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एक हजार साल पुरानी जियारतगाह बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त

पांपोश रशीद, बारामुला (श्रीनगर) : उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के अग्रिम छोर पर स्थित क

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Mar 2018 02:05 AM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 02:05 AM (IST)
एक हजार साल पुरानी जियारतगाह बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त
एक हजार साल पुरानी जियारतगाह बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त

पांपोश रशीद, बारामुला (श्रीनगर) :

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उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के अग्रिम छोर पर स्थित करीब एक हजार साल पुरानी सूफी संत बाबा फरीद की जियारतगाह बुधवार को बिजली गिरने से लगी आग में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। गनीमत यह रही कि इसमें कोई जानी नुकसान नहीं हुआ। बाबा फरीद ¨हदू, मुस्लिम व सिख समुदाय में सम्मान रूप से पूजनीय थे। राज्यपाल एनएन वोहरा और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बाबा फरीद की जियारत को पहुंचे नुकसान पर दुख जताते हुए संबंधित प्रशासन को जियारत को उसका पुराना गौरव बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

बाबा फरीद की जियारत एलओसी पर स्थित गरकोट गांव के बाहरी छोर पर है। बाबा फरीद के मुरीद जम्मू कश्मीर और गुलाम कश्मीर के दोनों तरफ बड़ी तादाद में रहते हैं, जो हर साल उनके उर्स में भाग लेने के लिए यहां जमा होते रहे हैं। इस इलाके को हाजीपीर सेक्टर भी कहा जाता है। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू होने से पहले एलओसी के पार से नागरिक बिना किसी रुकावट इस जियारत पर आते-जाते थे। बाद में उनकी संख्या को सीमित कर दिया गया था, लेकिन बदलते हालात में उनकी आवाजाही लगभग बंद हो चुकी है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि आधी रात के बाद जोरदार बारिश शुरू हुई। इसी दौरान आसमान में जोरदार आवाज के साथ बिजली कड़की जो जियारतगाह पर गिरी और आग लग गई। आस-पास मौजूद सैन्यकर्मियों व स्थानीय लोगों ने आग बुझाने का प्रयास किया, लेकिन जब तक उसपर काबू पाया गया, जियारतगाह का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, बाबा फरीद काफी दिनों तक यहां रहे और उन्होंने कश्मीर व राजौरी-पुंछ में इस्लाम का प्रचार भी किया। वह इस इलाके में करीब 40 साल तक रहे। आज भी उड़ी, पुंछ व गुलाम कश्मीर की परंपरागत सूफी गायकी में शेख फरीद के प्रभाव को साफ महसूस किया जा सकता है। हर साल जुलाई में यहां एक बड़ा उर्स मनाया जाता है।

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सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जियारत :

बाबा फरीद की जियारत भारतीय सेना के लिए सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। जियारतगाह के पास स्थित भारतीय चौकी पर तैनात जवान हाजीपीर सेक्टर के पास उन सभी पाकिस्तानी चौकियों पर भारी पड़ते हैं, जहां बैठे पाकिस्तानी सैनिक भारतीय ठिकानों को निशाना बन सकते हैं।

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कौन हैं बाबा फरीद :

बाबा फरीद को शेख फरीद या गंजशकर भी कहा जाता है। बताया जाता है कि बाबा फरीद का जन्म 1173 ईस्वी के रमजान महीने में पंजाब के कोठवाल गांव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में उनके नाम के साथ शकर गंज (चीनी का खजाना) जोड़ा गया। इसके पीछे एक कहानी है कि जब बाबा फरीद छोटे थे तो उनकी मां रोजाना उन्हें नमाज अता करने के लिए कहती थीं। वह कहते थे कि मुझे अल्लाह से क्या मिलेगा? मैं क्यों करूं नमाज? उनको खजूर और शक्कर बहुत पंसद थी, इसलिए उनकी मां ने उनसे कहा कि अल्लाह तुम्हे खजूर देगा। वह नमाज अता करने वाली चटाई के नीचे अक्सर खजूर और शक्कर रख देती थी, ताकि बाबा फरीद को लगे कि यह अल्लाह का वरदान है। एक दिन वह ऐसा करना भूल गई, लेकिन जब बाबा फरीद ने चटाई उठाई तो नीचे खजूर और शक्कर थी। उसी दिन उन्होंने अपने बेटे बाबा फरीद को शकर गंज के नाम से पुकारना शुरू कर दिया था। वह 16 साल की उम्र में हज पर गए थे। हज से लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली, पंजाब, जम्मू कश्मीर समेत विभिन्न इलाकों में इस्लाम का प्रचार करते हुए लोगों को प्रेम व सद्भाव का संदेश दिया। उन्होंने पंजाबी भाषा में कई दोहे लिखे। कहा जाता है कि उनके लिखे दोहों को श्री गुरु ग्रंथ साहब में भी शामिल किया गया है। 1266 सीई में मुहर्रम महीने के पाचवें दिन, न्यूमोनिया बीमारी से पीड़ित होने के कारण बाबा फरीद का निधन हो गया। वह पाकपत्तन शहर (इस समय पाकिस्तान में है) में दफनाए गए।

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