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आतंकियों की बंदूक को लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराने पंचायत चुनाव में उतरा पूर्व आतंकी

आतंकियों की बंदूक को लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराने के लिए अब यह पूर्व आतंकी गुलाम मोहउद्दीन वानी भी सरपंच बनने के लिए मैदान में डटा हुआ था।

By Edited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 02:15 AM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2018 11:07 AM (IST)
आतंकियों की बंदूक को लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराने पंचायत चुनाव में उतरा पूर्व आतंकी
आतंकियों की बंदूक को लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराने पंचायत चुनाव में उतरा पूर्व आतंकी

राज्य ब्यूरो, जम्मू : दाढ़ी और सिर के बालों की सफेदी उसकी ढलती उमर का एलान कर रही है, लेकिन 1990 के दशक में खूंखार आतंकियों की श्रेणी में शामिल रहे मोहउद्दीन का जोश आज भी जवानों को हरा रहा था। उसने बंदूक की असलियत समझ आने पर सुरक्षाबलों के आगे हथियार डाले थे। आतंकियों की बंदूक को लोकतंत्र की ताकत का अहसास कराने के लिए अब यह पूर्व आतंकी गुलाम मोहउद्दीन वानी भी सरपंच बनने के लिए मैदान में डटा हुआ था। सुखनाग के राखी-वाचू गाव का रहने वाला वानी अब बेशक बूढ़ा हो गया है। लेकिन आज भी उसका इलाके में दबदबा है।

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राज्य में अलगाववादी दलों और मुख्यधारा के दो प्रमुख सियासी संगठनों के चुनाव बहिष्कार और अातंकवादियों के चुनावों में भाग लेने पर मौत के घाट उतारने के फरमान ने बेशक वादी में पंच-सरपंच चुनने वालों में अधिकांश जगह जोश नजर नहीं आया, लेकिन जिला बडगाम के सुखनाग ब्लॉक में खूब मतदान हुआ। हालाकि मतदाता वोट डालने के बाद किसी बाहरी व्यक्ति विशेषकर मीडियाकर्मियों से बातचीत करने से बच रहे थे, लेकिन वह बिना डरे ही बोला। मैं मौत से नहीं डरता। मैंने बंदूक उठाई थी, निजाम बदलने के लिए। मैं पंचायत चुनावों में हिस्सा ले रहा हूं कश्मीर में निजाम बदलने के लिए। यहा जम्हूरियत को मजबूत बनाने और अपने इलाके में तरक्की और खुशहाली का जरिया बनने के लिए। मुझे आतंकियों से डर नहीं लगता। मैं यहा सिर्फ सरपंच बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा हूं। मैं जम्हूरियत में दिल से यकीन रखता हूं।

सुखनाग ब्लॉक में सड़क किनारे स्थित सरकारी मिडिल स्कूल में जब लोग मतदान केंद्र पर पहुंच रहे थे तो वह वहीं कुछ दूरी पर अकेला खड़ा होकर मतदान करने वालों को बड़ी ध्यान से देख रहा था। बीच में कई लोग आकर उससे सलाम दुआ भी कर रहे थे। वह सभी से हंसकर बात करते हुए पूछ रहा था कि वह क्या सोचते हैं। चुनाव बहिष्कार के विभिन्न राजनीतिक दलों के एलान को ड्रामा करार देते हुए गुलाम मोहिउददीन ने कहा कि असलियत यहा लोग जानते हैं।

नेशनल काफ्रेंस और पीडीपी एक ही हैं। हुर्रियत नेताओं के बारे में भी लोग दबे मुंह कई तरह की बातें करते हैं। इन सभी ने कश्मीरियों को धोखा देकर अपने घर भरे हैं। मोहिउददीन ने कहा कि बाढ़ की तबाही के बाद केंद्र सरकार ने हमारी तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पैसा भेजा था, लेकिन वह पैसा सिर्फ पीडीपी के लोगों की जेब में गया। जो जरूरतमंद थे, जिनका सही मायनों में नुकसान हुआ था, उन्हें कुछ नहीं मिला। उमर अब्दुल्ला और उनकी नेशनल काफ्रेंस भी लोगों से धोखाधड़ी में पीछे नहीं है।

यह सियासी दल यहा लोगों में नफरत पैदा कर सिर्फ अपनी हुकूमत करना जानते हैं। यह लोग हिंदोस्तान के खिलाफ भी खूब बोलते हैं। मैं भी इसी प्रोपेगंडा का शिकार होकर मिलिटेंट बना था, जब मुझे हकीकत समझ आई तो मैंने बंदूक छोड़ दी। उसने कहा कि मुझे चुनाव बहिष्कार की सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैंने सिर्फ अपने इलाके के लोगों के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पिछली बार जब चुनाव हुए थे तो मैंने अपने बेटे को बतौर पंच चुनाव लड़ाया था, वह जीत गया था। उसने अच्छा काम किया है। यह मैं नहीं लोग भी कहते हैं, लेकिन इस बार उसकी बीवी और मा दोनों को पता नहीं क्या सूझी कि वह उसे आतंकियों का डर दिखाकर चुनाव लड़ने से रोक बैठी।

मैं चाहता था कि वह चुनाव में हिस्सा ले फिर मैंने देखा कि घर में सब डरे हैं और कौन अपने बच्चे को मरता देखना चाहेगा। इसलिए मैंने कहा कि यहा आतंकियो की बंदूक को जम्हूरियत की ताकत दिखाने के लिए क्यों नहीं खुद चुनाव में हिस्सा लिया जाए। मेरे इलाके के लोगों ने भी मेरा समर्थन किया।


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