अब दीवार के पीछे छिपे आतंकी भी सेना से नहीं बच पाएंगे
कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में सेना विशेष रडार का करेगी इस्तेमाल, कई बार मकान में छिपे आतंकी नहीं आते थे सुरक्षाबलों के हाथ।
राज्य ब्यूरो, [ श्रीनगर]। सुरक्षाबलों से बचने के लिए आतंकी अब चाहे किसी दीवार के भीतर, छतों या अलमारी में ही क्यों न छिप जाएं, लेकिन बच नहीं पाएंगे। आतंकियों को खोज निकालने के लिए सेना कंक्रीट की दीवारों के पीछे का हाल बताने में सक्षम राडार का इस्तेमाल करेगी।
सूत्रों ने बताया कि सेना ने ऐसी रडार प्रणाली आयात भी कर ली है। यह तकनीक आतंकरोधी अभियानों में ज्यादा सटीक और प्रभावी साबित होगी। यह सघन आबादी वाले इलाकों में मकानों के भीतर छिपे आतंकियों की सही स्थिति का पता लगाने में पूरी तरह समर्थ है और इससे आम नागरिकों या सुरक्षाकर्मियों की जनक्षति से भी बचने में मदद मिलेगी।
राज्य में आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे एक अधिकारी ने बताया कि कई बार ऐसा हो चुका है जब सुरक्षाबल आतंकियों को पकड़ने गए और मकान को पूरी तरह खंगालने के बाद भी खाली हाथ लौटे। बाद में स्थानीय मुखबिरों ने बताया कि आतंकी मकान में विशेष रूप से बनाए गए भूमिगत ठिकाने या छत पर बनाई गई जगह में छिपे थे।
उन्होंने बताया कि बीते साल जुलाई में आतंकी बुरहान के मारे जाने की घटना भी कुछ इसी तरह की स्थिति में हुई थी। बुरहान व उसके साथियों को जिंदा पकड़ने की तैयारी के साथ ही कोकरनाग स्थित उसके ठिकाने पर छापा मारा गया था। सुरक्षाबल उस मकान में तीन बार गए थे। पहली और दूसरी बार वह अपने साथियों संग बच गया, क्योंकि वह वहीं मकान में एक जगह फाल सीलिंग के बीच छिपा था। तीसरी बार भी वह हाथ नहीं आता, अगर वह खुद ही वहां से फायर नहीं करता। उसके बाद ही सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में बुरहान वानी समेत तीन आतंकी मारे गए।
उन्होंने बताया कि सुरक्षाबल जब किसी मकान में आतंकी को खोज नहीं पाते हैं तो उन्हें उग्र प्रतिरोधी भीड़ का भी सामना करना पड़ता है। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दीवारों के भीतर देखने में सक्षम रडार की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि कश्मीर में पाक परस्त आतंकियों को खत्म करने के लिए ऐसी कारगर साबित होगी। इससे सुरक्षाबलों को कम से कम क्षति पहळ्ंचेगी।
कैसे काम करता है रडार
यह रडार दिवारों या कंक्रीट से बने किसी अन्य ढांचे के पीछे छिपे व्यक्ति के शरीर से निकलने वाली शॉर्ट-इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के आधार पर काम करता है। यह रडार मनुष्य के शरीर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों में छोटे बदलावों को भी भांप लेता है, जैसे सांस लेने से होने वाला बदलाव भी इसपर दिखता है। राडार पर उभरने वाले संकेत सेना को छिपे हुए आतंकियों की जगह और उनकी गतिविधियों का तुरंत पता बता देंगे।
परीक्षण के बाद रडार की संख्या बढ़ेगी
सेना ने अभी कुछ ही राडार आयात किए हैं, लेकिन अधिकारियों को विश्वास है कि उपयोगिता का परीक्षण होने के बाद इनकी संख्या भी बढ़ेगी। दिलचस्प बात यह है कि रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरडीओ) की शाखा इलेक्ट्रॉनिक राडार डेवलेपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (एलआरडीई) भी इस राडार को स्वदेशी तकनीक से विकसित करने का प्रयास कर रही है। हालांकि वह अभी भी परीक्षण स्तर में ही है। इसे दिव्यचक्षु का नाम दिया गया है।
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