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मुख्यमंत्री लोगों के हक में खड़ी हों : शेहला रशीद

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Apr 2018 03:08 AM (IST)Updated: Tue, 10 Apr 2018 03:08 AM (IST)
मुख्यमंत्री लोगों के हक में खड़ी हों : शेहला रशीद
मुख्यमंत्री लोगों के हक में खड़ी हों : शेहला रशीद

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर :

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद ने सोमवार को कश्मीर में छात्र राजनीति को प्रोत्साहित करने पर जोर देते हुए कहा कि यहां लोग आत्मनिर्णय और सम्मानजनक ¨जदगी के लिए संघर्षरत हैं। राज्य सरकार को हिंसा समाप्त करने, एसआरओ 202 को तत्काल रद करने के साथ रसाना में बालिका की हत्या के आरोपितों के समर्थन में रैलियां करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में शेहला रशीद ने कहा कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को रियासत के लोगों के लिए चाहे वह सड़कों पर उतरे छात्र हों या सेना द्वारा गत वर्ष मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल फारुक डार, सभी के लिए खड़े होना चाहिए।

शेहला रशीद ने गत दिनों शोपियां में हुई मौतों और उसके बाद छात्रों पर हुए पुलिस बल प्रयोग की ¨नदा करते हुए कहा राज्य सरकार को हिंसा का मार्ग छोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहां का राजनीतिक नेतृत्व लोगों से ¨हसा का मार्ग छोड़ अहिंसा पर चलने को कहता है, लेकिन सरकार भी हिंसा का ही मार्ग अपना रही। उन्होंने सवाल उठाया कि आज तक राज्य सरकार की तरफ से आतंकियों के लिए कोई ठोस सरेंडर पॉलिसी क्यों नहीं बनाई गई।

यहां विश्वविद्यालयों में छात्र संगठनों के चुनाव कराए जाने चाहिए। छात्र राजनीति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे भी कश्मीर में हालात अनुकूल बनाने में मदद मिलेगी। यहां के छात्र बहुत समझदार हैं। उन्हें भी अपना भविष्य तय करने का मौका मिलना चाहिए।

अलगाववादी खेमे के जिक्र पर उन्होंने कहा कि कश्मीर में किसी राजनीतिक दल को वर्गीकृत नहीं कर सकते। यहां जो मुख्यधारा की सियासत करते हैं, जब सत्ता से बाहर होते हैं तो उनकी बोली बदल जाती है। चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए विरोधी विचारधारा के दल के साथ समझौता कर लेते हैं।

राज्य सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों के संदर्भ में घोषित एसआरओ 202 को मानवाधिकारों का हनन करार देते हुए उन्होंने कहा यह युवा वर्ग का अपमान है। आप एक योग्य व्यक्ति को नौकरी के शुरुआती पांच से सात साल तक सात हजार रुपये या उससे कम के मानदेय पर रख सकते हैं। एक तरफ यहां विधायकों का वेतन एक लाख साठ हजार रुपये है, दूसरी तरफ पढ़े-लिखे नौजवानों का शोषण। इसे तुरंत बंद किया जाए।


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