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पांच अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आत्मघाती हमले के 72 घंटे के भीतर जम्

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 02:45 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 02:45 AM (IST)
पांच अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस
पांच अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आत्मघाती हमले के 72 घंटे के भीतर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने कड़ी कार्रवाई करते हुए पांच अलगाववादी नेताओं को मिला सुरक्षा कवच और तमाम सुविधाएं वापस ले ली हैं। शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पहुंचे गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सुरक्षा वापस लेने के संकेत दे दिए थे। बीते दशक में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसके अलावा कई अन्य तरह की सुविधाओं पर भी करोड़ों रुपये खर्चे गए। अपेक्षा की गई थी कि वे राज्य में बेहतर माहौल बनाने और सरकार से बातचीत कर कश्मीर संकट का हल खोजने का प्रयास करेंगे। पर वे आतंकवादियों के हाथों में खेलते रहे।

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रविवार को राज्य गृह विभाग के आदेश पर आल पार्टी हुर्रियत काफ्रेंस के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारूक, प्रो अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी लोन, शब्बीर शाह और हाशिम कुरैशी की सुरक्षा व अन्य सुविधाएं वापस ले ली गई। कट्टंरपंथी सैयद अली शाह गिलानी और अन्य कट्टरपंथियों की सुरक्षा हटाने पर सरकार अभी मौन है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति शासन के कारण इस समय राज्य प्रशासन का मुखिया राज्यपाल हैं।

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हमें कोई फर्क नहीं पड़ता

मीरवाईज मौलवी उमर फारूक और प्रो अब्दुल गनी बट ने कहा कि हमने कभी सुरक्षा नहीं मागी थी। अगर इसे हटाया जाता है तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। राज्य सरकार ने खतरे का आकलन कर हमें सुरक्षा दी थी। इसके जरिए हमारी गतिविधियों की निगरानी की जाती थी।

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अलगाववादी नेता और दस सालों में उनकी सुरक्षा पर खर्च

1. मीरवाईज मौलवी उमर फारूक

संगठन - हुर्रियत काफ्रेंस के चेयरमैन और आवामी एक्शन कमेटी के अध्यक्ष

सुरक्षा - 2015 से जेड प्लस और बुलेट प्रूफ वाहन, छह करोड़ रुपये खर्च किए गए।

कश्मीर के प्रमुख धार्मिक नेता हैं। अवामी एक्शन कमेटी का गठन उनके पिता मीरवाईज मौलवी फारूक ने किया था। 21 मई 1990 में आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी। उमर फारूक को उसके बाद ही सुरक्षा कवच मिला।

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2. प्रो अब्दुल गनी बट

संगठन -मुस्लिम काफ्रेंस कश्मीर के अध्यक्ष, हुर्रियत के पूर्व चेयरमैन

सुरक्षा - चार सुरक्षाकर्मी, 2.34 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

हुर्रियत दोफाड़ हुई तो बट, मीरवाईज मौलवी उमर फारूक के नेतृत्व वाले उदारवादी गुट के साथ ही रहे। सोपोर के रहने वाले हैं। उनके एक भाई की हत्या आतंकियों ने कर दी थी। हमेशा बातचीत के पक्षधर रहे हैं। हुर्रियत की मनाही के बावजूद केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से मुलाकात की।

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संगठन - जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट के अध्यक्ष

सुरक्षा - छह से आठ पुलिसकर्मी व एक सुरक्षा वाहन, 1.65 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट का गठन बिलाल के पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था। पिता की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद संगठन की कमान बिलाल के भाई सज्जाद ने संभाली और बिलाल को हुर्रियत में संगठन का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। 2002 के चुनावों में संगठन द्वारा प्रॉक्सी उम्मीदवार उतारे जाने से हुए विवाद के बाद हुर्रियत दोफाड़ हुई, बल्कि संगठन भी दो धड़ों बिलाल व सज्जाद में बंट गया।

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4. शब्बीर शाह

संगठन - पहले पीपुल्स लीग और अब जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी। कभी बंदूक के समर्थक थे, अब वार्ता के पक्षधर।

सुरक्षा - चार से छह पुलिसकर्मी और एक सुरक्षा वाहन, करीब दो करोड़ रुपये खर्च किए गए।

जिला अनंतनाग के रहने वाले शब्बीर शाह ने 1969 में अलगाववादी संगठन यंगमैन लीग के साथ अपना सियासी सफर शुरू किया। 1974 में पीपुल्स लीग बनाई। 1987 के विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया। उनके एक भाई विधायक भी रह चुके हैं। बाद में हुर्रियत काफ्रेंस से किनारा कर लिया। फिलहाल वह 2016 में हुए सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों और आतंकी फंडिंग के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद हैं। पत्नी डॉक्टर हैं। उनकी दो बेटिया हैं। सुरक्षा उनके परिवार को दी गई है।

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5. हाशिम कुरैशी

संगठन - जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्य,

जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी के अध्यक्ष

वार्ता के पक्षधर, पाकिस्तान विरोधी

सुरक्षा - दो पुलिसकर्मी, करीब 1.50 करोड़ रुपये खर्च किए गए। उन्होंने ही 1971 में इंडियन एयरलाइंस के विमान गंगा को अपने साथियों संग हाईजैक कर लाहौर में उतारा था। 1994 में जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी का गठन किया। वह पाकिस्तान में काफी समय रहे और उसके बाद हालैंड चले गए। 2000 में भारत आए। उनके चार बच्चे हैं। वह कश्मीर की आजादी की वकालत करते हैं।


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