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खिजां में फूटती लोकतंत्र की कोंपलें

नवीन नवाज श्रीनगर : कश्मीर में आतंकवादियों की जान से मारने की धमकी, अलगाववादियों के बहिष्कार और नेश

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 09:06 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 09:06 PM (IST)
खिजां में फूटती लोकतंत्र की कोंपलें
खिजां में फूटती लोकतंत्र की कोंपलें

नवीन नवाज श्रीनगर : कश्मीर में आतंकवादियों की जान से मारने की धमकी, अलगाववादियों के बहिष्कार और नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी की चुनाव से दूरी। इसके बावजूद बेखौफ होकर मतदाताओं ने घरों निकल कर लोकतंत्र पर अपनी आस्था जाहिर की। मतदान केंद्रों में जो भी पहुंचा जान हथेली पर लेकर लोकतंत्र की रोशनी फैलाने और अलगाववाद की चिता सजाने के लिए। दक्षिण कश्मीर में आतंक के गढ़ कुपवाड़ा में ही 32 फीसद से ज्यादा लोगों ने वोट डाले। कश्मीर में कुल मिलाकर 18.58 फीसद मतदान हुआ।

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गौरतलब है कि पहले चरण में राज्य में 28 नगर निकायों के अलावा जम्मू नगर निगम और श्रीनगर नगर निगम के लिए मतदान हुआ है। आतंकियों ने दे रखी धमकी

हिजबुल मुजाहिदीन, अल-बदर और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों ने चुनाव लड़ने वालों से लेकर मतदाताओं को मौत के घाट उतारने, आंखों में तेजाब डालने की धमकी दे रखी थी। बीते चार दिनों में उन्होंने श्रीनगर में ही तीन उम्मीदवारों के घरों पर पेट्रोल बमों से हमला करने और नेशनल कांफ्रेंस के दो कार्यकर्ताओं की हत्या कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि जो भी उनके खिलाफ जाएगा, मारा जाएगा। ऐसे में सभी राजनीतिक पंडित दावा कर रहे थे कि शायद ही कश्मीर में कोई घर से बाहर निकले। कुपवाड़ा में लगी रही कतारें

सोमवार को सूर्याेदय के साथ डर का माहौल छंटता नजर आया। जैसे जैसे दिन चढ़ता गया मतदाताओं की गिनती उम्मीद के विपरीत बढ़ती गई। बड़गाम और श्रीनगर में जहां सुबह कहीं एक या दो ही मतदाता मतदान केंद्रों पर आए थे, दोपहर बाद तक उनकी संख्या दहाई का आंकड़ा पार कर गई। उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकी मकबूल बट के घर से चंद ही मीटर की दूरी पर स्थित एक स्कूल में बने मतदान केंद्र वोटरों की कतार हैरान करने वाली थी। इनमें महिलाओं की तादाद ज्यादा थी। हमें अपने वोट की अहमियत पता

रेहाना नामक महिला ने मुंह को ढकते हुए प्रेस फोटोग्राफ से कहा तस्वीर जरूरी है या वोट। इसलिए हमारी तस्वीर लेने के बजाय तुम भी वोट डालो तो बेहतर है। महिलाओं की कतार से कुछ दूरी पर खड़े नजीर अहमद ने कहा कि कश्मीर की आजादी का नारा देने वाले जो भी कहें, हमें अपने वोट की अहमियत और आजादी के नारे की सियासत का पूरा पता है। अगर आजादी और जिहाद का नारा सही होता, बंदूक से, चुनावों से दूर रहने से कश्मीर मसला हल होना होता तो आज तक यह सब हो चुका होता। हम लोगों को अपने जम्हूरी हक चाहिए और वह जम्हूयिरत की मजबूती से ही मिलेंगे। हमारी आजादी है और वह तभी होगा जब हम सभी यहां वोट डालने आएंगे। कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर दूर बांडीपोर जिसे लश्कर का गढ़ कहा जाता है, में एक मतदान केंद्र से बाहर आ रहे 26 वर्षीय सलीम से जब आतंकियों की धमकी के बारे में चर्चा हुई तो उसने सीधे शब्दों में कहा कि डर के आगे जीत है। डर को मारेंगे नहीं तो हमेशा के लिए मरते रहेंगे। हमें तरक्की चाहिए जो बंदूक और पाकिस्तान के प्रोपेगंडे के खात्मे से ही मिलेगी। यह तभी होगा जब यहां चारों तरफ जम्हूरियत का बोलबाला होगा। जिन लोगों को कश्मीर और कश्मीरियों से प्यार है,वही चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए हमें पता है कि कौन हमारा उम्मीदवार है। श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र बेमिना में बने मतदान केंद्र में जहां सबसे कम वोटर आए थे, शाम को मताधिकार का प्रयोग कर निकल रहे एक बुजुर्ग ने कहा कि मैं घर में बैठा हुआ था कि मुझे मेरे पोते ने बताया कि कुछ महिलाओं ने वोट डाला और उन्होंने कुछ लोगों को तस्वीरें लेने से मना किया। मैंने सोचा कि जब औरतें वोट डाल रही हैं तो फिर मैं क्यों घर में बैठूं। यह पूछे जाने पर कि वह हालात को कैसे देखते हैं तो उन्होंने बड़े ही दार्शनिक अंदाज में कहा कि देखो जब खिजां का दौर समाप्त होता है तो पेड़ों पर हरियाली एकदम नहीं आती। वादी में भी खिजां का दौर चल रहा है। जो लोग वोट डालने आए हैं वह खिजां में खिल रही लोकतंत्र की कोंपलें ही हैं।


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