कश्मीर के आम लोगों में जेहन में सवाल... अब आगे क्या होगा- इसका जवाब किसी के पास नहीं है
Article 35A शहर का लालचौक। कश्मीर की पहचान और सियासत का गढ़। हमेशा व्यस्त रहने वाला यह चौराहा मंगलवार की भरी दोपहर में लगभग वीरान था।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। शहर का लालचौक। कश्मीर की पहचान और सियासत का गढ़। हमेशा व्यस्त रहने वाला यह चौराहा मंगलवार की भरी दोपहर में लगभग वीरान था। दुकानें बंद थी और सड़क पर इक्का-दुक्का वाहन गुजर रहे थे। पास में तैनात सीआरपीएफ के जवानों की चौकस निगाहें हर गुजरने वाले को स्कैन कर रही थीं। घंटाघर के पास बने चबूतरे पर सामने कोकरबाजार और कोर्ट रोड पर रहने वाले कुछ बुजुर्ग रोजाना की तरह बैठकर कश्मीर की मौजूदा हालात पर चर्चा कर रहे हैं।
बीते एक पखवाड़े से यह लोग रोज सुबह आ जाते हैं, दोपहर को खाना खाने के लिए घर जाते हैं। स्थानीय मस्जिद में नमाज अदा करते हैं और फिर दोबारा यहीं आकर बैठ जाते हैं। हालात पर बहस का दौर लगातार चलता है। तीखी नोकझोंक भी होती है और मजाक भी खूब होती है।
बहस का विषय- जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में पांच अगस्त को हुआ बदलाव, जम्मू कश्मीर का दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजन और उसका असर। सेवानिवृत्त वनकर्मी असगर हुसैन ने कहा कि बीते 72 सालों में नई दिल्ली ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई है। केंद्र के फैसले ने यहां हम लोगों में अपने भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल पैदा कर दिए हैं। कई लोग इससे निराश हैं तो कई को बेहतरी की उम्मीद है।
आगे क्या होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। कोई बता भी नहीं रहा है। उनकी बात को काटते हुए पेशे से वकील हाजी बिलाल (67) ने कहा कि यहां लोगों को लगता है कि अब सबकुछ खत्म हो जाएगा। इसलिए कुछ आशंकित हैं। आप हमारे डर को निराधार नहीं कह सकते। घाटी तो चारों तरफ से घिरी हुई है। हमारे संसाधन सीमित हैं। यहां सभी को लगता है कि अब बाहर वाले आएंगे और यहां सभी पर कब्जा कर लेंगे, लेकिन यहां कौन किसे समझाए कि ऐसा नहीं होता। नौकरी उसे ही मिलेगी जा उसके काबिल होगा। इंडस्ट्री भी आएगी तो यहां हम कश्मीरियों के लिए भी नौकरियां होगी।
यहां कोई नहीं सोच सकता था कि हमारा जो दर्जा है, वह समाप्त होगा। सभी यही मानकर चल रहे थे कि अनुच्छेद 370 के उन प्रावधानो को कोई नहीं छू सकता जो हमें अलग दर्जा देते हैं।
नाजिर बट ने कहा कि मैं यहीं सामने कोकरबाजार में ही पला बड़ा हुआ हूं। मेरा साठ साल का तुजुर्बा है। यहां मैंने बहुत सी रैलियों और जलसे देखे। मैं उस दिन का भी गवाह हूं जिस दिन मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी भी झंडा फहराने यहां आए थे। हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा। अब जो हो गया सो हो गया, लेकिन अब आगे क्या होगा, यह कोई नहीं बता रहा है। हमारी क्या हैसियत होगी, आम कश्मीरी को क्या मिलेगा, यह तो पता चले। सिर्फ भाषण ही सुना है।
हाजी बिलाल ने कहा कि यहां सभी को शॉक लगा है। हमारे जो यहां नेता हैं, वह हमें हमेशा ही यही कहते थे कि दिल्ली कुछ नहीं कर सकती। हम यही सुनकर बड़े हुए हैं। हमें सिर्फ आटोनामी और सेल्फरुल के लालीपॉप ही दिखाए गए। हमारे बच्चों के दिलो-दिमाग में भी यही ठूंसा गया। आज हमें इन लोगों की जरूरत है और यह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कुछ दिनों बाद यह लोग हमारे सामने होंगे और हमसे वोट मांग रहे होंगे। उस समय इनका नारा क्या होगा, यह देखना है।
खैर, इनकी बात छोड़ो, आपको क्या लगता है कि यहां जो प्रशासनिक पाबंदियां हैं, यूं ही रहेंगे या जल्द हटेंगी। क्या यहां चुनाव होंगे और हमारी सरकार बनेगी या दिल्ली ही किसी को यहां का हाकिम बनाएगी। वहीं पास बैठे सुलेमान वार नामक एक बुजुर्ग ने कहा कि यहां बहुत कुछ चल रहा है। तरह तरह के ख्याल आते हैं। बस खुद को व्यस्त रखने के लिए हमें कुछ तो करना ही है। इसलिए यहां बैठकर आपस मे गप्पबाजी करना ही हमारे लिए बेहतर है। घर में बैठकर तो हताश ही होंगे।
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