मां तो मां होती है, फौजी की हो या आतंकी की
मां चाहे आतंकी की हो या फौजी की। मां सिर्फ मां होती है। उसके लिए बेटे का जनाजा देखना बहुत मुश्किल होता है।
श्रीनगर, [राज्य ब्यूरो] । मां चाहे आतंकी की हो या फौजी की। मां सिर्फ मां होती है। उसके लिए बेटे का जनाजा देखना बहुत मुश्किल होता है। इसका सुबूत सोमवार को दक्षिण कश्मीर के हावूरा-कुलगाम में आतंक का पर्याय बने आतंकी दाऊद के जनाजे में मिला।
आतंकियों का महिमा गाने वाले जब आतंकी दाऊद के जनाजे में जिहादी नारे लगाते हुए स्थानीय युवकों को बंदूक थामने के लिए उकसा रहे थे तो उस समय दिवंगत आतंकी की मां ने जैसे ही अपने बेटे की लाश को अपने घर आते देखा तो वह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई। उसे ब्रेन हैमरेज हो गया। बुजुर्ग औरत को उसी समय निकटवर्ती अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा में भेज दिया। फिलहाल, उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है। इस बीच, दाऊद और सयार को उनके पैतृक कब्रिस्तानों में सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में सुपुर्दे खाक किया गया।
गौरतलब है कि दाऊद और सयार को सुरक्षाबलों ने खुडवनी में हुई एक मुठभेड़ में मार गिराया था। दाऊद की मां की हालत पर प्रतिक्रिया जताते हुए एक स्थानीय बुजुर्ग अख्तर हुसैन ने बताया कि बेचारी बूढ़ी मां ने कई बार अपने बेटे को हथियार डालने के लिए कहा था। वह नहीं माना और आज उसकी लाश देखकर वह खुद मौत की दहलीज पर पहुंच गई है। कौन मां चाहेगी कि वह अपने बेटे की लाश देखे। खाविंद पहले ही मर चुका था आज बेटा भी मर गया।
उन्होंने आतंकी के जनाजे में जिहादी तकरीरें कर कुछ लोगों की तरफ संकेत करते हुए कहा कि इन्हें दाऊद की मां का ख्याल नहीं है, इन्हें यहां किसी की मां का ख्याल नहीं है। अगर यह दाऊद के खैरख्वाह होते तो उसकी मां की फिक्र कर रहे होते लेकिन इन्हें आम लोगों से क्या।
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