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कश्मीर में दीवार बनी मेहरबान

नवीन नवाज, श्रीनगर : आतंकवाद और अलगाववाद ने भले ही आम लोगों की जिंदगी नरक बना दी हो, लेि

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Dec 2018 02:17 AM (IST)Updated: Thu, 06 Dec 2018 02:17 AM (IST)
कश्मीर में दीवार बनी मेहरबान
कश्मीर में दीवार बनी मेहरबान

नवीन नवाज, श्रीनगर : आतंकवाद और अलगाववाद ने भले ही आम लोगों की जिंदगी नरक बना दी हो, लेकिन कश्मीर में इंसानियत पसंद लोगों की भी कोई कमी नहीं है। कड़ाके की सर्दी में जरूरतमंदों के लिए दीवार-ए-मेहरबानी की गर्मी उनकी जिंदगी के लिए मुहाफिज साबित हो रही है।

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लालचौक से सटे झेलम किनारे एक दीवार पर लगे कीलों और हुकों पर लोग स्वेच्छा से अपने जूते, कपड़े और अन्य सामान टांग रहे हैं ताकि जरूरतमंद उन्हें प्राप्त कर सकें। दीवार-ए-मेहरबानी पर कोई डिब्बे में पैक खाना टांग रहा है तो कोई फल। कुछ लोगों ने तो अपने संपर्क नंबर भी छोड़े हैं, जिन पर लिखा है कि डॉक्टरी सहायता की जरूरत होने पर कॉल करें। जरूरतमंद लोग अपनी जरूरत की चीजों को चुपचाप ले जा रहे हैं। कोई उन्हें टोकता नहीं और न कोई उनसे पूछता है। अंग्रेजी में इस दीवार को वाल ऑफ काइंडनेस का नाम दिया गया है।

दीवार-ए-मेहरबानी का प्रयोग कोई पहली बार नहीं हो रहा है। इसका प्रयोग ईरान में हो चुका है, लेकिन कश्मीर में यह पहला प्रयोग है। लंदन स्थित एक एनजीओ हू इज हुसैन जो इस्लाम में हजरत इमाम हुसैन के महत्व, आदर्शो और इस्लाम के उसूलों का प्रचार करती है, ने यह प्रयोग किया है। हू इज हुसैन की कश्मीर स्थित इकाई के अध्यक्ष अबरार अली ने कहा कि हम श्रीनगर में समाज के जरूरतमंदों की मदद के लिए ही यह कर रहे हैं। पहले हमने शहर के छह हिस्सों में कुछ खास जगहों पर दीवार-ए-मेहरबानी की अनुमति मांगी थी, लेकिन श्रीनगर नगर निगम ने कहा कि पहले हम झेलम किनारे यह प्रयोग करें। अगर लोगों ने एतराज जताया या सुरक्षाबलों ने आपत्ति की तो फिर अन्य जगहों पर दीवार-ए-मेहरबानी शुरू करने की इजाजत नहीं देंगे।

उन्होंने कहा कि हमने कश्मीर विश्वविद्यालय, डलगेट, इस्लामिया कॉलेज और नौहट्टा का प्रस्ताव रखा है। इसके बाद हम शहर के भीतरी इलाकों में कुछ और दीवारों को भी शामिल करेंगे। कश्मीर में यह काम आसान नहीं है। यहां के हालात को देखते हुए हमें अपने साथियों और सदस्यों को हरदम चौकस रखना पड़ता है। बारिश और हिमपात की स्थिति में हम यह सामान आसपास के रहने वालों के पास जमा करा देते हैं। हमारी संस्था से जुड़े 30-40 सदस्य दीवारों को पेंट करते हैं। अपनी जेब से पैसा खर्च कर आवश्यक सामान जुटाते हैं। हम सिर्फ लोगों की मदद और इंसानियत के नाते ही यह काम कर रहे हैं।

हू इज हुसैन संस्था के एक अन्य सदस्य सईद फराज ने कहा कि हम ईरान के लोगों से प्रेरित हुए हैं। वहां लोग जरूरतमंदों की मदद के लिए इस तरह के प्रयास करते हैं। जो लोग दूसरों की मदद करना चाहते हैं, वह यहां आकर अपनी इच्छा से सामान छोड़ जाते हैं। कोई कंबल लेकर आता है तो कोई गर्म कोट, शॉल और सलवार कमीज। खाने का सामान भी लोग यहां टांग रहे हैं। हमारा नारा है कि टेक इफ यू नीड, हैंग इफ यू हैव यानि जरूरतमंद हैं तो ले जाएं, आपके पास है तो टांग जाएं।

दीवार-ए-मेहरबानी से कुछ ही दूरी पर एक दुकान चलाने वाले बशीर अहमद ने कहा कि मैं यह देखकर बहुत खुश हूं कि हमारे नौजवानों ने एक सही पहल की है। बहुत से लोग अब यहां मदद के लिए आगे आ रहे हैं। इस पहल में सबसे अच्छी बात यह है कि यहां सामान लेने वाले को बताना नहीं पड़ता कि वह कहां से आया है और क्यों आया है। न देने वाला दावा करता है कि वह कोई दान कर रहा है।

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ईरान में शुरुआत हुई थी

दीवार ए मेहरबानी की

दीवार-ए-मेहरबानी की शुरुआत वर्ष 2015 में ईरान के मशहद शहर में हुई थी। पश्चिमी मुल्कों द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई थी। बहुत से लोग बेरोजगार हो गए थे। उस समय वहां सज्जाद बुल्वोर्ड के बैनर तले स्थानीय युवकों के एक दल ने जमा होकर समाज के जरूरतमंदों की मदद के लिए दीवार-ए-मेहरबानी शुरू की थी। ईरान के लोगों ने इसका खूब स्वागत किया और बड़ी संख्या में लोग अपना सामान दान करने के लिए प्रेरित हुए।

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