Jammu And Kashmir: हाथों में पत्थर थमाने वालों से मिली दुत्कार, मुफलिसी में सेना बनी मददगार
Stone Pelter इश्फाक के पिता अब्दुल ने कहा कि कश्मीर में कुछ लोगों की स्वार्थपूर्ण सियासत ने मेरे बेटे को तबाही की तरफ धकेल दिया था। पूरा परिवार मुश्किल में था। इश्फाक को हीरो बताने वाले मुसीबत में हमारा साथ छोड़ गए। फौज ने बेटे की जिंदगी संवार दी।
श्रीनगर, नवीन नवाज। Stone Pelter: कैसी आजादी और कैसा जिहाद। कुछ लोगों ने निजी एजेंडे को पूरा करने के लिए हमारे जैसे युवाओं के हाथों में पत्थर थमा दिए। जब एजेंडा पूरा हुआ तो किनारा कर लिया। अब प्रसन्न हूं कि मैं सच को जान पाया और उनके फरेबी एजेंडे से आजादी मिली। यह केवल एक इश्फाक अहमद का दर्द नहीं, हर कश्मीरी युवा की कहानी है। हर तरफ से संकट से घिरे 26 वर्षीय इश्फाक अहमद और उस जैसे कई युवाओं के लिए सेना मददगार बनी और सम्मान से जीने की राह दिखाई। आज यह युवा रोजगार पाकर परिवार का सहारा बन रहे हैं। उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के लालोब निवासी इश्फाक बताता है कि मैं कभी इन फरेबी नारों में फंसकर मरने को निकलता था। यही वजह है उस पर पत्थरबाजी, आगजनी, हिंसक प्रदर्शन और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों में 11 एफआइआर दर्ज हैं। इस कारण वह सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस के लिए सिरदर्द था।
जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत 11 माह जेल में बिता चुके इश्फाक ने कहा कि मैं जब भी पकड़ा गया, परिवार के अलावा कोई मदद को नहीं आया। जिन लोंगों के कहने पर मैने पत्थर उठाए, आजादी और जिहाद के नारे लगाए, वह कन्नी काट गए। सबसे बुरी हालत तो उस हुई जब मैं ऊधमपुर जेल में बंद था और घर में मां बीमार थी। मुझे जमानत दिलाने के लिए पिता को जमीन बेचनी पड़ी। आजादी का पाठ पढ़ाने वालों के पास मैं मदद के लिए गया, उन्होंने मुझे दुत्कार दिया। मैने देखा कि मेरी तरह कई लड़के परेशानी के आलम में घूम रहे थे, सभी बेरोजगारी की मार झेल रहे थे। थानों के चक्कर काट रहे थे। मेरी हालत भी पतली थी, पिता भी काम पर जाने में असमर्थ थे। जहां नौकरी के लिए जाता, वहां से खाली लौटना पड़ता। मुझे कौन नौकरी देता?
सेना के अफसरों ने समझा दर्द और दिलाया रोजगार
एक दिन अचानक एक सेना का अधिकारी मिल गया। उससे अपना दर्द बताया। उसने कहा, देखते हैं। अगस्त में यहां कुपवाड़ा में सेना की 28 आरआर ने रोजगार मेला आयोजित किया। इलाके के कई पढ़े-लिखे और हुनरमंद नौजवान शामिल हुए। पिता के कहने पर मैं भी मेले में पहुंचा। पहले डर रहा था कि यहां फौजी अफसर मुझे देखेंगे तो क्या कहेंगे। मैं तो उन पर पथराव करता था। एक कंपनी के अधिकारियों के साथ बातचीत हुई। आज मैं बेकार नहीं हूं। मेरे साथ नौ और लड़कों को रोजगार मेले में नौकरी मिली है।
स्वार्थ की सियासत ने मेरे बेटे को तबाही की ओर धकेला
इश्फाक के पिता अब्दुल रशीद बट ने कहा कि कश्मीर में कुछ लोगों की स्वार्थपूर्ण सियासत ने मेरे बेटे को तबाही की तरफ धकेल दिया था। पूरा परिवार मुश्किल में था। इश्फाक को हीरो बताने वाले मुसीबत में हमारा साथ छोड़ गए। भला हो फौज का जो मेरे बेटे की जिंदगी संवार दी। उन्होंने कहा कि हमारे इलाके में एक फौजी अफसर ने एक दिन यूं ही मुझे पूछ लिया कि इश्फाक कश्मीर की दुश्मन ताकतों के लिए नारे लगाएगा या कुछ सही करेगा। इश्फाक भी फौज के पास जाने से हिचक रहा था। हमने कर्नल साहब से बात की और आज मेरा बेटा इज्जत की रोटी कमा रहा है।
राह से भटक गया था इश्फान: कर्नल
कर्नल महाजन ने कहा कि हमने यहां युवकों की छानबीन की। यह पता लगाया कि सबसे ज्यादा जरूरतमंद कौन है और वह कौन सा काम कर सकता है। इसके आधार पर हमने रोजगार मेले का आयोजन किया। मैंने खुद इश्फाक से कई बार बातचीत की तो मुझे महसूस हुआ कि वह सही मायनों में एक गुमराह युवक था।