जम्मू-कश्मीर: जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध से स्थानीय राजनीतिक दलों में बौखलाहट
जमात-ए- इस्लामी कश्मीर पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध को लेकर स्थानीय राजनीतिक दल सहमत नहीं हैं।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जमात-ए- इस्लामी कश्मीर पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध को लेकर स्थानीय राजनीतिक दल सहमत नहीं हैं। सभी इसे रियासत में लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए कह रहे हैं कि इससे हालात सुधरेंगे नहीं बल्कि बिगड़ेंगे। केंद्र को अपना फैसला वापस लेना चाहिए। गुरुवार रात को केंद्र सरकार ने जमायत ए इस्लामी को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर पांच साल के लिए प्रतिबंधित करने का फैसला किया है।
महबूबा मुफ्ती ने ट्वीटर पर लिखा है कि केंद्र सरकार क्यों जमायत ए इस्लामी से असहज महसूस करती है। कश्मीरियों के लिए दिन रात काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधित कर दिया है। क्या भाजपा विरोधी होना राष्ट्र विरोधी होना है? एक अन्य ट्वीट में महबूबा ने कहा कि लोकतंत्र तो विचारों की लड़ाई है।
प्रतिबंध हटना चाहिए
सज्जाद गनी लोन ने भी जमायत पर प्रतिबंध का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि जमायत ने हमें कई योग्य और दूरदर्शी नेता दिए हैं। मैं प्रतिबंध को हटाने का समर्थन करता हूं। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि जमायत-ए-इस्लामी पर पाबंदी अनुचित है।
किसी विचारधारा को आप लोगों को जेलों में बंद कर समाप्त नहीं कर सकते। इसके अलावा डेमोक्रेटिक पार्टी नेशनलिस्ट (डीपीएन) के चेयरमैन और पूर्व कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर ने कहा कि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। इसके अलावा पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के चेयरमैन हकीम मोहम्मद यासीन ने कहा कि इससे कश्मीर में शांति बहाल नहीं होगी। वहीं, माकपा के नेता मोहम्मद यूसुफ तारीगामी ने कहा कि इससे समाज में अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
कश्मीर इकोनामिक एलांयस के चेयरमैन हाजी मोहम्मद यासीन खान ने कहा कि केंद्र सरकार ने जिस तरह से आरक्षण के लाभ के नाम पर राज्य संविधान में संशोधन किया है, वह पूरी तरह अनुचित है। केंद्र सरकार को अपना यह फैसला बदलना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो पूरा कश्मीर सड़क पर आ जाएगा।