लोगों में बहुत से भ्रम पैदा हो रहे हैं। मैं नहीं चाहता कि मेरे पिता का मिशन किसी तरह से प्रभावित हो। इसलिए पीपुल्स कांफ्रेंस का नाम बदलना मेरे लिए एक बड़ी मजबूरी बन चुका था, क्योंकि कई लोग अब पीपुल्स कांफ्रेंस को कश्मीरियों के खिलाफ काम करने वाली कहने लगे थे, लेकिन हमारा एजेंडा, पार्टी के उसूल और संगठनात्मक ढांचा व संविधान पहले जैसा ही रहेगा। हम कश्मीर के हितों और कश्मीर के शहीदों के मिशन के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। मीरवाइज ने फिर की हक-ए-आजादी की बात :
मीरवाइज ने कहा कि हम कश्मीर मसले के शांतिपूर्ण समाधान के पक्षधर हैं और चाहते हैं कि इसके लिए बातचीत हो, लेकिन हम सिर्फ वार्ता के लिए ही बातचीत में हिस्सा नहीं लेंगे। उन्होंने भड़ास निकालते हुए कहा कि भारतीय सोशल मीडिया और भारत सरकार कश्मीरी अवाम के जज्बात के साथ खिलवाड़ कर रही है। लेकिन हम अपने हक ए आजादी को लेकर रहेंगे और इसके लिए हर कुर्बानी देंगे। अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था पीपुल्स कांफ्रेंस का गठन
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : पीपुल्स कांफ्रेंस का गठन वर्ष 1978 में अब्दुल गनी लोन ने कश्मीर के प्रमुख शिया नेता मौलवी इफ्तिखार हुसैन अंसारी के साथ मिलकर किया था। अब्दुल गनी लोन ने 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ऑफ कश्मीर जिसे मफक और मफ भी कहते हैं, के गठन में मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके बाद 1993 में उन्होंने हुर्रियत कांफ्रेंस के बैनर तले कश्मीर के सभी अलगाववादी नेताओं को जमा करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। अब्दुल गनी लोन को अल-उमर के आतंकियों ने 21 मई 2002 को श्रीनगर के ईदगाह में मीरवाइज फारूक अहमद की बरसी पर आयोजित रैली में मौत के घाट उतारा था। अब्दुल गनी लोन की मौत के बाद पीपुल्स कांफ्रेंस का अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन को बनाया गया और हुर्रियत कांफ्रेंस में पीपुल्स कांफ्रेंस के स्थायी प्रतिनिधि के तौर पर बिलाल गनी लोन को शामिल किया गया। वर्ष 2002 के चुनावों में सज्जाद गनी लोन ने कथित तौर पर पीपुल्स कांफ्रेंस के कुछ लोगों को बतौर निर्दलीय या अन्य दलों के प्रत्याशियों के तौर पर मैदान में उतारा था। इसे लेकर हुíरयत के साथ उनके मतभेद गहरा गए थे। बाद में उन्होंने जब हुíरयत से नाता तोड़ा तो पीपुल्स कांफ्रेंस भी दो गुटों में सज्जाद और बिलाल में बंट गई।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि अब्दुल गनी लोन और मौलवी इफ्तिखार हुसैन अंसारी ने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था। गनी लोन बाद में कुछ समय नेशनल कांफ्रेंस के साथ भी जुड़े। जम्मू कश्मीर में वह जनता दल की नींव रखने वालों में भी गिने जाते हैं और करीब दो साल तक जनता दल के साथ रहने के बाद उन्होंने इफ्तिखार हुसैन अंसारी के साथ मिलकर 1978 में पीपुल्स कांफ्रेंस का गठन किया था।