बडगाम विधानसभा उपचुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस की हार, पीडीपी की जीत के साथ कश्मीर की राजनीति में बदलाव की शुरुआत
बडगाम विधानसभा उपचुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस की हार हुई है और पीडीपी ने जीत दर्ज की है। इस अप्रत्याशित परिणाम ने कश्मीर की राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव का संकेत दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पीडीपी की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है और नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए एक बड़ा झटका है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों पार्टियां आगे क्या रणनीति अपनाती हैं।
नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। 48 वर्ष बाद पहली बार शिया बहुल बडगाम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में नेशनल कान्फ्रेंस को हार का मुंह देखना पड़ा है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के आगा सैयद मुुंतजिर चुनाव जीत गए हैं।
यह जीत सिर्फ इसलिए अहम नहीं है कि नेशनल काॅन्फ्रेंस हारी है या पीडीपी जीती है। यह इसलिए अहम है क्योंकि आगा सैयद मुुंतजिर के पिता आगा सैयद हसन कुछ वर्ष पहले तक कश्मीर की अलगाववादी राजनीति का एक प्रमुख चेहरा थे।
वह कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के करीबियों में एक थे और उनका संगठन अंजुमन ए शरियां ए शिया, पहले एकीकृत हुर्रियत और उसके बाद गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत का प्रमुख घटक रहा है। यह चुनाव परिणाम मतदाताओं की बदलती प्राथमिकता और कश्मीर की राजनीति में आते बदलाव का भी प्रतीक हैं।
आगा सैयद मुंतजिर का यह दूसरा चुनाव है। उन्होंने पिछले वर्ष भी इसी सीट पर चु़नाव लड़ा था और उमर अब्दुल्ला से हार गए थे। आगा सैयद मुंतजिर ने अपनी जीत से अपने पिता आगा सैयद हसन का भी अधूरा सपना पूरा किया है। आगा सैयद हसन ने 1977 में इसी सीट पर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और नेशनल कान्फ्रेंस के आगा गुलाम हसन गिलानी से हारे थे।
इस चुनाव में मोहम्मद यूसुफ शाह ने जमाते इस्लामी के टिकट पर अपना भाग्य आजमाया था। माेहम्मद यूसुफ शाह काेई और नहीं हिजबुल मुजाहिदीन का पाकिस्तान में छिपा बैठा कमांडर सैयद सल्लाहुदीन है। गुलाम हसन गिलानी बडगाम सीट पर 1996 तक लगातार नेशनल कान्फ्रेंस की जीत दर्ज करते रहे। वर्ष 1987 और 1996 में उन्होंने आगा सैयद मेहदी को हराया।
तीन बार बडगाम सीट पर जीत दर्ज कर चुके हैं रुहुल्ला
आगा सैयद मेहदी नेशनल कान्फ्रेंस के बागी सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी के पिता है। आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी के पिता ने 1987 में बतौर निर्दलीय और 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में इस सीट पर चुनाव लड़ा था। वर्ष 2002, 2008 और 2014 में आगा सैयद रुहुल्ला ने नेशनल कान्फ्रेंस के टिकट पर बडगाम में चुनाव जीता है।
उमर के इस्तीफे को बडगाम निवासियों ने विश्वासघात माना
बडगाम विधानसभा सीट पर वर्ष 2024 के चुनाव में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने गांदरबल से भी चुनाव लड़ा था और वहां से भी वह जीत थे। इसलिए उन्होंने बडगाम सीट छोड़़ दी और अब 13 माह बाद बडगाम को एक विधायक मिला है। बडगाम से उमर अब्दुल्ला के इस्तीफे को स्थानीय लोगों ने अपने साथ विश्वासघात माना था और उसका असर भी मतदान में हुआ। बडगाम के नतीजों ने साबित किया है कि बिजली-राशन, रोजगार और राज्य के दर्जे की बहाली व आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर उमर अब्दुल्ला के यू-टर्न से कश्मीर में लोगों का सत्ताधारी दल से मोहभंग हुआ है।
