ढहने लगा आतंकियों का मजबूत किला
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : दक्षिण कश्मीर में आतंकियों का मजबूत किला शोपियां अब उनके लिए मौत क
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : दक्षिण कश्मीर में आतंकियों का मजबूत किला शोपियां अब उनके लिए मौत का कुआं बनता जा रहा है। इस साल अब तक मारे गए करीब 220 आतंकियों में सबसे ज्यादा 40 आतंकी शोपियां के विभिन्न हिस्सों में ही सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए हैं। इनमें 30 से ज्यादा स्थानीय हैं। आज भी शोपियां के नादीगाम में चार स्थानीय आतंकी मारे गए हैं।
आइजीपी कश्मीर स्वयं प्रकाश पाणि ने कहा कि शोपियां हमारे लिए बीते दो वर्षो से चुनौती बना हुआ था। यहां न सिर्फ आतंकी संगठनों के लिए स्थानीय लड़कों की भर्ती बढ़ रही थी बल्कि सुरक्षाबलों को भी कई बार नुकसान उठाना पड़ रहा था। आतंकियों का इस पूरे जिले में डर और इंटेलीजेंस नेटवर्क मजबूत था।
उन्होंने बताया कि शोपियां में आतंकी अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने और सुरक्षाबलों से बचने के लिए मुठभेड़ के दौरान ¨हसक प्रदर्शनों, नई भर्ती और समर्थन जुटाने के लिए मारे गए आतंकियों के जनाजे का इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय आतंकी होने के कारण उनका ओवरग्राउंड नेटवर्क भी मजबूत रहा है, लेकिन हमने धीरे-धीरे शोपियां में अपना खुफिया नेटवर्क तैयार किया और आज नतीजा नजर आने लगा है।
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा कि इस साल पूरी वादी में अब तक जितने भी आतंकी मारे गए हैं, अगर जिला वार उनकी संख्या गिनी जाए तो शोपियां पहले नंबर पर है। पूरे दक्षिण कश्मीर में जिला शोपियां आतंकियों के लिए सबसे मुफीद माना जाता रहा है। पूरे जिले में बागों का जाल बिछा हुआ है। इसके अलावा यह जिला अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम व बडगाम से जुड़ा है। मैदान, पहाड़ व जंगल भी इस जिले में हैं। शोपियां में सक्रिय अधिकांश आतंकी स्थानीय ही हैं, जो बीते तीन वर्षो के दौरान गुमराह होकर जिहाद के रास्ते पर गए हैं। स्थानीय होने के कारण उन्हें इस जिले के हर हिस्से की अच्छी जानकारी है।
आइजीपी ने बताया कि शोपियां में सक्रिय आतंकियों और उनकी वारदातों की प्रोफाइ¨लग के बाद कुछ चीजों को चिन्हित किया गया। उनके आधार पर कुछ खास इलाकों में सेना की उपस्थिति बढ़ाई गई। पुलिस ने अपने ह्यूमन इंटेलीजेंस को भी विस्तार दिया। हालांकि इसमें जोखिम खूब है, लेकिन उठाया गया है। अब यह पेड़ पक गया है और अब न सिर्फ यहां आतंकी संगठनों में स्थानीय युवकों की भर्ती घटी है बल्कि सुरक्षाबलों के साथ आतंकियों की मुठभेड़ों और उनमें मरने वाले आतंकियों की तादाद भी बढ़ रही है। आतंकियों के समर्थन में होने वाली रैलियां और पथराव की घटनाएं भी नाममात्र रह गई हैं।