एनआइए एक्ट की वैधता को चुनौती देने की तैयारी
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीर बार एसोसिएशन ने अलगाववादी खेमे में राहत की उम्मीद जगाते हुए
एनआइए एक्ट की वैधता को चुनौती देने की तैयारी
-कश्मीर बार एसोसिएशन ने याचिका का प्रारूप तैयार करने का फैसला किया
-इस मामले की पैरवी के लिए नौ सदस्यीय वकीलों की समिति बनाई
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीर बार एसोसिएशन ने अलगाववादी खेमे में राहत की उम्मीद जगाते हुए जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम (एनआइए एक्ट) की वैधता को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है। फिलहाल, इस संदर्भ में एक याचिका का प्रारूप तैयार किया जा रहा है।
कश्मीर बार एसोसिएशन ने याचिका का प्रारूप तैयार करने और संबंधित मामले की पैरवी के लिए नौ सदस्यीय वकीलों की एक समिति बनाई है। यह समिति एनआइए अधिनियम के सभी प्रावधानों का संज्ञान ले रही है।
समिति में संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ वरिष्ठ एडवोकेट जफर अहमद शाह के अलावा जेडए कुरैशी, बशीर अहमद बशीर, आरए जान, अल्ताफ हक्कानी, मुश्ताक अहमद मखदूमी, सईद मंजूर, जीए लोन, अरशद अंद्राबी, रियाज खावर और मुहम्मद शफी रेशी के अलावा कश्मीर बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन नजीर अहमद रोंगा भी हैं। रोंगा को उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक का करीबी माना जाता है।
बार एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि कश्मीर में एनआइए की गतिविधियों को लेकर कुछ प्रक्रियात्मक कोताहियां हैं। इसलिए हमारे कुछ साथी इस मामले का गंभीरता से अध्ययन करते हुए एनआइए के खिलाफ सभी संभावनाओं को खंगाल रहे हैं। हमारी याचिका जम्मू-कश्मीर में एनआइए अधिनियम की वैधता को ही चुनौती देगी। हम अदालत में जाना चाहेंगे कि क्या एनआइए अधिनियम को जम्मू-कश्मीर में विस्तार दिया गया है या नहीं।
उन्होंने कहा कि एनआइए अधिनियम स्पष्ट रूप से देश के सभी राज्यों में विशेष अदालतों के गठन पर जोर देता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी ऐसी एक अदालत की स्थापना का दावा किया है।
राज्य के पूर्व महाधिवक्ता एमआइ कादरी ने कहा कि एनआइए अधिनियम में शामिल सभी प्रावधानों को चुनौती दी जा सकती है। जम्मू-कश्मीर की एक विशेष संवैधानिक स्थिति है और कोई भी केंद्रीय कानून सीधे तौर पर यहां लागू नहीं हो सकता। महाराजा हरि सिंह ने भारतीय संघ के साथ संचार, विदेश और प्रतिरक्षा के मामलों पर ही विलय किया था। प्रतिरक्षा मामले जम्मू-कश्मीर की सरहदों की हिफाजत से संबंधित है और यह आंतरिक सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं रखते। कानून व्यवस्था की स्थिति या बगावत संबंधी कानून राज्य सूची में हैं और इन मुद्दों से जम्मू-कश्मीर सरकार को ही निपटना है। इसलिए सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में आंतरिक सुरक्षा के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है या नहीं।
कश्मीर बार एसोसिएशन के सदस्य एडवोकेट बिलाल अहमद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच धारा 370 ही रिश्तों को परिभाषित करती है। एनआइए एक्ट को हम इस आधार पर भी चुनौती दे सकते हैं कि क्या जम्मू-कश्मीर सरकार के पास इस कानून को राज्य में विस्तार देने का कानूनी अधिकार है या नहीं। गौरतलब है कि राज्य सरकार पहले ही कह चुकी है कि रणबीर पीनल कोड के तहत आतंकवाद समेत विभिन्न प्रकार के मामलों से निपटने के लिए कई कठोर प्रावधान हैं। जम्मू-कश्मीर में एनआइए अधिनियम को विस्तार देने की जरूरत नहीं है।