आगा रुहुल्ला नेकां पर हैं भारी
वह उमर अब्दुल्ला के मुंह से बार बार अधिकारों का रौना सुनकर उकता चुके हैं और कुछ ठोस सुनना-देखना चाहते हैं। उनके लिए अपने रोजमर्रा के मुद्दे ज्यादा अहम हैं। इस चुनाव में अगर नेशनल कान्फ्रेंस की हार के लिए आगा सैयद रुहुल्ला के फैक्टर को गिना जाए तो यही कहा जाएगा कि आगा रुहुल्ला नेशनल कान्फ्रेंस पर भारी हैं। जिस तरह से उनके समर्थकों ने पीडीपी का खुला समर्थन किया, आगा सैयद मुंतजिर की रैलियों में भाग लिया है, उसके बाद कोई भी कहेगा कि पीडीपी को आगा सैयद रुहुल्ला ने जिताया। बडगाम की हार पार्टी के भीतर उमर की पकड़ को और कमजोर करेगी।
बडगाम में नेकां को 19 हजार वोटों का हुआ नुकसान
बडगाम विधानसभा चुनाव में आगा सैयद मुंतजिर ने 21576 और नेशनल कान्फ्रेंस के आगा सैयद महमूद अल मौसवी ने 17098 वोट लिए हैं। अगर इस मतदान की तुलना वर्ष 2024 के मतदान से की जाए तो उस समय उमर अब्दुल्ला को लगभग 36 हजार और पीडीपी को लगभग 17500 वोट मिले थे। मतलब सत्ताधारी नेशनल कान्फ्रंस को लगभग 19 हजार वोटों का नुकसान हुआ है जबकि पीडीपी को लगभग चार हजार वोट का लाभ हुआ है।
पीडीपी को भी उम्मीद से कम मिले वोट
लेकिन जिस तरह से आगा रुहुल्ला, इमरान अंसारी, हकीक यासीन जैसे शिया नेताओं का कथित समर्थन पीडीपी को मिल रहा था, उसके आधार पर पीडीपी को वर्ष 2024 की की तुलना में कम से कम 12 हजार ज्यादा वोट मिलने चाहिए थे। मतलब पीडीपी को एक तरह से साढ़े सात हजार वोटों का नुकसान हुआ है। इसी क्रम में एक निर्दलीय उम्मीदवार जिबरान डार ने 7152 वोट लिए हैं जबकि भाजपा, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी और अन्य उम्मीदवारों में से काई भी 3100 के आंकड़े को पार नहीं कर पाया है।
बडगाम जीत पीडीपी का उत्साह बढ़ाने का कम करेगी
कश्मीर मामलों के जानकार आसिफ कुरैशी ने कहा कि बडगाम विधानसभा उपचुनाव का परिणाम पीडीपी को वादी के अन्य इलाकों में अपने कैडर को प्रोत्साहित करने और अपनी खोयी सियासी जमीन को फिर पाने के लिए एक नयी संजीवनी देगा। यह नेशनल कान्फ्रेंस के भीतर बागी सुरों को आवाज देगा। वह इस स्थिति से बच सकती थी, अगर उसके नेता आगा सैयद रुहुल्ला के लेकर अपनी तीखी टिप्पणियों से बचते,क्योकि यह चुनाव कहीं न कहीं आगा रुहुल्ला बनाम उमर अब्दुल्ला भी हो चुका था।
कई नामी उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए
इसे उमर अब्दुल्ला की हार और आगा रुहुल्ला की जीत भी कहा जाएगा लेकिन सबसे बड़ी बात जिस तरह से चुनाव में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयाेग किया है, जिस तरह से कई नामी उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में विफल रहे हैं, उससे पता चलता है कि घाटी में अब मतदाता परम्परागत राजनीतिक दलों से ऊब रहे हैं और उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में अपने विकल्प तलाशना शुरु कर दिए हैं। यह नयी क्षेत्रीय पार्टियों या नए नेताओं के उभरने का भी कारण बनेगा।
आगा रुहुल्ला के लिए आगे क्या होगा?
नेशनल कान्फ्रेंस के बागी सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी के लिए भी आगे का सफर आसान नहीं होगा। बेशक आगा सैयद मुंतजिर में उनकी कथित तौर पर परोक्ष भूमिका रही है,लेकिन इससे उनका बडगाम में राजनीतिक वर्चस्व समाप्त होगा।
नेशनल कान्फ्रेंस भी उन्हें संगठन से निष्कासित कर सकती है या फिर वह स्वयं नेशनल कान्फ्रेंस से इस्तीफा दे दें। अगर वह नेशनल कान्फ्रेंस से अलग होते हैं तो वह अपने दिवंगत पिता आगा सैयद मेहदी की पार्टी कांग्रेस में शामिल हो जाएं या फिर कश्मीर की मुख्यधारा और अलगाववाादी राजनीति के कुछ जाने पहचाने चेहरों के सहयोग से एक नया राजनीतिक दल बनाएं।

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