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Jammu Kashmir : सियासी कुनबे को बचाने के लिए सक्रिय हुए डा. फारूक और उमर अब्दुल्ला

डा. फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने इस मामले पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है लेकिन बताया जा रहा है कि पिता-पुत्र दोनोें ही इस समय राणा व अन्य नाराज नेताओं को मनाने व उन्हें संगठन में बनाए रखने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 09:20 PM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 09:20 PM (IST)
Jammu Kashmir : सियासी कुनबे को बचाने के लिए सक्रिय हुए डा. फारूक और उमर अब्दुल्ला
जम्मू के प्रांतीय प्रधान देवेंद्र सिंह राणा के साथ भी उनकी टेलीफोन पर बातचीत होने की चर्चा है।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारू अब्दुल्ला अपने सियासी कुनबे को बिखरने से बचाने के लिए सक्रिय हो उठे हैं। उन्होंने इस काम में अपने पुत्र उमर अब्दुल्ला को भी लगाया है। उन्होंने पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। जम्मू के प्रांतीय प्रधान देवेंद्र सिंह राणा के साथ भी उनकी टेलीफोन पर बातचीत होने की चर्चा है। वह पार्टी में एकजुटता बनाए रखने के लिए रविवार काे या उससे पहले नेकां कार्यकारी समिति की एक बैठक भी बुला सकते हैं।

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इस बीच, जम्मू कश्मीर के राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, देवेंद्र सिंह राणा अगर पार्टी छोड़ते हैं तो यह नेकां के लिए बहुत नुकसानदायक होगा। उनके बाद कई अन्य नेता जो पार्टी नेतृत्व की नीतियों से नाखुश हैं, वे अपना नया ठिकाना तलाश सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो नेकां की स्थिति पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से ज्यादा बुरी हो सकती है। जम्मू प्रांत में नेशनल कांफ्रेेंस की कमान देवेेंद्र सिंह राणा के पास ही है। वह उमर अब्दुल्ला के खासमखास माने जाते रहे हैं। नेकां के भीतर ही नहीं बाहर भी यही कहा जाता रहा है कि देवेंद्र सिंह राणा अगर कुछ कहेंगे तो उसे उमर अब्दुल्ला कभी नहीं टालेंगे। देवेंद्र सिंह राणा को नेकां में फारूक और उमर के बाद सबसे शक्तिशाली नेताओं में गिना जाता रहा है।

करीब नौ माह पूर्व उन्होंने जम्मू डिक्लेरेशन का विचार देते हुए जम्मू प्रांत के सभी राजनीतिक, सामाजिक, मजहबी व बुद्धिजीवी संगठनाें से एकजुट होकर जम्मू प्रांत और जम्मू कश्मीर के हितों के संरक्षण के लिए आगे बढ़ने का आह्वान किया था। उनके इस विचार को कश्मीर केंद्रित सियासत करने वालोें ने ही नहीं नेकां में भी एक वर्ग विशेष ने पीपुल्स एलांयस फार गुपकार डिक्लेरेशन के खिलाफ माना था। इसके अलावा परिसीमन के मुद्दे पर भी वह नेकां की घोषित नीति के खिलाफ कई जगह नजर आए हैं। उनके रवैये से पार्टी में कई नेता नाखुश थे और उनकी दबे मुंह मुखालफत भी करने लगे थे। राणा ने इस विषय में कई बार डा. फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से बातचीत कर मामला हल करने का प्रयास किया था, लेकिन बात नहीं थी। कहा जाता है, इसके बाद ही देवेंद्र सिंह राणा ने पार्टी से अलग होने का मन बनाया है।

देवेेंद्र सिंह राणा के साथ जम्मू प्रांत के दो और वरिष्ठ नेताओं के भी भाजपा में जाने या फिर अलग से दल तैयार करने की अटकलों के जोर पकड़ने के बाद से नेशनल कांफ्रेेस के भीतर खलबली मची हुई है। हालांकि डा. फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने इस मामले पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, लेकिन बताया जा रहा है कि पिता-पुत्र दोनोें ही इस समय राणा व अन्य नाराज नेताओं को मनाने व उन्हें संगठन में बनाए रखने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं।

डा. अब्दुल्ला ने कथित तौर पर देवेंद्र सिंह राणा से फोन पर बातचीत कर मनाने का प्रयास किया है। उन्होंने जम्मू प्रांत के अन्य नेताओं से भी बातचीत की है और उनसे पूरे हालात को समझने का प्रयास किया है। कहा जा रहा है कि डा. फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने देवेंद्र सिंह राणा व उनकी तरह नेकां छोड़ने की कतार में खड़े नजर आ रहे नेताओं से कहा है कि वह अपने अगले कदम का एलान करने से पूर्व एक बार उनके साथ आमने-सामने की बैठ कर बात जरूर करें।

जम्मू में सिमटने लगा नेशनल कांफ्रेंस का आधार : राजनीतिक मामलों के जानकार रमीज मखदूमी ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस का जम्मू में आधार लगभग सिमट चुका है। देवेंद्र सिंह राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया अगर नेकां छाेड़ देते हैं तो रत्न लाल गुप्ता के अलावा जम्मू में नेकां के पास काेई गैर मुस्लिम चेहरा नजर नहीं आता। हालांकि कई गैर मुस्लिम नेकां में हैं, लेकिन उनका कद और प्रभाव अपने मोहल्लों से बाहर नहीं है। इसके अलावा देवेंद्र सिंह अगर नेकां छोड़ते हैं तो कश्मीर में भी उसका असर होगा, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। कई नेकां नेता अपना सियासी घर बदलने के मूड में हैं और वह उचित मौके की तलाश में हैं। राणा उनके लिए रास्ता तैयार कर सकते हैं। ये बात डा. फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला व उनके सलाहकार अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए वह राणा को मनाने का अंतिम समय तक प्रयास करेंगे।


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