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आतंक को ठेंगा, कश्मीर में 100 से ज्यादा महिलाएं ले रही चुनाव में हिस्सा

आतंकी संगठनों ने चुनावों को कश्मीर में जारी जिहाद और आजादी की तहरीक के खिलाफ बताते हुए कहा है कि जो चुनाव में भाग लेगा, वह कौम का गद्दार होगा।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 04 Oct 2018 07:38 PM (IST)Updated: Thu, 04 Oct 2018 07:45 PM (IST)
आतंक को ठेंगा, कश्मीर में 100 से ज्यादा महिलाएं ले रही चुनाव में हिस्सा
आतंक को ठेंगा, कश्मीर में 100 से ज्यादा महिलाएं ले रही चुनाव में हिस्सा

श्रीनगर, नवीन नवाज। निकाय चुनाव में भाग लेने वालों को मौत के घाट उतारे की धमकियों के बावजूद कश्मीर में 100 से ज्यादा महिलाएं चुनाव में हिस्सा ले रही हैं। इनमें से भी अधिकांश 65 महिला उम्मीदवार सिर्फ उत्तरी कश्मीर के 170 वार्डों में अपना भाग्य आजमा रही हैं। राज्य में चार चरणों में होने जा रही निकाय चुनाव प्रक्रिया में पहले चरण का मतदान आठ अक्तूबर को होने जा रहा है।

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चुनाव में भाग ले रही अधिकांश महिलाएं पहली बार चुनावी दंगल में उतरी हैं। कांग्रेस और भाजपा ने इस बार बड़ी संख्या में महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया है, लेकिन बतौर निर्दलीय चुनाव लडऩे वाली महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है। बारामुला में 10 और सोपोर में दो महिला उम्मीदवार मैदान में हैं। बारामुला में चुनाव लड़ रही अधिकांश महिला प्रत्याशी कांग्रेस से ही संबंध रखी हैं, जबकि दो अन्य निर्दलीय हैं। पट्टन में छह महिलाएं चुनावी भाग्य आजमा रही हैं। वत्रगाम और कुंजर में छह महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं।

सोपोर में 21 वार्ड हैं। 13 पर एक भी उम्मीदवार नहीं है, लेकिन शेष आठ वार्डों पर एक-एक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है, जिसके निर्विरोध निवार्चन का अधिकारिक एलान ही बाकी रह गया है। इनमें दो भाजपा की महिला प्रत्याशी हैं। बांडीपोर में बांडीपोर, सुंबल और हाजिन तीन नगर निकायों में 43 वार्ड हैं। बांडीपोर में चुनाव लड़ रही 23 महिलाओं में 11 कांग्रेस की प्रत्याशी हैं। ये सभी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। सुंबल में नौ और हाजिन में तीन महिला उम्मीदवार हैं। कुपवाड़ा, हंदवाड़ा, लंगेट नगर समितियों के 39 वार्डों में आठ महिलाएं भी चुनाव लड़ रही हैं। श्रीनगर में भी एक दर्जन के करीब महिला उम्मीदवार हैं और दक्षिण कश्मीर के चार जिलों में करीब दो दर्जन महिलाएं भाग्य आजमा रही हैं।

जानें, क्या है महिला प्रत्याशियों की राय 

बारामुला में चुनाव लड़ रही फरीदा ने कहा कि मैं निर्दलीय हूं। मेरे दोनों बेटे भी अलग अलग वार्डों में चुनाव लड़ रहे हैं। मैं पहली बार चुनाव लड़ रही हूं। हमारे जो विधायक हैं, या फिर पहले जो यहां हमारे वार्ड के नुमाइंदे रहे हैं, उन्होंने हमारी रोजमर्रा की समस्याओं की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। गलियां टूटी हैं, बिजली नहीं आती, पेयजल का संकट रहता है। इन समस्याओं से मर्दों केबजाय औरतों पर ज्यादा असर होता है। इसलिए मैंने चुनाव लडऩे का फैसला किया है। यह पूछे जाने पर कि आतंकियों और अलगाववादियों ने चुनाव बहिष्कार कर रखा है तो उन्होंने कहा कि यह चुनाव कश्मीर मसले के हल के लिए नहीं है और न ही हमारा इस मसले से कोई सरोकार हैं।

बांडीपोर से चुनाव लड़ रही एक महिला प्रत्याशी ने कहा कि इस तरह की धमकियां हर तरह के चुनाव में आती हैं। कइयों पर हमले भी हुए हैं, लेकिन डर कर रहने से गुजारा नहीं होने वाला। हमारा इलाका कश्मीर में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में एक है। आतंकवाद के कारण हमारा इलाका विकास की दौड़ में कहां खड़ा है, यह हम ही जानते हैं। आतंकी कश्मीर की आजादी और कश्मीर मसले की बात करते हैं, लेकिन यह चुनाव न कश्मीर की आजादी के लिए है और कश्मीर मसले के हल के लिए। यह तो हम आम लोगों के मसलों के हल के लिए है। अगर आतंकियों को लगता है कि हमारे चुनाव लडऩे से उनका मकसद पूरा नहीं होगा तो फिर उनका मकसद ही गलत होगा।

जानें, क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ शब्बीर हुसैन बुछ ने वादी में निकाय चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें महिला आरक्षण का भी एक बड़ा योगदान है। बहुत सी महिलाएं वह हैं, जिनके पति, भाई या पिता को टिकट की उम्मीद थी, लेकिन महिलाओं के लिए वार्ड आरक्षित होने के कारण उन्हें चुनाव में उतरना पड़ा। यह महिलाओं के लिए और रियासत में लोकतंत्र की मजबूती के अलावा यहां कानून व्यवस्था की स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक साबित होगा।

-कश्मीर मामलों की विशेषज्ञ तौफीक रशीद ने कहा कि जिस तरह से महिला उम्मीदवारों की संख्या बड़ी है, वह हैरान करने वाला है। आने वाले समय में यह स्थानीय सियासत में उनकी राय को अहम बनाएगी। आतंकवाद की बात की जाए तो इससे कश्मीर में महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, क्योंकि आतंकी हो, पत्थर फेंकने वाला नौजवान हो, पुलिस का जवान हो या फौजी, वह किसी का भाई है, किसी का बेटा तो किसी का पति। लेकिन जब कश्मीर मसले पर बातचीत की बारी आती है तो महिलाओं का कोई जिक्र नहीं होता, उनके नजरिए की कोई बात नहीं होती। इसलिए निकाय चुनावों में महिलाओं की यह भागेदारी एक बड़े बदलाव का कारण बनने जा रही है।

आतंकियों ने दे रखी है जान से मारने की धमकी  

कश्मीर में इस्लाम के नाम पर खून खराबा कर रहे आतंकी संगठनों ने चुनावों को कश्मीर में जारी जिहाद और कश्मीर की आजादी की तहरीक के खिलाफ बताते हुए कहा है कि जो चुनाव में भाग लेगा, वह कौम का गद्दार होगा। उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। हिज्ब कमांडर रियाज नायकू ने न सिर्फ कत्ल की धमकी दी है, बल्कि चुनावों में भाग लेने वालों की आंखों में तेजाब डालने की भी चेतावनी दी है।


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