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हाउसबोटों और होटलों पर अब सेटेलाइट से नजर

राज्य ब्यूरो श्रीनगर कश्मीर की पहचान डल झील के दिन अब जल्द ही सुधरेंगे। हाउसबोटों और होटलों से निकलने वाला कचरा अब इसके पानी को गंदा नहीं कर पाएगा। झील के संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए प्रशासन ने हाउसबोटों और झील के साथ सटे होटलों की जियो टैगिग शुरू कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 09:41 AM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 09:41 AM (IST)
हाउसबोटों और होटलों पर अब सेटेलाइट से नजर
हाउसबोटों और होटलों पर अब सेटेलाइट से नजर

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: कश्मीर की पहचान डल झील के दिन अब जल्द ही सुधरेंगे। हाउसबोटों और होटलों से निकलने वाला कचरा अब इसके पानी को गंदा नहीं कर पाएगा। झील के संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए प्रशासन ने हाउसबोटों और झील के साथ सटे होटलों की जियो टैगिग शुरू कर दी है। इससे सैटेलाइट से इन पर नजर रखी जाएगी। इतना ही नहीं, हाउसबोटों से निकलने वाली गंदगी पानी में जाने से रोकने के लिए उनमें बायो डाईजेस्टर भी लगाए जा रहे हैं। फिलहाल, कुछ हाउसबोट में बायो डाईजेस्टर लगाए गए हैं, जल्द ही अन्य में भी लगाए जाएंगे।

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डल झील में 1200 पंजीकृत हाउसबोट हैं जो हर साल नौ हजार मीट्रिक टन कचरा पैदा करते हैं। श्रीनगर शहर के 15 बड़े नालों का कचरा और सीवरेज भी झील में आता है। इनके जरिए झील में हर साल 18.2 टन फास्फोरस, 25 टन इनआर्गेनिक नाइट्रोजन न्यूटरिएंटस के अलावा नाइट्रेट, फास्फेट और 80 हजार टन सिल्ट जमा होती है। झील का पानी पीने लायक नहीं रहा है। आक्सीजन घटने के कारण झील के भीतर रहने वाले जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी संकट पैदा हो गया है। झील को बचाने के लिए प्रशासन ने तीन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थापित किए हैं, लेकिन यह भी अपना मकसद पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी झील के संरक्षण के लिए हस्तक्षेप करते हुए राज्य प्रशासन को कई अहम निर्देश जारी किए हैं। हाउसबोटों और होटलों की जियो टैगिग भी उच्च न्यायालय के निर्देश पर ही हो रही है। हाउसबोटों के भीतर पैदा होने वाले कचरे और सीवरेज को ठिकाने लगाने के लिए बायो डाईजेस्टर भी इस दिशा में उठाया गया एक कदम है। झील एवं जलमार्ग विकास प्राधिकरण (लावडा) ने पर्यटन विभाग और पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण विभाग के साथ मिलकर हाउसबोटों जियो टैगिग शुरू की है। 900 ढांचों की जियो टैगिग हो चुकी

झील के बाहरी किनारे से 200 मीटर के दायरे में आने वाले होटलों, रेस्तरां और मकानों की भी जियो टैगिग की जा रही है। लगभग 900 ढांचों की जियो टैगिग हो चुकी है। पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि जियो टैगिग किसी भी जगह स्थापित किसी वस्तु विशेष की भौगोलिक स्थिति की निगरानी के लिए की जाती है। इन सभी वस्तुओं और इमारतों की सैटेलाइट के जरिए निगरानी आसान हो जाती है। उन्होंने बताया कि जियो टैगिग के जरिए हम हाउसबोटों, होटलों, रेस्तरां व गेस्टहाउस संख्या व उनकी गतिविधियों की नियंत्रित करेंगे। झील में गिरने वाले सीवरेज के असर की भी निगरानी हो सकेगी। झील के संरक्षण में मिलेगी मदद

पारिस्थितिकी, पर्यावरण एवं सुदूर संवेदी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हुमायुं रशीद ने बताया कि पर्यटन विभाग के 10 कर्मियों को हमने जीपीएस और जानकारी को रिकार्ड करने की ट्रेनिग दी है। जीपीएस ट्रैकर्स के जरिए हाउसबोट की स्थिति का पता लगाने में सहायता मिलेगी। पर्यटन विभाग के निदेशक निसार अहमद वानी ने कहा कि जियो टैगिग से हमें हाउसबोटों, होटलों, रेस्तरां के सही आंकड़ों को जमा करने और झील के संरक्षण में मदद मिलेगी। यह झील में होने वाले अतिक्रमण से लेकर झील के साथ सटे इलाकों में भी अतिक्रमण को रोकेगा। ----

जियो टैगिग के अलावा हम हाउसबोटों में बायो डाईजेस्टर भी लगा रहे हैं। बीते दिनों डीआरडीओ द्वारा विकसित बायो डाईजेस्टर को यहां कुछ हाउसबोट में स्थापित किया गया है। इनमें हाउसबोट का सारा कचरा, मल और सीवरेज जमा होगा। इससे झील के पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और बायो डाईजेस्टर कचरे को निष्पादित करते हुए मीथेन गैस पैदा करेगा। इस गैस का उपयोग खाना पकाने, हाउसबोट को रोशन करने और सर्दी में गर्म रखने के लिए किया जा सकेगा।

-तुफैल मट्टू, उपाध्यक्ष, लावडा

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