Jammu And Kashmir: अब घुसपैठ बढ़ाकर वादी में हालात बिगाड़ने की साजिशें बुन रहा पाकिस्तान
Infiltration in Kashmir. बड़े आतंकी कमांडरों के मारे जाने से हताश पाकिस्तानी सेना ने इस बार 10 जून तक 2027 बार जंगबंदी काे तोड़ा है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। Infiltration in Kashmir. कश्मीर घाटी में जून माह के पहले 14 दिनों में सुरक्षाबलों ने 22 आतंकियों को मार गिराया है। उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ सटे कुपवाड़ा से लेकर दक्षिण कश्मीर में इसी दौरान 19 ओवरग्राउंड वर्कर भी पकड़े जा चुके है। दो माह में एलओसी से घुसपैठ के करीब तीन दर्जन से ज्यादा प्रयास हो चुके हैं। भले ही बीते दो साल के आंकड़ों से स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं दिखता पर वहां का माहौल बताता है कि कश्मीर बदल रहा है। सबसे बड़ा अंतर है, आतंकियों जनाजे और नजर आने वाले पाकिस्तान या फिर तौहीद के झंडे। यही सबसे ज्यादा अहम है क्योंकि यही स्थिति कश्मीर में आतंकवाद का रुख तय करेगी।
मिशन आलआउट के बाद के आंकड़ें बताते हैं कि हर साल यूं ही साल के इन महीनों में सुरक्षाबल आतंकियों पर काल बनकर टूट पड़े हैं। इस साल पहली जनवरी से 14 जून तक वादी में करीब 110 आतंकी मारे जा चुके हैं। साल 2019 में पहले पांच माह के दौरान ही 100 आतंकी मारे गए थे, जबकि 28 आतंकी जून 2019 के दौरान मारे गए थे। साल 2018 में भी इस अवधि के दौरान मरने वाले आतंकियों की तादाद 100 का आंकड़ा पार कर चुकी थी। इस साल अब तक सुरक्षाबलों पर हमले, आइईडी लगाने, नागरिकाें को अगवा कर उन्हें कत्ल करने, पंच-सरपंचों को धमकाने और हथियारों की तस्करी संबंधी करीब 150 आतंकी वारदात हो चुकी हैं। कश्मीर में आतंकी हिंसा पर नजर रखने वालों के लिए आतंकियों की मौत या बढ़ती आतंकी घटनाएं सिर्फ एक आंकड़ा भर हैं। कश्मीर के हालात पर इन घटनाओं की प्रकृति और समय का ही सबसे ज्यादा असर होता है। सामान्य तौर पर मार्च माह की शुरुआत के साथ जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों व आतंकियों के बीच मुठभेड़ के मामले बढ़ जाते हैं। वर्ष 2003 के बाद करीब 2008 तक जम्मू-कश्मीर में सक्रिय सूचीबद्ध आतंकियों की संख्या एक बार 100 से नीचे जा चुकी थी। फिर यह एकाएक बढ़ना शुरू हुई और 2015 के बाद यह हर साल 200 से ऊपर ही रही है। इस साल की शुरुआत में सूचीबद्ध आतंकियों की संख्या करीब 300 थी।
जनता के बीच सुरक्षाबलों का नेटवर्क बढ़ा है
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी के अनुसार 2016 के बाद वादी में आतंकी हिंसा का स्वरुप बदला है और उसके साथ ही सुरक्षाबलों के अभियानों की गति और संख्या भी बढ़ी है। यह इस बात की तस्दीक करता है कि वादी में आतंकियों की लगातार बढ़ती संख्या के साथ ही सुरक्षाबलों का ग्राउंड इंटेलीजेंस नेटवर्क तेज हुआ है। बिना ग्राउंड इंटेंलीजेंस नेटवर्क के आप आतंकियों के खिलाफ यह सफलता अर्जित नहीं कर सकते। यह आपकी पहुंच को साबित करता है। आतंकियों के खिलाफ सूचनाएं उनके अड़ोस-पड़ोस से ही आएंगी। कहा जा सकता है कि लोग आतंकियों के खिलाफ हैं और सुरक्षाबलों व जनता के बीच संवाद व समन्वय बढ़ा है। इसी तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि मुठभेड़े और मरने वाले आतंकियों की संख्या के साथ यह स्थानीय युवा आतंकी नेटवर्क से जुड़े हैं। तीन सालों में मरने वाले आतंकियों में 80 फीसद स्थानीय ही थे। पांच साल पहले तक स्थानीय कम, विदेशी ही ज्यादा होते थे।
अब न हड़ताल और न पाकिस्तानी झंडे
राजनीतिक विश्लेषक रमीज मखदूमी ने कहा कि अगर आप आतंकवाद का ग्राफ देखें तो इस साल एक-दो घटनाओं को छोड़, आतंकी कोई सनसनीखेज वारदात को अंजाम नहीं दे पाए हैं। यह भी हंदवाड़ा तक सीमित रही। पुलवामा में आतंकियों ने एक बार फिर पिछले साल की तरह आइईडी वाहन बम कांड दोहराने की साजिश रची और नाकाम रहे। साजिश में शामिल आतंकी कमांडर अगले तीन दिन में मारा गया। इसे सुरक्षाबलों के खुफिया तंत्र को ही श्रेय दिया जाएगा। साफ है कि लोग आतंकियों के खिलाफ सुरक्षाबलों का सहयोग कर रहे हैं। इस साल अभी तक वादी में किसी भी जगह किसी आतंकी के मरने पर चार दिन की हड़ताल नहीं हुई है। एक दो अपवाद छोड़ दें तो इस साल मारे गए किसी आतंकी के घर पाकिस्तानी या फिर ताैहीद के झंडे के साथ जिहादी भाषण करने वाले नजर नहीं आए। चार-पांच सालों में कश्मीर में स्थानीय आतंकियों की भर्ती को गति इन्हीं झंडों और इनके साथ होने वाले जिहादी भाषणों ने दी थी। अब यह बंद हैं, स्थानीय युवाओं की भर्ती भी कम हुई है। खैर, सोशल मीडिया और एलओसी पर हालात बिगाड़ पाकिस्तान अभी भी हिंसा को बढ़ाने में लगा है।
एलओसी के हालात बता रहे पाकिस्तान की बौखलाहट
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि पुलिस, सेना, सीआारपीएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियां के व्यापक तालमेल व सुरक्षा एजेंसियों के जनता के साथ बढ़ते संवाद के चलते ही आतंकवाद के खिलाफ यह सफलता मिल रही है। उन्होंने कहा कि वादी के हालात और एलओसी व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी सेना द्वारा फायरिंग और युद्धविराम के उल्लंघन का सीधा संबंध रहता है। आतंकी अगर आरामदायक स्थिति में हों और उनका कैडर मजबूत हो तो कुछेक महीनों के अलावा एलओसी लगभग शांत रहती है। इसके विपरीत आतंकी कमजोर हों और कैडर घट रहा हो तो फिर एलओसी पर पाकिस्तानी सेना की फायरिंग की घटनाएं बढ़ जाती हैं। आतंकियों को धकेलने के लिए पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा को सुलगाए रखती है। इस समय भी गुलाम कश्मीर में बने लांचिंग पैड पर करीब 300 आतंकी मौजूद हैं।
दिन में 12 बार पाकिस्तान कर युद्ध विराम का उल्लंघन
साल 2019 में पाकिस्तान ने केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में 3168 बार जंगबंदी तोड़ भारतीय सैन्य व नागरिक ठिकानों पर गोलाबारी की है। इस बार पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। बड़े आतंकी कमांडरों के मारे जाने से हताश पाकिस्तानी सेना ने इस बार 10 जून तक 2027 बार जंगबंदी काे तोड़ा है। भारतीय सेना ने हर बार पाकिस्तान को मुहंतोड़ जवाब दिया है। जनवरी माह के दौरान 367, फरवरी में 366, मार्च में 411,अप्रैल में 387, मई में 382 बार पाकिस्तानी सेना ने जंगबंदी तोड़ी है। मौजूदा जून माह के पहले 10दिनों मे 114 बार जंगबंदी को तोड़ा गया है। वर्ष 2019में 3168 और 2018 में 1629 बार पाकिस्तानी सेना ने जंगबंदी को तोड़ा है।
जानें, किसने क्या कहा
लोग आतंकवाद से तंग आ चुके हैं। इसलिए अब मुठभेड़स्थलों पर भीड़ जमा नहीं होती। आम लोग ही आतंकियों के खिलाफ सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं। किसी लड़के के आतंकी बनने पर उसके परिजन फौरन पुलिस तक पहुंच रहे हैं। आम कश्मीरी पाकिस्तान के दुष्प्रचार और जिहाद की असलियत को समझ चुका है, इसलिए वह आतंकियों के सफाए की मुहिम में सुरक्षाबलों के साथ जुड़ रहा है।
- दिलबाग सिंह, पुलिस महानिदेशक, जम्मू कश्मीर।
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मौजूदा हालात में भारतीय सेना दो मोर्चाें पर लड़ रही है। एक तरफ आवाम की मदद की जा रही है तो दूसरी तरफ सीमा से लेकर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में आतंकियों से निपटा जा रहा है। आम लोगों के जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही देश की एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए हर कदम उठाया जा रहा है। पाकिस्तान सक्रिय आतंकियों को बड़ी वारदात के लिए उकसा रहा है लेकिन वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होगा।
- लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद, रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता।